सुप्रीम कोर्ट बोला- 'खून के प्यासे' कविता में गलत क्या:इसमें हिंसा का संदेश नहीं, कांग्रेस सांसद प्रतापगढ़ी पर दर्ज FIR रद्द की
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस की तरफ से दर्ज FIR सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रद्द कर दी। यह FIR उनके इंस्टाग्राम पोस्ट 'ऐ खून के प्यासे बात सुनो' कविता को लेकर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने फैसले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए पुलिस और निचली अदालतों की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, “कोई अपराध नहीं हुआ है। जब आरोप लिखित रूप में हों, तो पुलिस अधिकारी को इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए। बोले गए शब्दों का सही अर्थ समझना जरूरी है। कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है, बल्कि यह अहिंसा को बढ़ावा देती है।' जस्टिस ओका ने पुलिस की कार्यशैली पर कहा, “संविधान के 75 साल बाद भी पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व समझना चाहिए। यह अधिकार तब भी संरक्षित किया जाना चाहिए, जब बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करें।" कविता में कोई विवादित बात नहीं- सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अभय ओका ने कहा कि भले ही न्यायाधीशों को कोई बात पसंद न आए, फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संवैधानिक संरक्षण देना जरूरी है। मुक्त भाषण सबसे मूल्यवान अधिकारों में से एक है। जब पुलिस इसका सम्मान नहीं करती, तो न्यायालयों को आगे आकर इसकी रक्षा करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि भले ही बहुत से लोग किसी दूसरे के विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन विचारों को व्यक्त करने के व्यक्ति के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए। कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है। 46 सेकेंड के वीडियो पर FIR हुई थी FIR में आरोप लगाया गया है कि इमरान प्रतापगढ़ी ने 29 दिसंबर को अपने एक्स हैंडल पर कविता की 46 सेकेंड की वीडियो क्लिप पोस्ट की थी। बैकग्राउंड में 'ऐ खून के प्यासे बात सुनो' गीत बज रहा था। इमरान प्रतापगढ़ी ने जामनगर में आयोजित सामूहिक लगन समारोह में शिरकत करने के बाद यह सोशल मीडिया पोस्ट की थी। हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (धर्म या नस्ल के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कथन) के तहत मामला दर्ज किया गया था।प्रतापगढ़ी ने इस FIR को रद्द करने के लिए पहले गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन 17 जनवरी को हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि जांच शुरुआती चरण में है और प्रतापगढ़ी ने जांच में सहयोग नहीं किया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। प्रतापगढ़ी बोले- कविता प्रेम और अहिंसा का संदेश देती है प्रतापगढ़ी के इस वीडियो क्लिप में दिखाया गया है कि जब वह हाथ हिलाते हुए चल रहे थे तो उन पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाई जा रही थीं और पृष्ठभूमि में एक गाना बज रहा था। प्रतापगढ़ी ने प्राथमिकी रद्द करने के लिए दाखिल याचिका में दावा किया कि पृष्ठभूमि में पढ़ी जा रही कविता प्रेम और अहिंसा का संदेश देती है। ------------------------------------- इमरान प्रतापगढ़ी से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... इमरान प्रतापगढ़ी बोले- बजट में अमीरों को प्राथमिकता दी:संसद में कहा- अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में हुई कटौती, महंगाई पर सरकार चुप संसद में कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने केंद्रीय बजट पर तीखा हमला बोला। आरोप लगाया कि यह बजट गरीबों की अनदेखी और अमीरों को फायदा पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि बजट में महंगाई से जूझ रहे आम लोगों के लिए कोई राहत नहीं दी गई, जबकि अमीरों के हितों को प्राथमिकता दी गई है। पूरी खबर पढ़ें...

सुप्रीम कोर्ट बोला- 'खून के प्यासे' कविता में गलत क्या:इसमें हिंसा का संदेश नहीं, कांग्रेस सांसद प्रतापगढ़ी पर दर्ज FIR रद्द की
Kharchaa Pani
लेखक: साक्षी शर्मा, टीम नीतानगरी
परिचय
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है, जिसमें उन्हें उनकी कविता 'खून के प्यासे' के लिए आरोपी बनाया गया था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है। इस निर्णय ने न केवल प्रतापगढ़ी को राहत दी है, बल्कि इस मामले में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को भी उजागर किया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 'खून के प्यासे' कविता में ऐसी कोई बात नहीं है जो इसे आपत्तिजनक बनाती हो। अदालत ने प्रतापगढ़ी की रचनात्मक स्वतंत्रता की सराहना की और कहा कि साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। न्यायालय का यह फैसला सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
कविता का विश्लेषण
प्रतापगढ़ी की यह कविता कई सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डालती है, लेकिन इसकी प्रस्तुति में उनकी शैली ने इसे विवाद का विषय बना दिया। कविता के द्वारा उठाए गए मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनमें समाज में असमानता और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर जोर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि कविता को संदर्भ में समझना चाहिए, न कि विभाजन करने वाले दृष्टिकोण से।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
इस निर्णय के बाद, कई राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया है। उन्होंने कहा कि यह घटना स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। प्रतापगढ़ी ने भी इस फैसले के बाद बयान दिया और कहा कि सृजनात्मकता को हमेशा सहेजकर रखना चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल प्रतापगढ़ी के लिए राहत का कारण बना, बल्कि यह भी दर्शाता है कि समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। साहित्यिक अभिव्यक्ति को हमेशा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि समाज में सकारात्मक परिवर्तन हो सके। इस संदर्भ में, हमारे इस विषय पर गहराई से सोचने की जरूरत है कि हम अपने विचारों को व्यक्त करने में कितने स्वतंत्र हैं।
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