सनातन विरोधी टिप्पणी,उदयनिधि को कोर्ट में पेश होने से छूट:बिना अनुमति के नई FIR भी नहीं होगी; सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना तमिलनाडु के डिप्टी सीएम उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ सनातन धर्म विरोधी टिप्पणी मामले में कोई नई FIR दर्ज नहीं होगी। कोर्ट ने गुरुवार को यह आदेश दिया। इसके अलावा CJI संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने उदयनिधि के सुनवाई में उपस्थित रहने से छूट का अंतरिम आदेश भी बढ़ा दिया। उदयनिधि ने 2023 के मामले में दायर कई FIR को एक साथ मिलाकर तमिलनाडु में ही मामला चलाने की याचिका दायर की थी। इसी पर गुरुवार को सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई 28 अप्रैल को होगी। तमिलनाडु CM एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने 2 सितंबर, 2023 को चेन्नई के एक कार्यक्रम में सनातन धर्म के खिलाफ बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है। उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना कोरोना, मलेरिया और डेंगू से करते हुए इसे खत्म करने की बात कही थी। उदयनिधि का माफी मांगने से इनकार तमिलनाडु के डिप्टी CM उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को बीमारी बताने वाली टिप्पणी पर माफी मांगने से इनकार कर दिया है। उन्होंने सोमवार को चेन्नई में एक इवेंट में कहा कि मैंने सनातन को लेकर वही बातें कहीं, जो पेरियार, अन्नादुराई और करुणानिधि भी कहते थे। उदयनिधि ने कहा कि मेरे बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। तमिलनाडु समेत देशभर में कई कोर्ट केस भी हुए। मुझे माफी मांगने के लिए भी कहा गया, लेकिन मैं कलैगनार (कला के विद्वान) का पोता हूं। मैं माफी नहीं मांगूंगा। मेरी टिप्पणियों का उद्देश्य महिलाओं के प्रति कथित दमनकारी प्रथाओं को बताना था। हिंदू धर्म में महिलाओं को पढ़ने की अनुमति नहीं थी। वे अपने घर से बाहर नहीं जा सकती थीं और अगर उनके पति मर जाएं तो उन्हें भी मरना पड़ता था। पेरियार ने इन सबके खिलाफ आवाज उठाई थी। स्टालिन के 2 विवादित बयान

सनातन विरोधी टिप्पणी, उदयनिधि को कोर्ट में पेश होने से छूट: बिना अनुमति के नई FIR भी नहीं होगी; सुप्रीम कोर्ट का आदेश
Kharchaa Pani
लेखिका: प्रिया शर्मा, टीम नेटानागरी
परिचय
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन को एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान की है। यह आदेश उन्हें इस विवादास्पद मामले में कोर्ट में पेश होने से छूट देता है। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि बिना अनुमति के उनके खिलाफ कोई नई प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की जा सकती। इस निर्णय का सभी राजनीतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक असर पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने उदयनिधि पर लगे आरोपों को लेकर काफी संवेदनशीलतापूर्वक वकीलों के तर्कों को सुना। उदयनिधि ने आरोप लगाया था कि उनकी टिप्पणी को गलत संदर्भ में पेश किया गया है। कोर्ट ने उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी ध्यान में रखा। इसके साथ ही, अदालत ने यह निर्देश दिया कि कोई भी नई FIR बिना उसकी अनुमति के नहीं की जा सकती। यह आदेश राजनीतिक विवादों के बीच नागरिक अधिकारों की सुरक्षा पर भी जोर देता है।
उदयनिधि की टिप्पणी का सामाजिक प्रभाव
उदयनिधि की टिप्पणी को लेकर देश में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आई हैं। कुछ लोगों ने इसे सामाजिक विरोध के संदर्भ में देखा, जबकि अन्य ने इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला माना। इस पर सामाजिक संगठनों और विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी राय व्यक्त की। यह मामला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि कैसे बयानबाजी और राजनीतिक मतभेद समय-समय पर संवैधानिक सवालों को जन्म देते हैं।
राजनीति और धर्म का तालमेल
इस विवाद ने एक बार फिर से राजनीति और धर्म के बीच के जटिल संबंधों को उजागर किया है। पूर्व में भी कई मामलों में राजनीतिक नेताओं के शब्दों को धार्मिक रूप से संवेदनशील माना गया था। यह जरूरी है कि राजनीतिक दल अपनी राय व्यक्त करते समय संवेदनशीलता का ध्यान रखें ताकि सामाजिक सौहार्द बना रहे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उदयनिधि के लिए राहत का कारण बना है, लेकिन यह समाज में व्यापक बहस का कारण भी बना है। इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षण देना कितना आवश्यक है। सभी को इस फैसले का सम्मान करना चाहिए और विनम्रता से सभी मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।
इससे पहले आपत्तिजनक टिप्पणियों की वजह से कई बार राजनीतिक और सामाजिक तनाव उत्पन्न होते रहे हैं। इसलिए, संदर्भ में सही विचार प्रस्तुत करना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है।
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