सुप्रीम कोर्ट बोला- रेप पर इलाहाबाद HC की टिप्पणी असंवेदनशील:फैसले पर रोक; हाईकोर्ट ने कहा था- नाबालिग का ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें HC कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप नहीं। जस्टिस बीआर गवई और एजे मसीह की बेंच ने बुधवार को इस केस पर सुनवाई की। बेंच ने कहा, "हाईकोर्ट के आदेश में की गई कुछ टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय नजरिया दिखाती हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। एक दिन पहले मंगलवार को SC ने हाईकोर्ट के फैसले पर खुद सुनवाई का फैसला किया था। इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। हालांकि, पहले इसी केस पर दायर एक याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था। इस याचिका में जजमेंट के विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई थी। पहले जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या 'अटेम्प्ट टु रेप' का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने ये फैसला सुनाते हुए 2 आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। वहीं 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी। 3 साल पुराना मामला, मां ने दर्ज कराई थी FIR दरअसल, यूपी के कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप था लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। पीड़ित की मां FIR दर्ज कराने गई, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गालीगलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में FIR दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया। 21 मार्च 2022 को कोर्ट ने आवेदन को शिकायत के रूप में मानकर मामले को आगे बढ़ाया। शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया। आरोपियों ने समन आदेश से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के सामने पुनरीक्षण दायर किया। यानी कोर्ट से कहा कि इन आरोपों पर दोबारा विचार कर लेना चाहिए। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला 19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क। बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। ये खबर भी पढ़ें... आज का एक्सप्लेनर:बच्ची का प्राइवेट पार्ट पकड़ना, सलवार का नाड़ा तोड़ना बलात्कार की कोशिश नहीं है; इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का क्या असर होगा किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या 'अटेम्प्ट टु रेप' का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। क्या है पूरा मामला, कोर्ट ने क्यों कहा रेप की कोशिश और तैयारी में फर्क है और इस फैसले का क्या इम्पैक्ट होगा; पढ़िए पूरी खबर...

Mar 26, 2025 - 11:34
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सुप्रीम कोर्ट बोला- रेप पर इलाहाबाद HC की टिप्पणी असंवेदनशील:फैसले पर रोक; हाईकोर्ट ने कहा था- नाबालिग का ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें HC कहा था कि नाबालिग लड़की के

सुप्रीम कोर्ट बोला- रेप पर इलाहाबाद HC की टिप्पणी असंवेदनशील: फैसले पर रोक

Kharchaa Pani

लेखिका: स्नेहा शर्मा, टिम नेतानागरी

परिचय

भारत की न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी पर रोक लगाई है। इस टिप्पणी में कहा गया था कि नाबालिग का ब्रेस्ट पकड़ना और नाड़ा तोड़ना रेप की परिभाषा में नहीं आता। यह निर्णय समाज में यौन हिंसा के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाने की आवश्यकता पर जोर देता है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने जहां एक ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी को असंवेदनशील बताया है, वहीं इस संबंध में एक संकेत दिया कि ऐसे मामले गंभीरता से लिए जाने चाहिए। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अपराध के सामने आने पर हमें इसे एक गंभीर दृष्टिकोण से देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार के विचार किसी भी स्थिति में व्यक्त नहीं किए जाने चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का मत

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में यह टिप्पणी की थी, जिसके बाद एक व्यापक विवाद शुरू हो गया था। यह टिप्पणी उन घातक धारणाओं को प्रकट करती है जो समाज में मौजूद हैं। यहां तक कि एक भी पीड़ित को इस प्रकार की अभिव्यक्तियों से त्रस्त होना पड़ता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस विषय पर तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कई महिला अधिकार संगठनों ने इस टिप्पणी की आलोचना की है और इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। लोगों ने इस बात पर जोर दिया है कि महिलाओं और नाबालिगों के प्रति हमारे समाज में एक उचित दृष्टिकोण आवश्यक है।

महत्वपूर्ण सवाल

इस मामले के बाद एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि क्या हमारे न्यायिक सिस्टम में यौन हिंसा को लेकर पूरा संवेदनशीलता का अभाव है? क्या न्यायालयों के इस प्रकार के निर्णय समाज में बदलाव लाने की दिशा में उचित हैं?

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल एक कानूनी मुद्दा है, बल्कि यह समाज की भावनाओं को भी दर्शाता है। इसका संदेश स्पष्ट है कि हमें हर प्रकार की यौन हिंसा के खिलाफ एकजुट होना चाहिए और इसके प्रति सख्त होना चाहिए। समाज में इस तरह की असंवेदनशील टिप्पणियां हमें एक नई सोच की आवश्यकता का एहसास कराती हैं।

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Supreme Court, Allahabad HC, rape comments, minor, legal issues, women rights, sexual violence, social media reactions, justice system, sensitive issues.

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