5 साल से जेल में बंद रेप आरोपी को जमानत:बॉम्बे HC बोला- लड़की मर्जी से गई, उसे पता था उसके साथ क्या हो रहा है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत 5 साल से जेल में बंद 24 साल के आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि लड़की के साथ जो हुआ उसे इसकी पूरी समझ थी। वह अपनी मर्जी से आरोपी के पास गई थी। जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने कहा- मामला भले ही पॉक्सो एक्ट के तहत था और पीड़िता नाबालिग थी। लेकिन लड़की अपने माता-पिता को बताए बिना घर छोड़कर आरोपी के साथ चार दिनों तक रही। मामले के फैक्ट्स को देखने से समझ आ रहा था कि उसे इस बात की पूरी जानकारी थी कि वो क्या कर रही है, उसने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ चार दिन बिताए थे। बॉम्बे हाईकोर्ट से कैसे मिली जमानत, 2 पॉइंट... आरोपी पक्ष ने कहा- लड़की की सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं है अदालत में आरोपी पक्ष ने तर्क दिया कि चूंकि लड़की नाबालिग थी इसलिए उसकी सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकती। हालांकि बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी का कोई पहले से आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और उसने पहले ही पांच साल से अधिक जेल में काट लिए हैं। कोर्ट ने कहा- जमानत देने के साथ बाकी पहलुओं पर भी गौर किया गया कोर्ट ने कहा कि जमानत का निर्णय लेते समय यह देखना जरूरी है कि आरोपी मुकदमे के लिए हाजिर रहेगा या नहीं। इसके अलावा अपराध की गंभीरता, आरोपी द्वारा फिर से अपराध करने की संभावना, गवाहों को प्रभावित करने या सबूत से छेड़छाड़ करने की संभावना और आरोपी का आपराधिक इतिहास भी ध्यान में रखना जरूरी है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत के दौरान आरोपी को यह ध्यान रखना होगा कि वह कानून का पालन करे और मुकदमे में बाधा डालने का कोई प्रयास न करे। ----------------------------------- यह खबर भी पढ़ें.... SC ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला पलटा:कहा- ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज का आरोप लगाना जरूरी नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज की मांग का आरोप लगाना जरूरी नहीं है। यह कानून 1983 में शादीशुदा महिलाओं को पति और ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से बचाने के लिए लागू किया गया था। पूरी खबर पढ़ें

5 साल से जेल में बंद रेप आरोपी को जमानत: बॉम्बे HC बोला- लड़की मर्जी से गई, उसे पता था उसके साथ क्या हो रहा है
Kharchaa Pani
लेखिका: सुमिता शर्मा, नितिका गुप्ता एवं टीम नेतनागरी
परिचय
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक रेप आरोपी को जमानत दे दी है, जो पिछले 5 वर्षों से जेल में बंद था। अदालत ने कहा कि स्थिति उस समय की थी जब लड़की ने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ जाना स्वीकार किया था। इस फैसले ने समाज में कई सवाल उठाए हैं और नारी सुरक्षा पर पुनः विचार करने की आवश्यकता को उजागर किया है।
मामले का विवरण
यह मामला उस समय का है जब पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसका बलात्कर किया। आरोपी के मुताबिक, वे दोनों वयस्क थे और लड़की ने अपनी मर्जी से उसके साथ जाने का निर्णय लिया था। बॉम्बे HC ने कहा कि "लड़की को यह पता था कि उसके साथ क्या हो रहा है।"
अदालत का निर्णय
अदालत ने जमानत के समय इस बात पर जोर दिया कि मामले में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि लड़की ने अपनी इच्छा के खिलाफ जाकर आचरण किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति वयस्क है और अपने निर्णय लेने में सक्षम है, तो उसे अपनी मर्जी के साथ जाने का अधिकार है।
समाज में चर्चा
इस निर्णय ने देश में नारी सुरक्षा को लेकर बहस छेड़ दी है। कई विशेषज्ञ और समाजसेवी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, जबकि कुछ इसे न्याय का एक नया रूप मानते हैं। नारी अधिकारों के समर्थक इस पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह फैसला उन महिलाओं को हतोत्साहित नहीं करेगा जो किसी भी प्रकार के यौन आक्रमण की शिकायत करना चाहती हैं।
विशेषज्ञों की राय
कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से चिंताजनक है। यह महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं, और इस तरह के निर्णय उन्हें कमजोर बना सकते हैं। वहीं, कुछ वकीलों का मानना है कि स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार महत्वपूर्ण हैं, और ये किसी भी निर्णय का अभिन्न हिस्सा हैं।
निष्कर्ष
हालांकि अदालत ने अपने निर्णय में विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास किया है, फिर भी यह नारी सुरक्षा पर उठने वाले सवालों को समाप्त नहीं करता। यह महत्त्वपूर्ण है कि समाज भी इस मामले पर विचार करें और सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए। इस निर्णय के बाद, महिला अधिकारों के प्रति समाज में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है।
तो जो कुछ भी हुआ, वो एक गंभीर मुद्दा है।
फिर भी, यह महत्वपूर्ण है कि ऐसे मामलों में हमारी सोच और समझ को प्रभावित किया जाए, ताकि महिलाएं अपने अधिकारों का अनुभव कर सकें।
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