छत्तीसगढ़ के साहित्यकार विनोद शुक्ल को ज्ञानपीठ:प्रदेश से किसी साहित्यकार को पहली बार सम्मान मिलेगा, 'नौकर की कमीज' पर बन चुकी है फिल्म
छत्तीसगढ़ के रायपुर के रहने वाले हिंदी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा। इसकी घोषणा आज (शनिवार) नई दिल्ली में ज्ञानपीठ चयन समिति ने की है। छत्तीसगढ़ से किसी साहित्यकार को पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा। दरअसल, 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल पिछले 50 साल से लेखन कर रहे हैं। विनोद कुमार शुक्ल की पहली कविता संग्रह 'लगभग जय हिंद' 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानी संग्रह पेड़ पर कमरा और महाविद्यालय भी बहुचर्चित है। विनोद शुक्ल के उपन्यास नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में शुमार हैं। उनके उपन्यास 'नौकर की कमीज' पर जाने-माने फिल्मकार मणिकौल ने एक फिल्म भी बनाई थी। अमेरिकन नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई विनोद कुमार शुक्ल कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है। हाल के वर्षों में उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी दिया गया है। पिछले ही साल उन्हें पेन अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के लिए नाबोकॉव अवॉर्ड से सम्मानित किया था। एशिया में इस सम्मान को पाने वाले वे पहले साहित्यकार हैं। इन कविताओं को भी सराहा गया इसी तरह लगभग जयहिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, जैसे कविता संग्रह की कविताओं को भी दुनिया भर में सराहा गया है। बच्चों के लिए लिखे गए हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी रचनाओं को भी पाठकों ने हाथों-हाथ लिया है। दुनिया भर की भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हो चुके हैं। जानिए ज्ञानपीठ पुरस्कार के बारे में ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास की तरफ से भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो 8वीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो, इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में 11 लाख रुपए, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। 1965 में 1 लाख रुपए की पुरस्कार राशि से शुरू हुए इस पुरस्कार को 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया, जो वर्तमान में 11 लाख रुपए हो चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को दिया गया था। ----------------------------------------- इससे संबंधित यह खबर भी पढ़िए... साहित्य में योगदान, 41 लाख रु. का अवॉर्ड: मैंने कभी पुरस्कार के लिए नहीं लिखा है: विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के शीर्षस्थ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव अवॉर्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर-2023 से सम्मानित किया जाएगा। यह सम्मान उन्हें 2 मार्च को प्रदान किया जाएगा। वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं, जिन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है। यह अवॉर्ड विश्व साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए दिया जा रहा है। इस पुरस्कार के रूप में उन्हें 50 हजार डॉलर की राशि प्रदान की जाएगी, जो भारतीय मुद्रा में 41 लाख रुपए से ज्यादा की राशि होगी। पढ़ें पूरी खबर...

छत्तीसगढ़ के साहित्यकार विनोद शुक्ल को ज्ञानपीठ: प्रदेश से किसी साहित्यकार को पहली बार सम्मान मिलेगा, 'नौकर की कमीज' पर बन चुकी है फिल्म
लीड: छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह सम्मान प्रदेश से किसी साहित्यकार को पहली बार मिल रहा है। उनके लेखन पर आधारित फिल्म 'नौकर की कमीज' भी हाल ही में पूरी हुई है।
विनोद शुक्ल का साहित्यिक सफर
विनोद शुक्ल का जन्म 1937 में छत्तीसगढ़ के महेंद्रगढ़ में हुआ था। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से चित्रित किया है। शुक्ल जी की कविताएं, उपन्यास और निबंध भारतीय साहित्य में एक नई दिशा की ओर इंगित करते हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'नौकर की कमीज', 'रात की गई' और 'आवाज़' शामिल हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार का महत्व
ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारतीय साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसे हर साल उन लेखकों को दिया जाता है जिनके लेखन ने भाषा और साहित्य दोनों में नई ऊंचाइयों को छुआ है। विनोद शुक्ल का यह सम्मान न केवल उनके लिए बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए भी गर्व का विषय है।
फिल्म 'नौकर की कमीज'
विनोद शुक्ल की चर्चित कृति 'नौकर की कमीज' पर एक फिल्म बनाई गई है। इस फिल्म का निर्देशन लोकप्रिय फिल्म निर्माता ने किया है, और यह कहानी एक साधारण नौकर के अनुभवों और उसकी जिंदगी की जद्दोजहद को बयां करती है। इस फिल्म के माध्यम से शुक्ल जी की कहानी को एक नया जीवन मिलता है।
क्यों खास है यह सम्मान?
यह पुरस्कार सिर्फ विनोद शुक्ल के लिए व्यक्तिगत तौर पर एक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक परिदृश्य को भी उजागर करता है। इससे साहित्य के प्रति नई पीढ़ी में रुचि जगाने की संभावना बढ़ जाती है। इससे पहले, छत्तीसगढ़ के किसी साहित्यकार को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया था। यह पुरस्कार न केवल शुक्ल जी की मेहनत और समर्पण का मान्यता है, बल्कि स्थानीय साहित्यिक समुदाय के लिए भी प्रेरणास्रोत रहेगा।
समापन विचार
विनोद शुक्ल के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने की खबर ने साहित्य प्रेमियों में उत्साह का संचार किया है। उनकी रचनाएँ और विचार हमेशा समाज को दिशा देने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें गर्व है कि छत्तीसगढ़ के एक सtrue साहित्यकार ने भारतीय साहित्य में इस तरह की मील का पत्थर स्थापित किया है। उनकी कहानी और योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
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