उत्तराखंड: यूसीसी के 2 माह, कानून में दिक्कतें:कर्मचारी, वकील विरोध में उतरे, लिव-इन वाले भी परेशान; सरकार कर सकती है संशोधन
उत्तराखंड में दो महीने पहले ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू हुई। ऐसा करने वाला वह पहला राज्य भी है। लेकिन, अब इसके कई प्रावधानों ने राज्य सरकार के समक्ष व्यावहारिक मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या ढाई लाख सरकारी कर्मचारियों की है। सरकारी आदेश के तहत सभी कर्मचारियों को यूसीसी पोर्टल पर अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य कर दिया है। कर्मचारी संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं। कई संगठनों और अफसरों ने यूसीसी के प्रावधानों में दिक्कतें सरकार को बताई हैं। उनका तर्क है कि इसके प्रावधान अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसमें उत्तराधिकार संबंधी निर्णयों पर संशय है। ये स्थिति कानून लागू होने के बाद सामने आई हैं। सूत्रों की मानें तो सरकार ने इसके लिए एक हाई पावर कमेटी गठित कर दी है, जो यूसीसी के प्रावधानों में संशोधन पर एक-दो दिन में सरकार को रिपोर्ट दे सकती है। इसमें विवाह पंजीकरण, तलाक-विच्छेदन के मामले पोर्टल पर अपलोड करने का काम सब रजिस्ट्रार कार्यालयों को देने का फैसला हो सकता है। हड़ताल: नाराज वकीलों ने कहा, यूसीसी ने कमाई छीनी यूसीसी के खिलाफ उत्तराखंड बार एसोसिएशन के वकील हड़ताल कर चुके हैं। उन्होंने धमकी दी है कि यदि यूसीसी में बदलाव नहीं किया तो हड़ताल लंबी चलाएंगे। देहरादून बार एसोसएिशन के अध्यक्ष राजेश शर्मा ने कहा कि यूसीसी ने वकीलों की भूमिका कई मामलों में खत्म कर दी है। इससे अधिवक्ता, नोटरी, स्टांप वेंडर का काम छीन गया। विवाह पंजीकरण समेत सभी काम ऑनलाइन हो रहे। राज्य में अब तक वसीयत बदलाव के 188 आवेदन आए। लिव-इन: 20 रजिस्ट्रेशन ही हुए, इनमें से 8 गांवों के प्रदेश में अब तक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे 20 जोड़े अपना पंजीकरण करवा चुके हैं। इसमें से 8 जोड़े ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। कुछ मामलों में तो लिव-इन में रह रहे कपल ही बाहरी राज्यों के मूल निवासी हैं। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड सरकार के भीतर भी इस पर बहस चल रही है कि यूसीसी के जरिए लिव-इन को कानूनी रूप दिया गया, जबकि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। विवाह: दोबारा रजिस्ट्रेशन के आदेश से कर्मचारी खफा दरअसल, मुख्य सचिव ने आदेश दिया है कि हर विभागाध्यक्ष अपने कर्मचारियों के विवाह रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर अपलोड कराए। इस पर सभी डीएम ने भी आदेश जारी कर दिए। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष अरुण पांडे का कहना है कि कई डीएम ने वेतन रोकने का आदेश भी दिया है। इससे लगता है कि यूसीसी हम पर थोपा गया है। राज्य में 2 महीनों में अब तक 60,558 विवाह पंजीकरण कराए गए और तलाक के 57 आवेदन आए। यूसीसी कानून के इन 3 प्रावधानों को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कतें 1. समलिंगी विवाह: कानून में ट्रांसजेंडर, समलिंगी विवाह के पंजीकरण का जिक्र नहीं है। दो महीने में ऐसे करीब 10 मामले सामने आए, लेकिन पंजीकरण नहीं हो सका। विदेशी नागरिक से शादी होने के बाद विवाह पंजीकरण में आधार कार्ड की अनिवार्यता बाधा बन रही है। उत्तराखंड में नेपाल की महिलाएं भी काफी संख्या में स्थानीय युवाओं से विवाह हो रहे हैं। 2. लिव-इन: यूसीसी नियमों के अनुरूप लिव-इन वाले जोड़ों को पुलिस को सूचना देना अनिवार्य है। इससे इनकी निजता का उल्लंघन हो रहा। यदि कोई विवाह के समय नाबालिग था पर अब बालिग हो चुका है तो ऐसे में यूसीसी में इसे लेकर कोई नियम नहीं है। 3. जातिगत विवाह: सामान्य जाति संग अनुसूचित जनजाति का विवाह होता है तो पंजीकरण में दिक्कत आ रही है। उत्तराखंड की अनुसूचित जनजाति संग अन्य प्रदेशों के अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के विवाह की दशा में क्या निर्णय लिया जाना है। इसे लेकर भी पंजीकरण अधिकारियों में कई विरोधाभास हैं। ------------------------------------- यूसीसी से जुड़ी ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़ें... धामी सरकार का UCC कानून लागू, लिव-इन कपल्स परेशान:लिव-इन में रहने वालों का रजिस्ट्रेशन जरूरी, नहीं तो तीन महीने की जेल 33 साल की श्रेया देहरादून में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती हैं। करीब एक साल पहले समर्थ से मिलीं। समर्थ उनकी कंपनी में ही काम करते हैं। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। परिवार की बंदिशें थीं, इसलिए तुरंत शादी नहीं कर सकते थे। दोनों ने तय किया कि वे साथ रहेंगे। इसके बाद लिव-इन में रहने लगे। सब ठीक चल रहा था कि 27 जनवरी को उत्तराखंड की धामी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी UCC लागू कर दिया। पूरी खबर पढ़ें...

उत्तराखंड: यूसीसी के 2 माह, कानून में दिक्कतें:कर्मचारी, वकील विरोध में उतरे, लिव-इन वाले भी परेशान; सरकार कर सकती है संशोधन
Kharchaa Pani - इस न्यूज़ आर्टिकल को लिखा है नेतानागरी की टीम द्वारा, जिसमें हमने उत्तराखंड में लागू की जा रही यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर हो रही समस्याओं पर चर्चा की है।
यूसीसी का प्रभाव
उत्तराखंड में यूसीसी लागू हुए दो महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन विभिन्न परेशानियाँ अब भी बनी हुई हैं। कर्मचारियों और वकीलों ने इसके विरोध में आवाज उठाई है। वे इस कानून के नकारात्मक प्रभावों के कारण गहरी चिंताओं से गुजर रहे हैं।
कर्मचारियों और वकीलों का विरोध
यूसीसी का कानून लागू होते ही कई कर्मचारी और वकील खुलकर इस कानून के खिलाफ उतरे। उन्हें लग रहा है कि यह कानून उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है और इससे उनके पेशेवर जीवन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वकीलों का कहना है कि यूसीसी से विवादों में भारी वृद्धि हो सकती है और इससे न्यायालयों पर दबाव बढ़ेगा।
लिव-इन संबंधों पर प्रभाव
लिव-इन संबंध रखने वाले लोग भी इस कानून से प्रभावित हुए हैं। यूसीसी के तहत उनके कानूनी स्थिति में अनिश्चितता पैदा हो गई है। इससे उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ सकता है। लिव-इन पार्टनरिंग को लेकर बनी समस्याएं समाज में आपसी भरोसे को कम कर सकती हैं।
सरकार का संभावित संशोधन
सरकार ने इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए संशोधन करने पर विचार करने का संकेत दिया है। माना जा रहा है कि मंत्रालय इसका एक नया प्रारूप तैयार करेगा, जिससे सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रह सकें। इसके लिए जरूरी है कि सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श किया जाए।
निष्कर्ष
यूसीसी लागू होने के बाद उत्तराखंड में इसे लेकर हुए विवाद एक बेहद गंभीर मुद्दा बनते जा रहे हैं। चाहे वह कानून के कर्मचारियों का विरोध हो या वकीलों की चिंताएँ, यह स्पष्ट है कि सरकार को इसे ठीक करने के लिए आगे आना होगा। इस बीच, लिव-इन संबंधों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों से वंचित न हो।
कम शब्दों में कहें तो, उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद कई समस्याएँ सामने आई हैं। सरकारी संशोधन की संभावनाएँ जताई जा रही हैं। अधिक जानकारी के लिए, kharchaapani.com पर जाएँ।
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