महिला सहकर्मी को देखकर गाना सेक्शुअल हैरेसमेंट नहीं:बॉम्बे हाईकोर्ट बोला- बालों पर कमेंट करना भी यौन उत्पीड़न नहीं होता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, 'वर्कप्लेस पर महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करना या सॉन्ग गाना सेक्सुअल हैरेसमेंट नहीं है।' कोर्ट ने 18 मार्च के आदेश में ये टिप्पणी की। जस्टिस संदीप मार्ने ने कहा- भले ही याचिकाकर्ता पर लगे आरोपों को सही माना जाए, लेकिन इन आरोपों से सेक्सुअल हैरेसमेंट को लेकर ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। कोर्ट ने यह दरअसल, पुणे में HDFC बैंक के एसोसिएट रीजनल मैनेजर विनोद कछावे पर साल 2022 में महिला सहकर्मी ने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया। कहा कि कछावे ने उसके बालों पर टिप्पणी की और गाना गाया। आरोप लगाया कि अन्य महिला सहकर्मियों के सामने पुरुष सहकर्मी के निजी अंग के बारे में टिप्पणी भी की। बैंक की इंटरनल कमेटी की रिपोर्ट में कछावे को दोषी माना। उन्हें पद से डिमोट कर दिया गया। कछावे ने कमेटी की रिपोर्ट के पुणे की इंडस्ट्रियल कोर्ट में चैलेंज किया, लेकिन कोर्ट ने जुलाई 2024 में कछावे की याचिका को खारिज कर दिया। उन्हें महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम) के तहत दोषी माना। कछावे ने इंडस्ट्रियल कोर्ट के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चैलेंज किया। कोर्ट ने कछावे के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इंडस्ट्रियल कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा- इंडस्ट्रियल कोर्ट ने तथ्यों को नजरअंदाज हाईकोर्ट ने कहा कि बैंक की कंप्लेंट कमेटी ने इस बात पर गौर ही नहीं किया कि क्या कछावे का बिहेवियर सेक्सुअल हैरेसमेंट वाला है या नहीं। इंडस्ट्रियल कोर्ट ने भी जो निष्कर्ष निकाला वो भी सही नहीं था। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर महिला के आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो भी महिला के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट कोई मामला नहीं बनता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बैंक की सितंबर 2022 की इंटरनल जांच रिपोर्ट और इंडस्ट्रियल कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया। कछावे ने कहा था- महिला अपने बालों को JCB से संभाल रही होगी सुनवाई के दौरान कछावे के वकील ने कहा कि ये मामला POSH एक्ट में नहीं आता। कछावे ने केवल इतना कहा था कि महिला सहकर्मी अपने बालों को जेसीबी से संभाल रही होगी। दूसरी टिप्पणी के दौरान महिला मौके पर मौजूद नहीं थी। महिला ने कंपनी से इस्तीफा देने के बाद सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत की थी। ................................. हाईकोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- प्राइवेट पार्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप नहीं यूपी के कासगंज की 11 साल की बच्ची के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा की राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, अगर जज ही संवेदनशील नहीं होंगे, तो महिलाएं और बच्चियां क्या करेंगी? पूरी खबर पढ़ें...

महिला सहकर्मी को देखकर गाना सेक्शुअल हैरेसमेंट नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट बोला- बालों पर कमेंट करना भी यौन उत्पीड़न नहीं होता
Kharchaa Pani - इस लेख को लिखा है स्नेहा शर्मा, टीम नेटानागरी।
परिचय
हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें उसने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति अपने सहकर्मी पर गाना गाता है या उसके बालों पर टिप्पणी करता है, तो इसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है। इस निर्णय ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
मामले का पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब एक महिला कर्मचारी ने अपने सहकर्मी पर यह आरोप लगाया कि उसने उसके बालों और पहनावे पर भद्दे कमेंट किए और गाने गाकर उसे अपमानित किया। महिला ने इस व्यवहार को यौन उत्पीड़न मानते हुए न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय
बॉम्बे हाईकोर्ट ने उच्च न्यायालय में दिए अपने फैसले में कहा कि एक सहकर्मी द्वारा गाने गाना और उसके बालों पर टिप्पणी करना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है। जस्टिस ने स्पष्ट किया कि अगर यह टिप्पणी या व्यवहार किसी भी प्रकार से उस व्यक्ति की गरिमा को नुकसान नहीं पहुँचाता, तो इसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।
सकारात्मक पहलू और प्रतिक्रियाएं
कई विशेषज्ञों ने इस निर्णय का स्वागत किया है, जबकि कुछ ने इसे निराशाजनक माना है। उनका कहना है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति व्यवहार को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इस प्रकार के टिप्पणियों को रोकने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान
भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे में, कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय इस मुद्दे को रेखांकित करता है कि हमें यौन उत्पीड़न के मसले को और अधिक संवेदनशीलता से देखने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति व्यवहार के संदर्भ में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इससे स्पष्ट होता है कि यौन उत्पीड़न की परिभाषा को पुनर्विचार की आवश्यकता है। समाज के हर तबके को इस दिशा में जागरूक होकर काम करना चाहिए ताकि महिलाओं को एक सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थलीय माहौल मिल सके।
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