इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- प्राइवेट पार्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप नहीं:भाजपा सांसद ने कहा- अगर जज ही संवेदनशील नहीं, तो महिलाएं और बच्चियां क्या करेंगी?
यूपी के कासगंज की 11 साल की बच्ची के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा की राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, अगर जज ही संवेदनशील नहीं होंगे, तो महिलाएं और बच्चियां क्या करेंगी? उन्होंने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, उन्हें किसी भी कृत्य के पीछे की मंशा को देखना चाहिए। रेखा शर्मा ने मांग की कि NCW को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए। सांसद ने यह भी कहा कि जजों को समझाया जाना चाहिए कि वे ऐसे फैसले नहीं दे सकते। यह पूरी तरह गलत है, और मैं इसके खिलाफ हूं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, किसी नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना या उसे घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश का मामला नहीं बनता है। हाईकोर्ट ने गंभीर आरोपों में संशोधन करने का आदेश दिया इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने केस को अपराध की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर बताया। साथ ही निचली अदालत के द्वारा तय गंभीर आरोप में संशोधन का आदेश दिया। अदालत ने 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली। अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (b) (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। निचली अदालत को नए सिरे से सम्मन जारी करने का निर्देश दिया। लिफ्ट देने के बहाने किया यौन उत्पीड़न कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़िता की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत का रुख किया। आरोपियों ने निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली। इस मामले में जज ने तीन सवाल उठाए आरोपियों की ओर से वकील अजय कुमार वशिष्ठ ने तर्क दिया कि अभियुक्तों पर लगाई गई धाराएं सही नहीं हैं। वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से वकील इंद्र कुमार सिंह और राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि समन जारी करने के लिए केवल प्रथम दृष्टया मामला साबित करना आवश्यक होता है, न कि विस्तृत सुनवाई करना। जस्टिस ने कहा- पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश के आरोप नहीं जस्टिस राम मनोहर मिश्र ने 17 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा, रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि मामला केवल तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंदर दृढ़ संकल्प की अधिकता में है। इस मामले में अभियुक्त आकाश पर आरोप है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका नाड़ा तोड़ दिया। लेकिन गवाहों ने यह नहीं कहा कि इसके कारण पीड़िता के कपड़े उतर गए। न ही यह आरोप है कि अभियुक्त ने पीड़िता से पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला 19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क। बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। ----------------------- यह खबर भी पढ़िए... मर्चेंट नेवी ऑफिसर की पत्नी ने पति की हत्या की:बॉडी के टुकड़े किए, 12 दिन बॉयफ्रेंड के साथ घूमी; इंस्टाग्राम पर वीडियो-फोटो डालती रही लंदन से लौटकर मेरठ आए मर्चेंट नेवी में अफसर सौरभ कुमार राजपूत की उनकी पत्नी मुस्कान रस्तोगी ने हत्या कर दी। इस काम में उसका साथ बॉयफ्रेंड साहिल शुक्ला उर्फ मोहित ने दिया। बेडरूम में सोते समय पति के सीने में मुस्कान ने ही पहला चाकू मारा। मौत के बाद लाश को बाथरूम में ले गए। जहां साहिल ने हाथ-पैर समेत शरीर के 4 टुकड़े किए। बॉडी को ठिकाने लगाने के लिए प्लास्टिक के ड्रम में टुकड़े डाले। फिर उसमें सीमेंट का घोल भर दिया। पढ़ें पूरी खबर...

इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- प्राइवेट पार्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप नहीं: भाजपा सांसद ने कहा- अगर जज ही संवेदनशील नहीं, तो महिलाएं और बच्चियां क्या करेंगी?
खर्चा पानी
अभी हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक संवेदनशील निर्णय ने पूरे देश में विवाद खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि "प्राइवेट पार्ट पकड़ना" और "नाड़ा तोड़ना" रेप की श्रेणी में नहीं आता। इस निर्णय के बाद भाजपा सांसद ने न्यायपालिका के इस दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर जज इस तरह की संवेदनशीलता नहीं दिखाते हैं, तो महिलाएं और बच्चियां अपना क्या करेंगी?
कोर्ट के निर्णय का सार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आरोपित के द्वारा पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को छूने या नाड़ा तोड़ने को रेप नहीं माना जा सकता। न्यायालय के इस फैसले ने कई न्याय विशेषज्ञों और समाजसेवियों को चिंतित कर दिया है और इसे महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के संदर्भ में अंतरिक्ष दिया जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमारे न्याय प्रणाली में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की कोई जगह है?
भाजपा सांसद का बयान
इस निर्णय पर भाजपा सांसद ने कहा, "अगर उच्च न्यायालय के जज इस मुद्दे पर संवेदनशील नहीं हैं, तो हमारी महिलाएं और बच्चियां किससे उम्मीद करेंगी? क्या उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए कभी भी न्यायपालिका पर भरोसा नहीं करना चाहिए?" सांसद का यह बयान महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण बात उठाता है।
समाज कैसे प्रभावित हो रहा है?
इस तरह के निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी प्रभाव डालते हैं। जब न्याय व्यवस्था इस तरह की बातों को सामान्य मान लेती है, तो यह महिलाओं के प्रति समाज के विचारों को और भी प्रभावित करता है। कई महिलाएं ऐसे मामलों में अपनी आवाज उठाने से कतराने लगती हैं, क्यूंकि उन्हें लगता है कि न्यायालय उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेगा।
क्या करें महिलाएं और बच्चियां?
महिलाओं और बच्चियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए उन्हें संवेदनशीलता की आवश्यकता है। समाज में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा के माध्यम से इस मुद्दे को हल किया जा सकता है। यह जरूरी है कि हम सभी मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाएं, जिसमें महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें और अपनी आवाज को उठाने में संकोच न करें।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय ने एक बार फिर से समाज में चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय बनाया है। भाजपा सांसद के बयान ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सच में हमारी न्यायपालिका महिलाएं और बच्चियां के प्रति संवेदनशील है? यह समय है कि हम एक नई सोच की शुरुआत करें और महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं।
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