रिलेशनशिप- बच्चे को अलग सुलाना चाहिए या पेरेंट्स के साथ:क्या कहता है साइंस, साइकोलॉजिस्ट से जानें को-स्लीपिंग के फायदे

आमतौर पर भारत में पेरेंट्स अपने छोटे बच्चों के साथ एक ही बिस्तर पर सोते हैं। इसे ‘को-स्लीपिंग’ कहा जाता है। इससे पेरेंट्स और बच्चे का रिश्ता मजबूत होता है। हालांकि अभी इसके फायदे और नुकसान दोनों पर बहस जारी है। दुनिया के जाने-माने एंथ्रोपोलॉजिस्ट डॉ. जेम्स जे. मैकेना ने को-स्लीपिंग पर एक किताब लिखी है। इसका नाम ‘सेफ इन्फेंट स्लीप: एक्सपर्ट आंसर्स टू योर को-स्लीपिंग क्वेश्चन्स’ है। डॉ. मैकेना की किताब इस बारे में जानकारी देती है कि कैसे को-स्लीपिंग बच्चे के विकास और पेरेंट्स की भलाई दोनों के लिए बेहद जरूरी है। डॉ. मैकेना ऑस्ट्रेलिया की ‘नोट्रे डेम यूनिवर्सिटी’ के ‘मदर-बेबी बिहेवियरल स्लीप लेबोरेटरी‘ के डायरेक्टर भी हैं। उन्होंने अपना करियर यह समझने में समर्पित किया है कि जब बच्चे और पेरेंट्स एक साथ या अलग सोते हैं तो इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ता है। उनके मुताबिक, पेरेंट्स को बच्चे के साथ सोना चाहिए, लेकिन सुरक्षित तरीके से। आज रिलेशनशिप कॉलम में हम को-स्लीपिंग के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- को-स्लीपिंग क्या है? जब पेरेंट्स अपने छोटे बच्चे के साथ एक ही बिस्तर पर या एक ही कमरे में सोते हैं तो इसे को-स्लीपिंग कहते हैं। यह बच्चों की देखभाल का एक पारंपरिक तरीका है। जब बच्चा पैदा होता है तो उसके लिए मां का स्पर्श बहुत फायदेमंद होता है। इसीलिए प्री-मैच्योर बेबी व कम वजन वाले बच्चों की देखभाल के लिए कंगारू केयर की सलाह दी जाती है। इसमें मां और बच्चे को स्किन-टू-स्किन संपर्क में रखा जाता है। इससे बच्चे और मां के बीच का रिश्ता मजबूत होता है। साथ ही बच्चे की हार्ट रेट, ब्रीदिंग रेट और वजन में सुधार होता है। को-स्लीपिंग तीन तरह की होती है। बेड-शेयरिंग: इसमें पेरेंट्स और बच्चा एक ही बिस्तर पर साथ सोते हैं। रूम-शेयरिंग: इसमें पेरेंट्स और बच्चा एक ही कमरे में सोते हैं, लेकिन दोनों का बिस्तर अलग होता है। को-स्लीपिंग कॉम्बिनेशन: इसमें पेरेंट्स और बच्चा कुछ समय के लिए एक साथ सोते हैं और फिर अलग हो जाते हैं। बच्चे को किस उम्र तक साथ सुलाना सही बच्चे को साथ सुलाने को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। इसके लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं है। हालांकि जन्म से 6 महीने तक माता-पिता को बच्चे के साथ जरूर सोना चाहिए क्योंकि इस दौरान बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग और केयर की ज्यादा जरूरत होती है। आमतौर पर 1 से 2 साल की उम्र तक बच्चे को पेरेंट्स के साथ सोने में कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अलग कमरे में सोने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, ताकि वे स्वावलंबी हो सकें। हालांकि हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चे जल्दी स्वतंत्र हो जाते हैं, जबकि कुछ बच्चों को अधिक समय लगता है। इसलिए अपने बच्चे की जरूरतों को समझें और उसी के अनुसार निर्णय लें। को-स्लीपिंग के फायदे को-स्लीपिंग के कई फायदे हैं, जो बच्चे और पेरेंट्स दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- आइए अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बात करते हैं। बच्चे को आती बेहतर नींद जब बच्चा अपने पेरेंट्स के करीब होता है तो वह अधिक सुरक्षित महसूस करता है। इससे उसको अच्छी और गहरी नींद आती है। पेरेंट्स की मौजूदगी से बच्चे को रात में डर लगने या अकेलेपन का अहसास नहीं होता है। इससे उसकी नींद भी बार-बार नहीं टूटती है। रिश्ता होता मजबूत एक साथ सोने से माता-पिता और बच्चे के बीच फिजिकल और इमोशनल जुड़ाव बढ़ता है। यह जुड़ाव बच्चे के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे उसे अपने पेरेंट्स से प्यार और सुरक्षा का अहसास होता है। ब्रेस्टफीडिंग में आसानी एक साथ सोने से रात में बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने के लिए मां को बार-बार उठने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे वह और बेबी दोनों आराम से सो पाते हैं और ब्रेस्ट फीडिंग की फ्रीक्वेंसी भी मेंटेन रहती है। बच्चे को मिलता इमोशनल सपोर्ट पेरेंट्स के करीब होने से बच्चे को सुरक्षित महसूस होता है, खासकर रात के समय जब उसे डर लग सकता है। माता-पिता का स्पर्श और उनकी मौजूदगी बच्चे को इमोशनल सपोर्ट देती है। इससे वह अधिक आत्मविश्वास महसूस करता है। तनाव होता कम बच्चे के साथ सोने से पेरेंट्स को उसकी देखभाल करने में आसानी होती है, जिससे उनका तनाव कम होता है। बच्चे को भी अपने माता-पिता के करीब होने से सुकून मिलता है। साथ ही उसे भी किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होता है। देखभाल करने में होती आसानी बच्चे खासकर नवजात शिशुओं के साथ सोने से पेरेंट्स को उसकी हर गतिविधि पर नजर रखने में आसानी होती है। वे बच्चे की सांस लेने, हार्ट बीट और अन्य जरूरतों की निगरानी कर सकते हैं। बच्चे को अकेले सुलाना कितना सही 50 के दशक में अमेरिका के जाने-माने पीडियाट्रिशियन डॉ. बेंजामिन स्पॉक ने एक किताब लिखी थी। इसका नाम ‘द कॉमन सेंस बुक ऑफ बेबी एंड चाइल्ड केयर’ है। ये किताब बीसवीं सदी की सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में से एक है। इस किताब में डॉ. स्पॉक ने सुझाव दिया है कि नवजात शिशुओं को अकेले सोने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि इस किताब के पब्लिश होने के कुछ सालों बाद तमाम मनोवैज्ञानिकों और पीडियाट्रिशियन ने उनके तर्क को खारिज किया। उन्होंने प्रामाणिक रूप से बच्चे के साथ पेरेंट्स के सोने के महत्व को बताया। बच्चे के साथ सोने के संभावित नुकसान कुछ मामलों में नवजात शिशु के साथ सोना संभावित रूप से खतरनाक हो सकता है। कई बार बच्चे भारी बिस्तर या एडल्ट शरीर से खुद को बाहर नहीं निकाल पाते हैं। इससे उनके फंसने, दम घुटने और सडेन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा को-स्लीपिंग में थोड़ी सी असावधानी शिशु के लिए खतरनाक हो सकती है। उदाहरण के लिए पेरेंट्स के पास सोते समय बच्चे के ऊपर दबाव आ सकता है या अन्य खतरे हो सकते हैं। को-स्लीपिंग से बच्चे को स्वावलंबी होने में समय लग सकता है। इसके कारण बच्चे को आत्मनिर्भरता और आत्मसुरक्षा सीखने में मुश्किल हो

Mar 21, 2025 - 05:34
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रिलेशनशिप- बच्चे को अलग सुलाना चाहिए या पेरेंट्स के साथ:क्या कहता है साइंस, साइकोलॉजिस्ट से जानें को-स्लीपिंग के फायदे

रिलेशनशिप- बच्चे को अलग सुलाना चाहिए या पेरेंट्स के साथ: क्या कहता है साइंस, साइकोलॉजिस्ट से जानें को-स्लीपिंग के फायदे

Kharchaa Pani

लेखिका: स्नेहा ठाकुर, नेपालगंज

टीम: नेतानागरी

क्या आपको अपने बच्चे को बिस्तर पर सुलाने में दुविधा होती है? क्या यह सही है कि बच्चों को अपने पेरेंट्स के साथ सोने देना चाहिए या उन्हें अलग सुलाना चाहिए? इस लेख में हम इस विषय पर विज्ञान और मनोविज्ञान के नजरिये से चर्चा करेंगे।

को-स्लीपिंग की परिभाषा

को-स्लीपिंग का मतलब है कि बच्चे और माता-पिता एक ही बिस्तर पर सोते हैं। यह एक सामान्य प्रथा है जो पूरी दुनिया में देखी जाती है। स्टडीज़ यह बताते हैं कि को-स्लीपिंग से न केवल बच्चे के विकास में सहायता मिलती है, बल्कि माता-पिता के लिए भी यह सुखद अनुभव होता है।

अलग सुलाने के नकारात्मक प्रभाव

कई पेरेंट्स मानते हैं कि बच्चों को अलग सुलाना बेहतर है, ताकि वे स्वायत्त हो सकें। लेकिन मनोवैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि इससे बच्चे में अकेलेपन की भावना विकसित हो सकती है। विशेषकर छोटे बच्चों के लिए रात का समय चिंता और डर का समय होता है। ऐसे में माँ-बाप के पास होना उन्हें सुरक्षा का अहसास कराता है।

को-स्लीपिंग के फायदे

को-स्लीपिंग के कई फायदे हैं:

  • भावनात्मक सुरक्षा: मां-बाप के पास सोने से बच्चे को भावनात्मक सुरक्षा मिलती है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • कम रोना: बच्चों को ज्यादा रोने की आदत नहीं होती, क्योंकि वे अपने माता-पिता के स्पर्श का अनुभव करते हैं।
  • सोने की बेहतर आदतें: बच्चे जल्दी सो जाते हैं और उनकी नींद में भी सुधार होता है।
  • संवेदनशीलता: माता-पिता भी रात के समय बच्चे की जरूरतों के प्रति अधिक सचेत रहते हैं।

विज्ञान की दृष्टि

अध्ययन बताते हैं कि को-स्लीपिंग से हार्मोन ऑक्सिटोसिन का स्तर बढ़ता है, जो माता-पिता और बच्चों के बीच के बंधन को मजबूत करता है। इससे बच्चे का मानसिक विकास भी सकारात्मक दिशा में बढ़ता है।

विशेषज्ञ की राय

हमने मनोवैज्ञानिक डॉ. रीना गुप्ता से इस विषय पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारत में बच्चों को अपने माता-पिता के साथ सोने देना एक संतानपालन का हिस्सा है। वह बच्चों की भावना को समझाने और उनके डर को कम करने में मदद करता है।

निष्कर्ष

इस विषय पर ध्यान देते हुए यह कहना उचित होगा कि को-स्लीपिंग एक बेहतर विकल्प हो सकता है, खासकर छोटे बच्चों के लिए। हालांकि, यह पेरेंट्स की व्यक्तिगत पसंद भी है। अंततः, बच्चों को सुरक्षा और प्यार की जरूरत होती है, जो उन्हें माता-पिता के पास रहने से मिलती है।

फिर भी, इस पर अंतिम निर्णय लेना पेरेंट्स के हाथ में है। उनके अपने बच्चे की जरूरतों के ज्ञान से ही सही विकल्प चुनना होगा। बच्चों की भावनाओं का सम्मान करना और उन्हें सुरक्षित महसूस कराना सबसे जरूरी है।

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