रिलेशनशिप- जब पेरेंट्स का फेवरेट हो कोई एक बच्चा:तो दूसरे पर पड़ता है क्या प्रभाव, पेरेंट्स के लिए रिलेशनशिप कोच की 4 सलाह

भाईयों और बहनों के बीच एक बात को लेकर हमेशा बहस होती है कि मम्मी-पापा किसे ज्यादा प्यार करते हैं? यह बातें पेरेंट्स को भले ही मजाक लगती हों, लेकिन बच्चे वास्तव में ऐसा महसूस करते हैं। हालांकि, इसमें बच्चों की गलती नहीं होती है। उन्हें जैसा महसूस होता है, वे वैसा ही बयान करते हैं। कई बच्चे तो यह समझ ही नहीं पाते हैं कि उनके साथ ऐसा कुछ हो रहा है। हालांकि, माता-पिता से मिला कम प्यार या उपेक्षा का प्रभाव उनके पूरे जीवन पर पड़ता है। हम सब इंसान हैं और किसी एक से अधिक प्यार करना या लगाव रखना नेचुरल ह्यूमन बिहेवियर है। हम इससे बच नहीं सकते हैं। हालांकि, बच्चा जैसा भी है आपका ही है। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो, जो उसके मेंटल और इमोशनल हेल्थ को नुकसान पहुंचाए। ऐसे में आज हम रिलेशनशिप कॉलम में जानेंगे कि- पेरेंट्स किसी एक बच्चे को ज्यादा प्यार क्यों करते हैं? 'साइकोलॉजिकल बुलेटिन' में छपी एक स्टडी के मुताबिक, पेरेंट्स उन बच्चों के प्रति ज्यादा झुकाव रखते हैं, जो जिम्मेदार और समझदार होते हैं। हालांकि, पेरेंट्स इस बात को मानने से हिचकिचाते हैं। इसकी अन्य कई सारी वजहें भी हो सकती हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। समझदार और जिम्मेदार बच्चे: साइकोलॉजिकल बुलेटिन की स्टडी के मुताबिक, जो बच्चे समझदार होते हैं, हर काम को अच्छे से करते हैं, मिलनसार और दयालु होते हैं। लोगों के बीच आसानी से घुल-मिल जाते हैं। उन्हें माता-पिता से ज्यादा प्यार मिलता है। माता-पिता की पहली संतान: घर के बड़े बच्चों को ज्यादा आजादी मिलती है। उनकी बात सुनी जाती है। ऐसे में छोटे बच्चा यह महसूस कर सकता है कि बड़े भाई या बहन को उनसे ज्यादा प्यार किया जाता है। पेरेंट्स की पसंद का जेंडर: भारतीय समाज में लड़कियों की तुलना में लड़कों ज्यादा प्यार मिलता है। कई परिवारों में आज भी लोग संतान के रूप में लड़का ही चाहते हैं। पेरेंट्स के स्वभाव से मेल खाता बच्चे का स्वभाव: ऐसे बच्चे जिनके साथ माता-पिता की पसंद या स्वभाव अधिक मिलते हैं, उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। ऐसे में दूसरे बच्चे कम प्यार का अनुभव कर सकते हैं। किसी बीमारी या कमजोरी से परेशान बच्चा: जब कोई बच्चा किसी बीमारी से ग्रस्त है या किसी अन्य परेशानी में उलझा हुआ है, तो उसे ज्यादा प्यार की जरूरत हो सकती है। किसी एक बच्चे पर ज्यादा प्यार लुटाने से दूसरे बच्चे पर इसका क्या असर होता है? जब माता-पिता किसी एक बच्चे पर ज्यादा प्यार लुटाते हैं, तो दूसरा बच्चा उपेक्षित महसूस कर सकता है। ऐसे में उसके मेंटल और इमोशनल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यह उसके करियर और जिंदगी दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। आत्मविश्वास की कमी: अगर कोई बच्चा बार-बार महसूस करता है कि उसके भाई-बहन को ज्यादा प्यार या तवज्जो मिल रही है, तो वो खुद को कमतर समझने लगता है। उसे लगता है कि वह काबिल नहीं है। इससे उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। भाई-बहनों में तनाव: जब एक को ज्यादा प्यार मिले और दूसरे को कम, तो मन में ईर्ष्या, गुस्सा और नाराजगी आना स्वाभाविक है। ऐसे में छोटे-छोटे झगड़े बड़े झगड़े में बदल सकते हैं और रिश्ते में दूरियां आ सकती हैं। यह असर सिर्फ बचपन में नहीं, बल्कि बड़े होकर भी बना रह सकता है। माता-पिता से दूरी बन जाना: जिस बच्चे को उपेक्षित महसूस होता है, वह माता-पिता से खुलकर बात करना बंद कर देता है। वह सोचता है कि उसकी भावनाएं समझी नहीं जाती हैं। इससे उनके रिश्ते में भावनात्मक दूरी आ जाती है और बच्चा अकेलापन महसूस करने लगता है। अटेंशन पाने की कोशिशें: जब किसी को प्यार नहीं मिलता, तो वो अटेंशन पाने के लिए नकारात्मक तरीके अपनाने लगता है। जैसे जिद और गुस्सा करना या गलतियां करना। ताकि पेरेंट्स का ध्यान उसकी तरफ जाए, भले ही डांट के रूप में ही क्यों न हो। सामाजिक जीवन पर असर: ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो उन्हें दूसरों से घुलने-मिलने में, दोस्त बनाने या रिश्ते निभाने में परेशानी हो सकती है। आत्मविश्वास की कमी और अविश्वास की भावना उन्हें समाज से अलग कर सकती है। मानसिक तनाव और अवसाद: लगातार उपेक्षा का असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। बच्चे चिंता, तनाव या डिप्रेशन में जा सकते हैं और अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं। बदले की भावना: कई बार उपेक्षित बच्चा दूसरों के प्रति बदले की भावना पालने लगता है। चाहे वो माता-पिता हों या भाई-बहन। ये भावना धीरे-धीरे गहरी होती जाती है और रिश्तों में खटास ला सकती है। खुद को दोष देना: सबसे खतरनाक असर ये होता है कि बच्चा सोचने लगता है कि वो प्यार के लायक है ही नहीं। हर बात के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है। क्या पेरेंट्स जानबूझकर फेवरेटिज्म करते हैं? आमतौर पर पेरेंट्स अनजाने में ही किसी एक बच्चे से ज्यादा जुड़ जाते हैं, जैसे मिलनसार या खुलकर भावनाएं जताने वाले बच्चे ज्यादा ध्यान खींचते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे दूसरों को प्यार नहीं करते, बस उनके व्यवहार में संतुलन की कमी हो सकती है। हालांकि, कुछ मामलों में पेरेंट्स जानबूझकर फेवरेटिज्म करते हैं। पेरेंट्स खुद को फेवरेटिज्म से कैसे बचा सकते हैं? सचेत रहें: अपने व्यवहार पर समय-समय पर नजर डालें। क्या आप किसी एक बच्चे से ज्यादा सख्त या ज्यादा नरम तो नहीं हैं?बातचीत करें: बच्चों से खुलकर बात करें और उन्हें भरोसा दिलाएं कि हर एक उनके लिए खास है। समय बराबर बांटे: हर बच्चे के साथ कुछ वक्त अकेले में बिताएं, उनकी बातों को सुनें और उनकी पसंद-नापसंद को जानें। तुलना करने से बचें: बच्चों की एक-दूसरे से कभी तुलना न करें। हर बच्चे का हुनर, सोच और जरूरतें अलग होती हैं। पेरेंटल फेवरेटिज्म से भाई-बहनों के रिश्ते पर क्या असर पड़ता है? इसका फेवरेट और नापंसद किए जाने वाले दोनों बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है। आइए इसे बुलेट प्वाइंट्स में समझते हैं। ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा: जब एक को ज्यादा प्य

Apr 16, 2025 - 06:34
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रिलेशनशिप- जब पेरेंट्स का फेवरेट हो कोई एक बच्चा:तो दूसरे पर पड़ता है क्या प्रभाव, पेरेंट्स के लिए रिलेशनशिप कोच की 4 सलाह

रिलेशनशिप- जब पेरेंट्स का फेवरेट हो कोई एक बच्चा: तो दूसरे पर पड़ता है क्या प्रभाव, पेरेंट्स के लिए रिलेशनशिप कोच की 4 सलाह

Kharchaa Pani

लेखिका: सृष्टि कपूर, पूजा शर्मा, टीम नेटानगरी

परिचय

कई परिवारों में यह देखने को मिलता है कि पेरेंट्स का किसी एक बच्चे के प्रति झुकाव अधिक होता है, जबकि दूसरे बच्चे को कम समर्थन या ध्यान मिलता है। इस स्थिति के कई प्रभाव होते हैं, न केवल परिवार की डाइनैमिक्स पर, बल्कि बच्चों के मनोविज्ञान पर भी। यहां हम जानेंगे कि कैसे यह प्रभाव पड़ता है और पेरेंट्स के लिए कैसे अपनी चुनौतीपूर्ण स्थिति को संभालें।

फेवरिट बच्चे का प्रभाव

जब पेरेंट्स का प्यार किसी एक बच्चे पर अधिक होता है, तो यह न केवल अन्य बच्चे के आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, बल्कि परिवार के वातावरण को भी तनावपूर्ण बना सकता है। कई बार, फेवरेट बच्चा अपनी स्थिति का लाभ उठाकर गैर-फेवरेट बच्चे को तंग कर सकता है, जिससे एक नकारात्मक प्रतिसंवाद उत्पन्न होता है।

भावनात्मक और मानसिक प्रभाव

जो बच्चा फेवरेट नहीं होता, वह अक्सर अपनी जरूरतों को नजरअंदाज किए जाने की भावना से ग्रसित रहता है। नतीजतन, बच्चे में आत्मसम्मान की कमी, चिंता, और अवसाद जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं। यह बच्चे की क्रियाकलापों, स्कूल में प्रदर्शन और सामाजिक संबंधों पर भी असर डालता है।

पेरेंट्स के लिए सलाह

1. सभी बच्चों को बराबर प्यार दें: यह सुनिश्चित करें कि सभी बच्चों को समान प्रेम और ध्यान मिले। व्यक्तिगत समय बिताना और सभी बच्चों के साथ एकसमान व्यवहार करना आवश्यक है।

2. भावनाओं को सुनें: बच्चों की भावनाओं को सुनना जरूरी है। जब कोई बच्चा अपनी चिंताओं को साझा करता है, तो उन्हें गंभीरता से लें और समझने की कोशिश करें।

3. सकारात्मक संवाद: बच्चों के साथ सकारात्मक बातचीत करें, इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। उन्हें यह महसूस कराने का प्रयास करें कि हर एक बच्चा विशेष है।

4. विशेष पल बिताएं: हर बच्चे के साथ विशेष समय बिताना जरूरी है। उदाहरण के लिए, एक छोटे लड़के के साथ खेलना या किसी लड़की के साथ शॉपिंग पर जाना। इससे बच्चों के बीच पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं।

निष्कर्ष

रिलेशनशिप में ईमानदारी और समानता महत्वपूर्ण हैं। पेरेंट्स को अपने बच्चों को सशक्त बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, ताकि सभी बच्चे सुरक्षित और प्यार भरे माहौल में बढ़ सकें। बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास के लिए उनकी जरूरतों का सम्मान करना आवश्यक है।

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