सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई:कोर्ट बोला- यह बहुत परेशान करने वाला, मामला हाईकोर्ट के जजों से जुड़ा हुआ है
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की जांच करना लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए लोकपाल के महापंजीयक और शिकायतकर्ता को भी नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने शिकायतकर्ता से हाई कोर्ट के जज का नाम और शिकायत के कारण का खुलासा करने से रोक लगा दिया है। लोकपाल ने 27 फरवरी को अपने आदेश में हाईकोर्ट के जज को आरोपी बनाया था लोकपाल एक मामले में 27 फरवरी को अपने आदेश में कार्यरत हाई कोर्ट के जज, एक एडिशनल जिला जज और एक अन्य हाई कोर्ट के जज को एक निजी कंपनी के पक्ष में प्रभावित करने का आरोप लगाया था। इस मामले में लोकपाल ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि हाई कोर्ट का जज लोकपाल अधिनियम की धारा 14 (1) (f) के दायरे में एक व्यक्ति के रूप में योग्य होगा। जस्टिस गवई बोले- यह परेशान करने वाली बात है जस्टिस गवई ने लोकपाल के तर्क पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह परेशान करने वाली बात है। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्याख्या गलत है और हाई कोर्ट को लोकपाल के अधीन लाने का इरादा नहीं था। जस्टिस गवई और जस्टिस ओका ने कहा कि देश में संविधान लागू होने के बाद भी हाई कोर्ट के जज संवैधानिक प्रहरी के तौर पर काम करते रहे हैं। उन्हें एक वैधानिक पदाधिकारी नहीं माना जा सकता। ........................... सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... अश्लील कमेंट- यूट्यूबर अलाहबादिया को सुप्रीम कोर्ट से फटकार: कहा- इनके दिमाग में गंदगी सुप्रीम कोर्ट ने अश्लील कमेंट मामले में रणवीर अलाहबादिया की अपील पर सुनवाई की। अदालत ने अलाहबादिया को गिरफ्तारी से राहत दे दी, लेकिन उन्हें जमकर फटकार भी लगाई। अदालत ने कहा कि आपके कमेंट की भाषा विकृत और दिमाग गंदा है। इससे अभिभावक ही नहीं, बेटियां और बहनें भी शर्मसार हुईं। पूरी खबर पढ़ें...

सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई: कोर्ट बोला- यह बहुत परेशान करने वाला, मामला हाईकोर्ट के जजों से जुड़ा हुआ है
लेखिका: प्रियंका सोनी, टीम नेतानागरी
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संक्षिप्त परिचय
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के आदेश पर रोक लगाने का फैसला लिया है, जिसे कोर्ट ने "बहुत परेशान करने वाला" बताया है। यह मामला हाईकोर्ट के जजों से जुड़ा हुआ है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की कहानी और इससे जुड़े अन्य पहलुओं को।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति संबंधी आदेशों पर अस्थायी रोक लगाई है, जिसके चलते हाईकोर्ट के कुछ जजों पर आरोप लगे हैं। यह निर्णय न्यायपालिका की साख और स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। मुख्य न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले की गहराई को समझने के लिए और अधिक संज्ञान लिया जाएगा।
मामला क्यों है परेशान करने वाला?
कोर्ट ने कहा कि यह विवाद केवल एक नियुक्ति नहीं है, बल्कि यह भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के मूल सिद्धांतों पर भी प्रश्न उठाता है। जब जजों की कार्यप्रणाली और उनके निर्णयों पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो इससे आम जनता का विश्वास न्यायपालिका पर कमजोर हो सकता है। ऐसे मामलों में सतर्क रहना आवश्यक है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का संरक्षण हो सके।
हाईकोर्ट के जजों से जुड़ा मामला
इस मामले की जड़ें उच्च न्यायालय से जुड़ी हुई हैं, जहाँ कुछ जजों के कार्यों के संबंध में लोकपाल को सूचनाएँ दी गई थीं। यह सवाल उठता है कि अगर न्यायपालिका अपने भीतर ही स्वस्थ और पारदर्शी नहीं है, तो आम जनता कैसे न्याय की उम्मीद कर सकती है? इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
आगे की राह
यह सुनवाई इस बात की ओर इशारा करती है कि भविष्य में न्यायपालिका में और अधिक अनुशासन और पारदर्शिता की आवश्यकता है। न्यायाधीशों की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए, केंद्र और राज्य सरकारों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका के प्रति एक संदेश है कि हर व्यक्ति, चाहे वह कितना भी ऊँचा पदस्थ हो, न्याय के समक्ष समान है। यह न केवल लोगों का विश्वास बहाल करने में मदद करेगा, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति से भी रोक लगाएगा। ऐसे समय में जब न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठते हैं, ऐसे निर्णय जरूरी होते हैं।
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