सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी डेडलाइन तय की:कहा- राज्यपाल जो बिल भेजते हैं, उन पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा
अपनी तरह के पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने देश के राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। शुक्रवार रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी। गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट, 4 पॉइंट्स 1. फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं। 2. ज्यूडिशियल रिव्यू: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा। अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा। 3. राज्य को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे। 4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी। राज्यपालों ने के लिए भी समय सीमा तय की थी, कहा था- वीटो पावर नहीं 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के मामले पर गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया। कोर्ट ने कहा कि यह मनमाना कदम है और कानून के नजरिए से सही नहीं। राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी। अदालत ने कहा था कि विधानसभा से पास बिल पर राज्यपाल एक महीने के भीतर कदम उठाएं। सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के जरूरी बिलों को रोककर रखा है। बता दें कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में काम कर चुके पूर्व IPS अधिकारी आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था। ------------------------------------ ये खबर भी पढ़ें... तमिलनाडु के 10 बिल रोकने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त:राज्यपाल के फैसले को बताया अवैध, कहा- आप संविधान से चलें, पार्टियों की मर्जी से नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (8 अप्रैल) को ऐतिहासिक फैसले में राज्यपालों के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है।’ पूरी खबर पढ़ें...

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी डेडलाइन तय की: कहा- राज्यपाल जो बिल भेजते हैं, उन पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा
Kharchaa Pani
लेखक: सुमिता शर्मा, टीम नेटानागरी
परिचय
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें राष्ट्रपति की भूमिका पर एक नई डेडलाइन का निर्धारण किया गया है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए बिलों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो लोकतंत्र और शासन की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने में सहायक होगा।
पृष्ठभूमि
राज्यपालों की शक्तियों का प्रयोग और राष्ट्रपति द्वारा विधियों पर विचारार्थ समय सीमा के अभाव में अक्सर प्रारंभिक अनिश्चितता पैदा होती थी। यह निर्णय विशेष रूप से तब आवश्यक हो गया जब कई मामलों में बिलों पर समय पर निर्णय नहीं लिया जाता था। न्यायालय ने इस दिशा में कदम उठाते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने एक विवेचनात्मक सुनवाई के बाद कहा कि "राज्यपाल द्वारा जो बिल भेजे जाते हैं, उन पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा।" यह फैसला न केवल संवैधानिक प्रावधानों को मजबूत करेगा, बल्कि राष्ट्रपति के अधिकारों का सही उपयोग सुनिश्चित करने में भी मदद करेगा।
महत्व और प्रभाव
इस आदेश का कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रभाव पड़ेगा। सबसे पहले, यह विधायी प्रक्रिया की पारदर्शिता और अधिकृतता को बढ़ाएगा। राष्ट्रपति को अब बिलों पर तेजी से निर्णय लेना होगा, जिससे राजनैतिक और प्रशासनिक कार्य प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सकेगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक प्रगति है। इस निर्णय से यह सुनिश्चित होगा कि राष्ट्रपति के पास विधायिका के मामलों में शीघ्रता से कार्रवाई करने की क्षमता हो। यह न केवल कानून के शासन को मजबूत करेगा, बल्कि सार्वजनिक विश्वास को भी बढ़ाएगा। इस प्रकार की निर्णय प्रक्रिया से जुड़ी पारदर्शिता प्रणाली में सुधार लाने का एक प्रभावी साधन बन सकती है।
आगे चलकर इस निर्णय का कार्यान्वयन किस प्रकार किया जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। इस महत्वपूर्ण समाचार से जुड़ी अपडेट्स के लिए, कृपया kharchaapani.com पर जाएँ।
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