सेहतनामा- सोशल मीडिया से घट रही बच्चों की याददाश्त:बढ़ रही बीमारियां, सिगरेट–शराब की तरह खतरे की चेतावनी, बता रहे हैं डॉक्टर
फर्ज करिए कि आप अपना फेसबुक, इंस्टाग्राम या एक्स खोलते हैं और सामने चेतावनी लिखकर आती है– “इसका इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकारक है।” ठीक वैसे ही, जैसे सिगरेट के पैकेट और शराब की बोतल पर चेतावनी लिखी होती है। ये मजाक नहीं है। दुनिया भर की सैकड़ों साइंस स्टडीज अब इस बात को लेकर चिंता जता रही हैं। भारतीय मूल के डॉक्टर विवेक मूर्ति अमेरिका में ओबामा और बाइडेन सरकार में यूएस सर्जन जनरल रहे हैं। विवेक मूर्ति ने अपने कार्यकाल में शारीरिक सेहत से के साथ–साथ मानसिक सेहत पर भी बहुत जोर दिया। अभी वह सोशल मीडिया के इस्तेमाल के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। उनका कहना है कि जिस तरह शराब और सिगरेट पर लिखा होता है कि यह सेहत के लिए हानिकारक है। उसी तरह सोशल मीडिया एप्स पर भी चेतावनी लिखनी चाहिए क्योंकि यह हमारे शरीर और दिमाग को शराब–सिगरेट ही तरह नुकसान पहुंचा रहा है। बीते साल नवंबर में ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया। अब कई अन्य देशों में भी सोशल मीडिया को लेकर कड़े कानून लाने की तैयारी चल रही है। वजह ये है कि सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की ब्रेन वायरिंग खराब कर रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और किशोरों के ब्रेन डेवलपमेंट पर पड़ रहा है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के चीफ साइंस ऑफिसर मिच प्रिंस्टीन के मुताबिक, बच्चे हर छोटी खुशी के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हो रहे हैं। इससे डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामले भी बढ़ रहे हैं। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज जानेंगे कि सोशल मीडिया से ब्रेन कैसे प्रभावित हो रहा है। साथ ही जानेंगे कि- बच्चों की इमोशनल हेल्थ हो रही प्रभावित रिसर्च फर्म ‘रेडसियर’ के मुताबिक भारतीय यूजर्स हर दिन औसतन 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन की स्क्रीन पर बिताते हैं। इसमें से अधिकतर टाइम वे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। इसमें बच्चों और किशोरों की संख्या बहुत ज्यादा है। इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान भी उन्हें हो रहा है। सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से उनकी इमोशनल हेल्थ खराब हो रही है। सोशल मीडिया से कमजोर हो रही मेमोरी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी के मुताबिक सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहने के कारण लोगों की नींद नहीं पूरी हो रही है। इससे उनकी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे उनकी याददाश्त कमजोर हो रही है और एंग्जाइटी, डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। घट रहा है अटेंशन स्पैन अटेंशन स्पैन का मतलब है कि आप बिना भटके किसी काम में लगातार कितनी देर तक अपना ध्यान लगाए रख सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन की एक स्टडी के मुताबिक इंसानों का औसत अटेंशन स्पैन बीते 20 सालों में 2.5 मिनट से घटकर 47 सेकेंड पर पहुंच गया है। इसके पीछे सोशल मीडिया की लत बड़ी वजह है। अंटेशन स्पैन घटने पर क्या लक्षण दिखते हैं। ग्रफिक में देखिए- सोशल मीडिया की लत से कैसे पाएं छुटकारा? मनोचिकित्सक डॉ. कृष्णा मिश्रा के मुताबिक, कोई बुरी आदत छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि उसकी जगह कोई अच्छी आदत अपना ली जाए। इससे आपके पास इतना समय ही नहीं होगा कि दिमाग बुरी आदत की तरफ भटके। सोशल मीडिया की लत छोड़कर कौन सी अच्छी आदतें अपना सकते हैं, ग्राफिक में देखिए- कैसे सुधरेगी ब्रेन फंक्शनिंग? डॉ. कृष्णा मिश्रा कहते हैं कि अगर कोई बहुत लंबे समय से सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है तो उसकी ब्रेन फंक्शनिंग खराब हो जाती है। इसमें सुधार के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि, यह अचानक से एक दिन में कोई दवा खाकर ठीक नहीं होता है। इसके लिए लाइफस्टाइल में कई जरूरी बदलाव करने होते हैं। सबसे पहले तो सोशल मीडिया इस्तेमाल करने का समय निर्धारित करें। तय करें कि एक दिन में उससे ज्यादा समय सोशल मीडिया पर नहीं खर्च करेंगे। इसके बाद अपना ध्यान किसी क्रिएटिव काम में लगाएं। इसके अलावा और क्या बदलाव करने होंगे, ग्राफिक में देखिए- सोशल मीडिया और ब्रेन फंक्शनिंग से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब सवाल: पॉपकॉर्न ब्रेन क्या है? जवाब: साल 2011 में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर डेविड लेवी ने एक मेंटल सिचुएशन के लिए ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ शब्द का इस्तेमाल किया था। जब किसी शख्स के विचारों में स्थिरता न हो, फोकस हिल गया हो, दिमाग एक विषय के बारे में सोचते हुए तेजी से दूसरे, फिर तीसरे विषय पर भटक रहा हो तो इसे पॉपकॉर्न ब्रेन कहते हैं। सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल और रील्स स्क्रॉल करने से यह मेंटल सिचुएशन बनती है। सवाल: क्या सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से क्रिएटिविटी कमजोर हो रही है? जवाब: हां, यह सच है। सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से अटेंशन स्पैन कम होता है। इससे हमारी याद रखने की क्षमता, भाषा सीखने की क्षमता और दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ता है। इससे प्रभावित बच्चे लंबे समय तक टिककर पढ़ नहीं पाते। उनकी बोली-भाषा में अजीब से बदलाव आ सकते हैं। इसके अलावा उनके दिमाग का विकास भी पूरी तरह नहीं हो पाता है। उन्हें कोई क्रिएटिव काम करने में बहुत मुश्किल होती है क्योंकि इसके लिए देर तक एक ही चीज पर ध्यान टिकाए रखना होता है। सवाल: सोशल मीडिया से सबसे ज्यादा बच्चे क्यों प्रभावित हैं? जवाब: सोशल मीडिया के शॉर्ट वीडियो की सबसे ज्यादा लत बच्चों को है। इसलिए सबसे अधिक नुकसान भी बच्चों को हो रहा है। डॉ. कृष्णा मिश्रा कहते हैं कि कम उम्र में मस्तिष्क का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स यानी दिमाग का वह हिस्सा पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता, जो निर्णय लेने और भावनाएं नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल करने और शॉर्ट वीडियो देखने का समय नियंत्रित नहीं कर पाते। वह यह भी नहीं तय कर पाते हैं कि उन्हें देखना क्या है। ……………………. सेहत की ये खबर भी पढ़िए सेहतनामा- मोबाइल स्क्रीन से बच्चों को ड्राई आईज की समस्या:स्क्रीन से छोटे बच्चों की सेहत को ज्यादा खतरा, लिमिट तय करना जरूरी अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइक

सेहतनामा- सोशल मीडिया से घट रही बच्चों की याददाश्त:बढ़ रही बीमारियां, सिगरेट–शराब की तरह खतरे की चेतावनी, बता रहे हैं डॉक्टर
Kharchaa Pani - यह लेख टीम नेटानागरी द्वारा लिखा गया है। आज हम एक गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे हैं, जिसे अनदेखा करना हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। हाल के शोध से पता चला है कि सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग बच्चों की याददाश्त को काफी प्रभावित कर रहा है।
सोशल मीडिया और याददाश्त का संबंध
डॉक्टर्स का कहना है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग न केवल बच्चों की याददाश्त को कमजोर कर रहा है, बल्कि इससे कई समस्याएं भी जन्म ले रही हैं। बच्चे अब स्मृति का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। वे जरूरी जानकारी को याद रखने में असमर्थ हो रहे हैं और यह उनके पिछले अनुभवों और ज्ञान को खोने का कारण बन रहा है।
बढ़ती बीमारियाँ
विभिन्न रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि सोशल मीडिया की लत से बच्चों में मानसिक बीमारियों, जैसे कि डिप्रेशन और एंग्जायटी, में वृद्धि हो रही है। यह स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बच्चों की संज्ञानात्मक विकास पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। डॉक्टरों के अनुसार, यह एक सामाजिक समस्या बनती जा रही है, जो केवल तकनीकी मुद्दा नहीं है।
सिगरेट और शराब की तरह खतरा
बच्चों की मानसिक सेहत पर शोध करने वाले डॉक्टर स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सोशल मीडिया का प्रभाव अब सिगरेट और शराब की लत के बराबर हो गया है। इसीलिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों को इसकी लत से बचाएं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि पूर्ण रूप से सोशल मीडिया से दूर रहना संभव नहीं है, लेकिन सीमित उपयोग को बढ़ावा देना उपयोगी हो सकता है।
क्या करें अभिभावक?
अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर नजर रखें और उन्हें अन्य क्रियाकलापों जैसे खेल, पढ़ाई और परिवार संग बिताए समय में शामिल करें। बच्चों के साथ बातचीत करें, उनके अनुभवों को समझें और उन्हें यह बताएं कि सोशल मीडिया केवल एक साधन है, जिससे वास्तविक जीवन की तुलना में वह अधिक महत्व नहीं रखता।
निष्कर्ष
यह स्पष्ट है कि सोशल मीडिया का बच्चों की याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए, हमें इसकी गंभीरता को समझते हुए सक्रियता से कदम उठाने होंगे। इसके द्वारा हम न केवल अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि उनकी मानसिक सेहत का भी ध्यान रख सकते हैं।
अंत में, सोशल मीडिया का सही उपयोग एक आवश्यक कौशल है, और इसे समझदारी से सिखाना ही बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
For more updates, visit kharchaapani.com.
Keywords
social media, children memory, health issues, depression in children, cognitive development, children health dangers, technology addiction, parental guidance, mental health awareness, screen time impact.What's Your Reaction?






