भारत में अमेरिकी फंड से 7 प्रोजेक्ट चल रहे:वोटर टर्नआउट शामिल नहीं, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में खुलासा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दावों के बीच नए तथ्य सामने आए हैं। जहां ट्रम्प भारत में वोटर टर्नआउट के नाम पर 182 करोड़ रुपए देने के बयानों को दोहरा रहे हैं, वहीं भारत में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) से अभी 7 प्रोजेक्ट के लिए 840 करोड़ रुपए मिल रहे हैं लेकिन इसमें वोटर टर्नआउट के नाम पर किसी प्रोजेक्ट में फंड नहीं मिल रहा है। विदेशी सहायता पर नजर रखने वाले वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की ताजा वार्षिक रिपोर्ट 2023-24 में ये खुलासा हुआ है। इस बीच वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार 2008 के बाद से भारत को यूएसऐड से चुनाव संबंधी किसी मदद का रिकॉर्ड नहीं है। भारत में USAID के जरिए 7 प्रोजेक्ट पर काम 1. एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी के लिए साझेदारी समझौता 2. सस्टेनेबल फॉरेस्ट एंव क्लाइमेट एडॉप्शन प्रोग्राम के लिए समझौता 3. वाटर, सेनिटेशन एंड हाइजीन के लिए साझेदारी 4. अक्षय ऊर्जा के कॉमर्शियलाइजेशन एवं इनोवेशन के लिए साझेदारी समझौता 5. स्वास्थ्य परियोजना के लिए समझौता 6. आपदा प्रबंधन सहयोग प्रोग्राम 7. एनर्जी कुशल टेक्नोलॉजी के वाणिज्यिक उपयोग एवं इनोवशन की परियोजना ट्रम्प ने चार दिन में चौथी बार अमेरिकी फंडिंग का सवाल उठाया ट्रम्प ने पिछले चार दिनों में चौथी बार भारत चुनाव में अमेरिकी फंडिंग पर सवाल उठाया है। इस बार उन्होंने कहा कि मेरे दोस्त मोदी को 182 करोड़ रुपए भेजे गए हैं। ये दूसरी बार है जब ट्रम्प ने इस मामले में मोदी का नाम लिया है। ट्रम्प ने 21 फरवरी को कहा था कि ये फंड भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए दिए गए। और हमारा क्या? हमें भी अमेरिका में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए पैसा चाहिए। इसके अलावा ट्रम्प ने बांग्लादेश में भेजे गए 250 करोड़ रुपए का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए ये फंड एक ऐसी संस्था को भेजा गया, जिसका नाम भी किसी ने नहीं सुना। ट्रम्प ने कहा, ऐसी संस्था को इतना पैसा मिला जहां सिर्फ दो लोग काम करते हैं। वो यहां-वहां से 10-20 हजार रुपए जुटा रहे हैं, और अचानक उन्हें अमेरिकी सरकार से 250 करोड़ रुपए मिल गए। मुझे लगता है कि वे दोनों अमीर बनने से बहुत खुश होंगे। जल्दी ही उनकी तस्वीर किसी बिजनेस मैगजीन में छापी जाएगी। ट्रम्प के पिछले तीन बयान... 1. ट्रम्प बोले- ये फंडिंग रिश्वतखोरी करने के लिए थी गुरुवार को ट्रम्प ने कहा कि मैं हैरान हूं, इतना पैसा पाकर भारत क्या सोचता होगा। ये एक किक-बैक यानी रिश्वतखोरी की स्कीम है। जो लोग ये पैसा भारत को भेज रहे हैं, उसका कुछ हिस्सा लौटकर उन्हीं लोगों के पास आ रहा है। ट्रम्प ने कहा कि मैं भारत में वोटर टर्नआउट की परवाह क्यों करूं? हमारी अपनी परेशानियां कम नहीं हैं। हमें अपने टर्नआउट पर ध्यान देना चाहिए। हमने ये सारी स्कीमें बंद कर दी हैं। अब हम सही रास्ते पर हैं। 2. बाइडेन भारत में किसी और को जिताना चाहते थे बुधवार को ट्रम्प ने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन पर भारत के आम चुनाव में दखल देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा- बाइडेन का प्लान भारत में किसी अन्य नेता (नरेंद्र मोदी के अलावा) को चुनाव जिताने का था। इसके लिए बाइडेन प्रशासन ने भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए 182 करोड़ रुपए का फंड मुहैया कराया। ये बड़ा खुलासा है, हम इस बारे में भारत सरकार को बताएंगे। मियामी में फ्यूचर इंवेस्टमेंट इनिशिएटिव (FII) समिट में उन्होंने कहा, 'यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने वोटर टर्नआउट बढ़ाने के नाम पर भारत को 182 करोड़ रुपए का फंड दिया। अमेरिकी चुनाव में रूस ने सिर्फ 2 हजार डॉलर (1.73 लाख रुपए) का इंटरनेट विज्ञापन दिया तो मुद्दा बना था, जबकि अमेरिका भारत को बड़ी रकम दे रहा था। 3. मोदी के लिए बहुत सम्मान पर 182 करोड़ क्यों दे रहे मंगलवार को मीडिया से ट्रम्प ने कहा कि हम भारत को 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास बहुत ज्यादा पैसा है। भारत दुनिया के सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक हैं, खासतौर पर हमारे लिए। मैं भारत और उनके PM का सम्मान करता हूं, पर 182 करोड़ क्यों? भारतीय विदेश मंत्रालय बोला- ये जानकारी परेशान करने वाली भारतीय चुनाव में दखल वाले ट्रम्प के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को कहा कि ये जानकारी काफी परेशान करने वाली है। इससे भारतीय चुनाव में विदेश दखल को लेकर चिंता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि हम इस मुद्दे की जांच कर रहे हैं। इस समय इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। उम्मीद है जल्द ही हमें इस पर कोई अपडेट मिलेगा। अमेरिका से पैसा भारत आने के 4 स्टेप... 1. पैसा कहां से आया अमेरिकी एजेंसी USAID की तरफ से भारत को दिया गया फंड 4000 करोड़ रुपए के अंतरराष्ट्रीय फंड का हिस्सा था। 2. पैसा भारत तक कैसे पहुंचा यह पैसा कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) नाम की संस्था को दिया गया था। इस संस्था के तीन NGO, IFES (चुनाव जागरूकता के लिए), NDI (लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए) व IRI (नागरिक भागीदारी बढ़ाने के लिए) हैं। CEPPS ने यह पैसा एशिया में काम करने वाले एशियन नेटवर्क फॉर फ्री इलेक्शन (ANFREL) नाम के NGO को दिया। वहां से भारत में IFES को मिला। 3. भारत में पैसा किसे मिला इसके बाद यह पैसा मतदाता जागरूकता से जुड़े NGO, सिविल सोसाइटी समूह, राजनीतिक पार्टियों को दिया गया। इनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। 4. पैसा कैसे खर्च हुआ इन पैसों से इस्तेमाल रैलियां, डोर-टु-डोर कैंपेन और वर्कशॉप चलाए गए। कुछ खास इलाकों में मतदान को बढ़ाने के लिए भी खर्च किया गया। मीडिया प्रचार और केंद्र सरकार के खिलाफ नरेटिव बढ़ाने के लिए प्रचार किया गया। वॉलंटियर्स ट्रेनिंग, रहने-खाने के साथ ट्रैवलिंग खर्च भी दिया गया। ----------------------------------------------- ट्रम्प से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... भाजपा बोली

भारत में अमेरिकी फंड से 7 प्रोजेक्ट चल रहे: वोटर टर्नआउट शामिल नहीं, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में खुलासा
Kharchaa Pani
लेखिका: सिया शर्मा, टीम नेटानागरी
परिचय
हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि भारत में अमेरिकी फंडिंग से संचालित 7 महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। इन प्रोजेक्ट्स में वोटर टर्नआउट के आंकड़े शामिल नहीं हैं, जिससे कई सवाल उठते हैं। इस लेख में हम इन प्रोजेक्ट्स के प्रभाव, उनकी आवश्यकता और भविष्य के दृष्टिकोण पर चर्चा करेंगे।
प्रोजेक्ट्स की जानकारी
वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, जिन 7 प्रोजेक्ट्स का जिक्र किया गया है, उनमें तकनीकी विकास, स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षण संस्थानों का विस्तार शामिल है। ये प्रोजेक्ट्स अमेरिकी फंडिंग के माध्यम से हो रहे हैं, जो कि एक प्रभावी साझेदारी को दर्शाता है।
प्रोजेक्ट्स की सूची
- तकनीकी सुधार प्रोजेक्ट
- स्वास्थ्य सेवाएँ व विस्तार योजना
- शिक्षण संचार प्रोजेक्ट
- महिला सशक्तिकरण प्रोजेक्ट
- कृषि उन्नति कार्यक्रम
- पानी प्रबंधन प्रणाली
- युवाओं के लिए कौशल विकास योजनाएँ
वोटर टर्नआउट का महत्व
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वोटर टर्नआउट के आंकड़े इन प्रोजेक्ट्स में शामिल नहीं किए गए हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या इन प्रोजेक्ट्स का असली प्रभाव चुनावी प्रक्रिया पर पड़ता है। वोटर टर्नआउट लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी का प्रतीक है और इसे नजरअंदाज करना किसी भी सरकार के लिए उचित नहीं है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
इन अमेरिकी फंडेड प्रोजेक्ट्स का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर हो सकता है। वे नई नौकरियों का सृजन कर सकते हैं और विकास के लिए नए रास्ते खोल सकते हैं। हालांकि, यह जरूरी है कि इन प्रोजेक्ट्स की प्रगति का आकलन सटीकता से किया जाए।
निष्कर्ष
इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि भारत में अमेरिकी फंड से चल रहे प्रोजेक्ट्स विकास की संभावनाएं जुटा सकते हैं। हालांकि, वोटर टर्नआउट जैसे महत्वपूर्ण कारकों को नजरअंदाज करना आवश्यक नहीं है। भविष्य में, सरकार को इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नीति बनानी होगी ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और विकास में संतुलन बना रहे।
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