गुजरात फैक्ट्री हादसा- जो बचे उन्हें जिंदगीभर का दर्द:किसी ने भाई के चिथड़े देखे, कोई हाथ के कलावा से बेटा पहचान सका
गुजरात पटाखा फैक्ट्री विस्फोट में एमपी के 20 लोगों की मौत हो गई। 18 का अंतिम संस्कार गुरुवार को देवास के नेमावर घाट पर किया गया। हादसे में जो लोग जिंदा बचे हैं, उन्हें जिंदगीभर का दर्द मिला है। शवों के साथ गुजरात से वो चश्मदीद भी आए, जो यहां से फैक्ट्री में मजदूरी करने गए थे। किसी ने अपनों के चिथड़े उड़ते देखे तो किसी का शरीर इस तरह झुलस चुका था कि उसकी शिनाख्त हाथ में बंधे कलावा से हो सकी। दो शवों की शिनाख्त तो अब तक नहीं हो सकी है। एक पिता के बेटे का शव दो टुकड़ों में मिला- सिर अलग और धड़ अलग। भास्कर ने हरदा और खातेगांव के उन चश्मदीदों से बात की, जिनकी आंखों के सामने 1 अप्रैल को यह भयावह हादसा हुआ। उन परिजन से भी बात की, जो अपनों का शव लेकर गुजरात से लौटे, पढ़िए रिपोर्ट... पुलिसकर्मी ने फोन किया- बेटा अस्पताल में है खातेगांव के यादव मोहल्ला में पंकज शाक्य का घर है। घर पर मां- पिता के साथ पंकज और उनके दो भाई रहते थे। पंकज की दो बेटियां और एक बेटा है। बेटा जन्म से ही दिव्यांग है। पंकज के पिता देवीलाल शाक्य कहते हैं- मुझे हादसे के बाद गुजरात पुलिस के एक जवान ने पंकज के नंबर से कॉल करके कहा कि पंकज हॉस्पिटल में है। आप लोग उसे लेने आ जाओ। हम गाड़ी करके गुजरात पहुंचे। पंकज बुरी तरह झुलस चुका था। उसका एक हाथ ठीक था, जिसमें ओम का निशान बना था और हाथ में कलावा बंधा था। उससे ही मैं अपने बेटे को पहचान पाया। देवीलाल ने बताया कि पंकज पहले हरदा के सेठ राजू अग्रवाल की गाड़ी चलाता था। वो उनके साथ ही रहता था। जब पिछले साल उनकी हरदा वाली पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट हो गया, तब से पंकज बेरोजगार हो गया था। कोई भी छोटा-मोटा काम कर लेता था। कुछ महीनों पहले ही राजू सेठ ने पंकज को वापस बुलाकर कहा कि अब गुजरात में काम करना है। वहां अच्छे पैसे मिलेंगे। उसी के कहने पर वो मजदूरों को लेकर वहां गया। पत्नी बोली- कहकर गए थे कि 8 दिन में लौट आऊंगा पंकज की पत्नी ललिता ने कहा- मुझसे कहा था कि मैं मजदूरों को गुजरात छोड़कर 8 दिन में लौट आऊंगा। पहले हरदा वाली पटाखा फैक्ट्री में काम करते थे। हरीश और अमन के साथ ही ये गुजरात में बंद पड़ी पटाखे की फैक्ट्री चालू करने जाते थे। ये लोग कौन थे, मैं नहीं जानती लेकिन इनके साथ हंडिया की लक्ष्मी भी थी। वो भी हरदा वाले राजू अग्रवाल के लिए ही काम करती थी। लक्ष्मी विधवा थी, दो बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही थी बार-बार लक्ष्मी का नाम बतौर मजदूरों के मेट के रूप में सामने आने पर हम उसके घर हंडिया पहुंचे। एक बंद मैदा मिल के कैंपस के अंदर बने दो कमरों में लक्ष्मी का भाई ललित और उसकी मां रहते हैं। ललित इसी मिल में गार्ड की नौकरी करता है। लक्ष्मी की मां आशा बाई ने बताया- लक्ष्मी और उसके पति, राजू अग्रवाल की फैक्ट्री में गार्ड का काम करते थे। दो साल पहले फैक्ट्री में ही कूलर से करंट लगने से लक्ष्मी के पति की मौत हो गई थी। ब्लास्ट के बाद जब फैक्ट्री बंद हुई तो लक्ष्मी बेरोजगार हो गई। उसकी 18 और 16 साल की दो बेटियां हैं। इनकी जिम्मेदारी अकेले उसी पर थी। इसीलिए वो अपनी दोनों लड़कियों को हमारे पास छोड़कर गुजरात पैसा कमाने गई थी। आप लोगों को पटाखे चाहिए तो किसी गरीब को मरना पड़ेगा लक्ष्मी की मां आशा बाई ने कहा- जो लोग पटाखा फैक्ट्री में मर गए, वो तो सब गरीब थे। बेचारे थोड़ा पैसा कमाने चले गए थे। कोई पाप नहीं किया था, लेकिन आप लोगों को भी तो पटाखे चाहिए। शादी हो या दिवाली… क्या बिना पटाखों के पहले नहीं होती थी। अब इसके लिए कोई गरीब तो मरेगा न? अब उनकी आपबीती, जो गुजरात से लौटे हैं… परिजन का अंतिम संस्कार भी नहीं देख सके पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट की जानकारी लगते ही हंडिया गांव के 25 लोग परिजन के शव लेने गुजरात पहुंचे थे। वे मंगलवार की रात को यहां से निकले और बुधवार की सुबह गुजरात पहुंचे। सभी ने मृतकों के शव देखे। गुजरात मजदूरी करने गए लोगों में से 3 लोग ही बचे हैं। इनमें 22 साल का राजेश, 14 साल का बिट्टू और 3 साल की नैना है। राजेश और बिट्टू सगे भाई हैं। हादसे में इनके बीच वाले भाई विष्णु (18) की मौत हो गई है। जो बचे हैं, वो अपने घर वापस आ गए हैं। लेकिन इन्हें लौटने में देरी हो गई और ये अपने परिजन का अंतिम संस्कार नहीं देख पाए, क्योंकि शव गुरुवार की सुबह ही हरदा पहुंच चुके थे। सुबह करीब साढ़े 8 बजे उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। जबकि शवों को लेने गुजरात पहुंचे परिजन शाम 5 बजे अपने घर लौटे। बेटे का धड़ नहीं मिला, डीएनए जांच के बाद मिलेगा शव संतोष नायक ने बताया- यहां के 24 मजदूरों के साथ मेरा 10 साल का बेटा संजय नायक भी गुजरात काम करने गया था। हम लोगों को गुजरात में अपने सभी परिजन की डेडबॉडी मिल गई, लेकिन वहां संजय की डेडबॉडी नहीं थी। वहां मौजूद पुलिस के अफसरों ने मुझे बताया कि एक डेडबॉडी है जिसका सिर नहीं है, सिर्फ धड़ है। कुछ घंटे के बाद पुलिस वाले मुझे अस्पताल में डॉक्टर के पास ले गए। उन्होंने मेरा ब्लड निकाला। उन्होंने कहा कि जांच होने के बाद मालूम पड़ेगा कि वो डेडबॉडी किसकी है। मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि एक दो घंटे में पता लग जाएगा। दो हिस्सों में बंटी बॉडी, डीएनए टेस्ट से शिनाख्त संतोष ने आगे बताया- मैं दो घंटे बाद फिर पुलिस अफसरों और डॉक्टर के पास गया। उन्होंने कहा कि बॉडी की हालत गंभीर है। दो हिस्सों में बंट गई है। उसका डीएनए टेस्ट होगा। पता लगाने में दो-तीन दिन भी लग सकते हैं। हम सब रात तक बेटे की बॉडी मिलने का इंतजार करते रहे। हम वहां पहुंचे ही थे कि उसके एक घंटे बाद ही सुबह 10 बजे प्रशासन के लोग हमारे बाकी मृत परिजन के शव लेकर एमपी के लिए रवाना हो गए थे। शव गुरुवार की सुबह यहां पहुंच गए। हम बुधवार की रात 10 बजे वहां से निकले और गुरुवार की शाम 5 बजे यहां पहुंचे। सभी शवों की हालत खराब हो चुकी थी। वो सड़ने लगे थे, इसलिए हमारे यहां पहुंचने से पहले ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। पत्नी को कंगन और तीन बेटों को गले के रुद्रा

गुजरात फैक्ट्री हादसा- जो बचे उन्हें जिंदगीभर का दर्द: किसी ने भाई के चिथड़े देखे, कोई हाथ के कलावा से बेटा पहचान सका
Kharchaa Pani
लेखिका: स्नेहा शर्मा, टीम नेतानागरी
परिचय
गुजरात के एक फैक्ट्री में हुए भयानक हादसे ने न केवल कई परिवारों को भंग कर दिया है, बल्कि कई लोगों की जिंदगी में अनगिनत जख्म छोड़ दिए हैं। इस हादसे में मारे गए व्यक्तियों के परिवार अब सदमे में हैं, जहां एक ओर वे अपने प्रियजनों को खो चुके हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें उस दर्द का सामना करना पड़ रहा है जो जिंदगी भर रह जाएगा।
हादसे का विवरण
गुजरात के सूरत जिले में स्थित एक फैक्ट्री में अचानक आग लग गई, जिससे वहां काम कर रहे कई श्रमिकों की जान गई। प्रारंभिक रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हादसे में 30 से अधिक लोग मारे गए हैं। स्थानीय प्रशासन ने घटना की जांच शुरू कर दी है और मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
निर्मम दृश्य
इस हादसे के बाद कई परिवारों ने अपने प्रियजनों के शवों को पहचाना। किसी ने अपने भाई के चिथड़ों को देखा, तो किसी ने हाथ के कलाई से अपने बेटे को पहचाना। यह दृश्य बेहद दर्दनाक था, जो हर किसी को जीवन भर याद रहेगा। मृतकों के परिवारों को देरी से जानकारी मिली, जिससे उनके दुख और बढ़ गए।
दुख के साये में परिवार
हादसे में बचे लोग भी सदमे में हैं। जहां एक ओर कुछ ने अपने साथियों को खोया, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे हैं जो गंभीर रूप से घायल हुए हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इलाज के बाद भी इन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
सरकार की ओर से कदम
राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने का आश्वासन दिया है। सीएम ने कई बार दुर्घटनास्थल का दौरा किया और अधिकारियों को निर्देशित किया कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन क्या यह समस्याओं का समाधान करेगा?
भविष्य की चिंताएं
फैक्ट्रियों की सुरक्षा की कमी और मजदूरों के अधिकारों का उल्लंघन हमेशा चर्चा का विषय रहा है। इस हादसे के बाद, यह साबित हो गया है कि नियमों का पालन करना कितना आवश्यक है। क्या हम चेहरों पर मुस्कान लौटाने के लिए कोई ठोस ढांचा तैयार करेंगे, या फिर हम इस दर्द को भुला देंगे?
निष्कर्ष
गुजरात फैक्ट्री हादसा केवल एक दर्दनाक घटना नहीं है, बल्कि यह समाज की उस स्थिति की ओर इशारा करता है जहां हमें सुरक्षा और अधिकारों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। यह वक्त है, जब हम जाने वाले लोगों के प्रति संवेदना दिखाने के साथ-साथ बचे हुए लोगों के लिए भी एक नई सूरत देने का प्रयास करें। एक सच्चाई यह भी है कि पीड़ितों के परिवारों को जीवित रहकर इस दर्द का सामना करना होगा।
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