भारत और अमेरिका मिलकर भारत में परमाणु रिएक्टर बनाएंगे:2007 में हुए समझौते को 18 साल बाद अमेरिकी प्रशासन की मंजूरी मिली
अमेरिका एनर्जी डिपार्टमेंट (DoE) ने अमेरिकी कंपनी को भारत में संयुक्त तौर पर न्यूक्लियर पावर प्लांट डिजाइन और निर्माण के लिए अंतिम मंजूरी दे दी है। भारत और अमेरिका के बीच 2007 में सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी, जिसके तहत ही 26 मार्च को यह मंजूरी दी गई है। अब तक भारत-अमेरिका सिविल परमाणु समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियां भारत को परमाणु रिएक्टर और इक्विपमेंट निर्यात कर सकती थीं, लेकिन भारत में न्यूक्लियर इक्विपमेंट के किसी भी डिजाइन कार्य या मैन्युफैक्चरिंग पर रोक थी। भारत लगातार इस बात पर डटा हुआ था कि डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर हर काम भारत में ही होना चाहिए। संयुक्त रूप से करेंगे स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर का निर्माण अमेरिकी और भारतीय कंपनियां अब संयुक्त रूप से स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) का निर्माण करेंगी और इसके सभी कम्पोनेंट्स और पार्ट्स का को-प्रोडक्शन भी करेंगी। इसे भारत की एक बड़ी कूटनीति जीत के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, अमेरिका ने शर्त रखी है कि संयुक्त रूप से डिजाइन और निर्मित परमाणु रिएक्टर्स को अमेरिकी सरकार की पूर्व लिखित सहमति के बिना भारत या अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश में किसी अन्य संस्था को रि-ट्रांसफर नहीं किया जाएगा। स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट से भारत सरकार को क्या फायदे हैं? भारत 6 वजहों से बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट की तुलना में छोटे-छोटे न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाना चाहता है…

भारत और अमेरिका मिलकर भारत में परमाणु रिएक्टर बनाएंगे: 2007 में हुए समझौते को 18 साल बाद अमेरिकी प्रशासन की मंजूरी मिली
लेखिका: साक्षी शर्मा, टीम नेतनागरी
टैगलाइन: खर्चा पानी
परिचय
भारत और अमेरिका ने पिछले 18 वर्षों में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हाल ही में, अमेरिका ने भारत के साथ 2007 में हुए परमाणु सहयोग समझौते को अंतिम रूप दिया है, जिसके तहत दोनों देशों ने मिलकर भारत में परमाणु रिएक्टर निर्माण का निर्णय लिया है। यह खबर न केवल भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे दोनों देशों के बीच संबंध और भी मजबूत होंगे।
समझौते का महत्व
2007 में भारत और अमेरिका के बीच हुए इस समझौते का उद्देश्य भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना था। अब, 18 साल बाद अमेरिकी प्रशासन ने इस समझौते की पुष्टि की है, जो दोनों देशों के बीच स्थायी और विश्वसनीय ऊर्जा सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और अनेक रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे।
नवीनतम अपडेट्स
अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रशासन ने इस परियोजना के लिए आवश्यक अनुमति दी है। इसके तहत भारत में बुनियादी ढांचे का विकास होगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। इस निर्णय से यह उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका भारतीय बाजार में अपनी तकनीकी क्षमता का विस्तार करेगा।
भारत की प्राथमिकताएं
भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए ठोस उपाय करने की आवश्यकता है। इस परियोजना के माध्यम से भारत को स्वच्छ और सुरक्षित ऊर्जा मिलेगी, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार ने पहले ही अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को निर्धारित कर लिया है और इस सहयोग से उसे एक नई दिशा मिलेगी।
दो देशों के बीच संबंध
भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुए हैं। यह समझौता इस बात का संकेत है कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ खड़े हैं और साझा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन से दोनों देशों के बीच और अधिक सहयोग की संभावनाएं खुलेंगी।
निष्कर्ष
इस समझौते की मंजूरी से भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सहयोग की नई संभावनाएं खुल गई हैं। इससे न केवल ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होगी, बल्कि यह भारत की विकसित अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। हम देखेंगे कि यह समझौता आगे चलकर कैसे फल-फूलता है और दोनों देशों के विकास में योगदान देता है।
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