इलाहाबाद हाईकोर्ट जज का कमेंट- प्राइवेट पार्ट पकड़ना रेप नहीं:केंद्रीय मंत्री बोलीं- समाज में ऐसे फैसलों के लिए जगह नहीं, सुप्रीम कोर्ट एक्शन ले
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले पर विवाद शुरू हो गया है। कोर्ट ने कहा था कि किसी महिला का प्राइवेट पार्ट पकड़ना और उसकी पजामे की डोरी खींचना रेप नहीं है। अब केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को पूरी तरह गलत बताया है। उन्होंने कहा- सुप्रीम कोर्ट को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सभ्य समाज में इस तरह के फैसले के लिए कोई जगह नहीं है। कहीं न कहीं इसका समाज पर गलत असर पड़ेगा। टीएमसी और AAP सांसदों ने भी नाराजगी जाहिर की टीएमसी सांसद जून मालिया ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा, "यह बहुत शर्मनाक और महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता का उदाहरण है। हमें ऐसी मानसिकता से बाहर आना होगा।" वहीं, आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "मैं यह समझ ही नहीं पा रही कि आखिर इस फैसले के पीछे क्या तर्क दिया गया? सुप्रीम कोर्ट को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।" ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर केस चलाने कहा, हाईकोर्ट ने खारिज किया ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) सहित अन्य धाराओं में मुकदमा चलाने के आदेश दिए थे। लेकिन आरोपियों ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की टिप्पणी पर विवाद हो गया। जस्टिस मिश्रा ने क्या कहा था... अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (b) (निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। निचली अदालत को नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया। लिफ्ट देने के बहाने किया यौन उत्पीड़न कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देशी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़ित की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने कोर्ट में अपील की। जस्टिस ने कहा- पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश के आरोप नहीं जस्टिस राम मनोहर मिश्र ने 17 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा, रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि मामला केवल तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंदर दृढ़ संकल्प की अधिकता में है। इस मामले में अभियुक्त आकाश पर आरोप है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका नाड़ा तोड़ दिया। लेकिन गवाहों ने यह नहीं कहा कि इसके कारण पीड़िता के कपड़े उतर गए। न ही यह आरोप है कि अभियुक्त ने पीड़िता से पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला 19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क। बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। ----------------------- यह खबर भी पढ़िए... मर्चेंट नेवी ऑफिसर की पत्नी ने पति की हत्या की:बॉडी के टुकड़े किए, 12 दिन बॉयफ्रेंड के साथ घूमी; इंस्टाग्राम पर वीडियो-फोटो डालती रही लंदन से लौटकर मेरठ आए मर्चेंट नेवी में अफसर सौरभ कुमार राजपूत की उनकी पत्नी मुस्कान रस्तोगी ने हत्या कर दी। इस काम में उसका साथ बॉयफ्रेंड साहिल शुक्ला उर्फ मोहित ने दिया। बेडरूम में सोते समय पति के सीने में मुस्कान ने ही पहला चाकू मारा। मौत के बाद लाश को बाथरूम में ले गए। जहां साहिल ने हाथ-पैर समेत शरीर के 4 टुकड़े किए। बॉडी को ठिकाने लगाने के लिए प्लास्टिक के ड्रम में टुकड़े डाले। फिर उसमें सीमेंट का घोल भर दिया। पढ़ें पूरी खबर...

इलाहाबाद हाईकोर्ट जज का कमेंट- प्राइवेट पार्ट पकड़ना रेप नहीं: केंद्रीय मंत्री बोलीं- समाज में ऐसे फैसलों के लिए जगह नहीं, सुप्रीम कोर्ट एक्शन ले
Kharchaa Pani
लेखिका: साक्षी शर्मा, नेतानागरी टीम
परिचय
हाल में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जज द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान ने समाज में हलचल मचा दी है। जज का कहना था कि "प्राइवेट पार्ट पकड़ना रेप नहीं"। इस पर केंद्रीय मंत्री ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि समाज में ऐसे फैसलों के लिए कोई जगह नहीं है। आइए, इस मामले के विभिन्न पहलुओं पर एक नज़र डालते हैं।
प्रकरण का विवरण
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उनका यह बयान उस समय आया जब एक आरोपी ने अपने बचाव में कहा कि उसने केवल "प्राइवेट पार्ट" को छुआ था, जो कि उस पर लगे रेप के आरोप को कमज़ोर करने के लिए दिया गया एक तर्क था।
केंद्रीय मंत्री का बयान
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि इस तरह के विवादित बयान केवल महिला सुरक्षा और सम्मान को कमज़ोर करते हैं। ईरानी ने कहा, "समाज में किसी भी प्रकार के ऐसे निर्णयों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हमें इस पर सख्ती से कार्रवाई करनी होगी।" उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मामले में कार्रवाई की मांग की है, ताकि ऐसे जजों को जिम्मेदार ठहराया जा सके जो महिलाओं के अधिकारों का अपमान करते हैं।
समाजिक दृष्टिकोण
इस विवाद ने समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराधों के प्रति जागरूकता को बढ़ाया है। समाज में ऐसे बयानों की निंदा की जा रही है, जहां महिलाओं की गरिमा को उचित रूप से नहीं समझा जा रहा है। लोग सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर अपनी सोच साझा कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि समाज अब इन बातों को रोकना चाहता है।
विविधता और समावेशिता की आवश्यकता
हमें इस मामले में एक गहरी समझ की आवश्यकता है। यह केवल एक कानूनी मामला नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त सोच का भी प्रतिनिधित्व करता है। जब जज जैसे लोग ऐसे बयान देते हैं, तो यह संकेत देता है कि न्यायालयों में भी समानता और कानूनी प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस विवादास्पद टिप्पणी ने फिर से महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा उठाया है। केंद्रीय मंत्री का इस पर कड़ा रुख इस बात का प्रमाण है कि समाज को इन मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्यायालय भी समाज में बदलाव का प्रतीक बने और महिलाओं के खिलाफ अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
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