चामुंडा माता का शरीर जमीन में विराजमान और सिर बाहर:पृथ्वीराज चौहान मां को धोक देकर जाते थे युद्ध करने, तलवार के साथ होती है आरती
चैत्र नवरात्र का आज (गुरुवार) छठा दिन है। मां दुर्गा की घरों और मंदिरों में विशेष पूजा हो रही है। अजमेर के 1140 साल पुराने मां चामुंडा माता मंदिर में भी विशेष सजावट की गई है। 151 शक्तिपीठ में शामिल इस मंदिर में मां चामुंडा का शरीर जमीन में विराजमान और सिर बाहर है। तलवार के साथ चार पहर की आरती की जाती है। हर नवरात्रि पर यहां 9 दिन का भंडारा होता है। इस मंदिर की स्थापना राजा पृथ्वीराज चौहान के सेनापति ने की थी। कहा जाता है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान मां का आशीर्वाद लेकर ही युद्ध मैदान में जाते थे। नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर पढ़िए मां चामुंडा माता मंदिर से जुड़ी मान्यता और इतिहास... मां चामुंडा का ऐतिहासिक मंदिर बोराज गांव में अरावली की पहाड़ियों पर 1300 फीट ऊपर बना हुआ है। 11वीं शताब्दी में राजा पृथ्वीराज चौहान के सेनापति ने मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर की देखभाल बोराज गांव के लोग मिलकर करते है। मंदिर परिसर में मां चामुंडा के साथ गंगा मां, श्री भोलेनाथ, भोलेनाथ भगवान का पूरा परिवार, बालाजी महाराज और भैरूजी महाराज का मंदिर भी है। मंदिर में प्रवेश से पहले हाथ-पैरों को पानी से धोना होता है। गर्भ गृह में जाने के लिए चमड़े का बेल्ट व अन्य सामान उतारना होता है। हाथ में ज्योत और तलवार के साथ होती आरती मंदिर के पुजारी मदन सिंह रावत ने बताया- मां चामुंडा चौहान वंश की आराध्य देवी हैं। हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान हर दिन मां के दर्शन के लिए आते थे। मां अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करती हैं। नवरात्रि में 9 दिन तक मां की विशेष आराधना की जाती है। मां चामुंडा की सजावट की जाती है। सुबह 5, 9 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम को सूर्यास्त पर चार टाइम आरती होती है। हाथ में ज्योत लेकर चारों तरफ तलवार और ढोल बाजों के साथ आरती की जाती है। नवरात्रि के आखिरी दिन मां का विशेष श्रृंगार होगा। 9 दिन तक लच्छे की पूजा की जाती है। बाद में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है। सावन की अष्टमी पर मंदिर में मेला लगता है। कुंड में पानी कहां से आता, आज तक पता नहीं पुजारी ने बताया- मंदिर में एक धार्मिक कुंड भी आस्था का केंद्र है। यहां मां चामुंडा गंगा मां के साथ विराजमान हुई थीं। यह ढाई फीट गहरा और ढाई फीट चौड़ा कुंड है। गर्मी और ठंड के हिसाब से पानी का टेंपरेचर अपने आप बदलता रहता है। इसके पानी से नवरात्र सहित हर दिन मंदिर परिसर की धुलाई की जाती है। कुंड के पानी से कई तरह के रोग भी दूर होते हैं। मां का श्रृंगार भी इसी पानी से किया जाता है। कुंड में पानी कहां से आता है। यह आज तक पता नहीं चल पाया है। गांव में माता की ज्योत की परिक्रमा तेरस पर माता की ज्योत गांव में ढोल-बाजे के साथ घुमाई जाती है। ज्योत के साथ पूरे गांव में परिक्रमा की जाती है। इस दौरान गांव में सुख-शांति की दुआ की जाती है। मां चामुंडा अपने भक्तों की कामना को पूरी करती है। भक्त अपना घर बनाने की कामना को लेकर पहाड़ी पर पत्थर से मकान बनाकर जाते हैं। दावा किया जाता है कि कई भक्तों की घर बनने की कामना को मां ने पूरा किया है।

चामुंडा माता का शरीर जमीन में विराजमान और सिर बाहर: पृथ्वीराज चौहान मां को धोक देकर जाते थे युद्ध करने, तलवार के साथ होती है आरती
Kharchaa Pani - यह अद्भुत कहानी चामुंडा माता की है, जिनका शरीर जमीन में विराजमान है और सिर बाहर है। इस अनोखी मान्यता के पीछे एक रोचक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, जिसे सुनकर हर कोई चकित रह जाता है। इस लेख में हम आपको चामुंडा माता की विशेषताएं और उनके साथ जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताएंगे।
चामुंडा माता की महिमा
चामुंडा माता, जिन्हें शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है, का बहुत बड़ा स्थान है। ये माँ दुर्गा के एक रूप हैं और इन्हें युद्ध और विजय की देवी के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि जब पृथ्वीराज चौहान धर्मयुद्ध करने जाते थे, तो वे अपने मां को धोक देते थे। उस समय वह तलवार के साथ उनकी आरती भी करते थे, जिससे उन्हें शक्ति मिलती थी।
मंदिर का महत्व
चामुंडा माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में स्थित है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और लोककथाओं का भी एक हिस्सा है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का विश्वास है कि देवी की कृपा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
पृथ्वीराज चौहान और चामुंडा माता का संबंध
पृथ्वीराज चौहान, जो एक प्रसिद्ध राजपूत सम्राट थे, ने चामुंडा माता की आराधना की थी। युद्ध से पहले, पृथ्वीराज हमेशा माता से सुरक्षा और विजय की प्रार्थना करते थे। उनके विश्वास के अनुसार, देवी की शक्ति ही उन्हें युद्ध में विजय दिलाती थी। यह माना जाता है कि जब भी वह युद्ध के लिए जाते थे, तो उन्होंने हमेशा अपनी तलवार को माता के चरणों में रखकर आरती की।
आरती की विशेषता
चामुंडा माता की आरती में विशेष ध्यान दिया जाता है। इस आरती में देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए दीप जलाए जाते हैं और शंख नाद किया जाता है। यह आरती श्रद्धालुओं को शौर्य, समर्पण और धैर्य का पाठ पढ़ाती है। हर वर्ष विशेष पर्वों पर, इस आरती का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
निष्कर्ष
चामुंडा माता का इतिहास और उनकी आराधना का तरीका हमें यह सिखाता है कि विश्वास और श्रद्धा में कितनी ताकत होती है। पृथ्वीराज चौहान का चामुंडा माता के प्रति सम्मान और श्रद्धा ने हमारी संस्कृति को एक नए आयाम तक पहुँचाया। इस संदर्भ में माता की कृपा से जुड़ी किंवदंतियां और मंदिरों का महत्व आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय हैं।
इस अद्भुत कहानी के माध्यम से, हमने चामुंडा माता और पृथ्वीराज चौहान के संबंध को समझने की कोशिश की है। आगे भी ऐसी ही कहानियों के लिए, kharchaapani.com पर विजिट करें।
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