रिलेशनशिप- सिंगल पेरेंटिंग को आसान बनाने के 9 टिप्स:समाज-परिवार की भूमिका अहम, न करें ये गलतियां, साइकोलॉजिस्ट के सुझाव

सिंगल पेरेंटिंग, जैसा कि शब्द से ही इसका अर्थ जाहिर है, इसमें बच्चे की परवरिश का जिम्मा किसी एक व्यक्ति पर होता है और उसे ही माता-पिता दोनों की भूमिका निभानी होती है। आपके आसपास भी ऐसे बहुत से लोग देखने को मिल जाएंगे, जो अकेले दम पर अपने बच्चे की परवरिश करते हैं। यूनाइटेड नेशंस की ‘प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वुमन 2019-2020’ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 1.3 करोड़ सिंगल मदर हैं, जिनका परिवार पूरी तरह से उन पर निर्भर है। वहीं 3.2 करोड़ सिंगल मदर जॉइंट फैमिली में रह रही हैं। ये आंकड़ा दर्शाता है कि भारत में बड़ी संख्या में सिंगल मदर्स हैं, जो अकेले या परिवार की मदद से अपने बच्चे की परवरिश कर रही हैं। सिंगल पेरेंटिंग अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है। उसमें भी अगर पेरेंट वर्किंग है तो ये और ज्यादा चैलेंजिंग हो जाता है। वर्किंग सिंगल पेरेंट को अपने काम और बच्चे की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि थोड़ी सी समझदारी और टाइम मैनेजमेंट के साथ सिंगल पेरेंटिंग को आसान बनाया जा सकता है। आज रिलेशनशिप कॉलम में बात सिंगल पेरेंटिंग की। साथ ही जानेंगे कि- सिंगल पेरेंटिंग क्या है? जब एक व्यक्ति अकेले ही अपने बच्चे की परवरिश करता है तो उसे सिंगल पेरेंटिंग कहते हैं। इसका मतलब ये है कि बच्चा अपनी मां या पिता में से सिर्फ एक के साथ रहता है और वही बच्चे की सभी जिम्मेदारियां निभाता है। यह तब होता है, जब माता-पिता एक-दूसरे से तलाक ले लेते हैं अथवा सेपरेट हो जाते हैं। पेरेंट्स में से किसी का एक निधन हो जाता है या जब कोई अकेले ही बच्चे की परवरिश करने का निर्णय लेता है। इसके अलावा अगर कोई महिला सिंगल पेरेंट बनना चाहती है तो वह IUI (इंट्रा यूटेराइन इन्सेमिनेशन) या IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के जरिए कंसीव कर सकती है या फिर बच्चा गोद ले सकती है। वहीं अगर कोई पुरुष सिंगल पेरेंट बनना चाहता है तो वह बच्चा गोद ले सकता है या सेरोगेसी की मदद ले सकता है। बच्चे और पेरेंट दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है सिंगल पेरेंटिंग जहां बच्चे की सारी जिम्मेदारी निभाने के साथ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना या अपनी वर्किंग लाइफ को मैनेज करना सिंगल पेरेंट के लिए असान नहीं होता है। वहीं ये बच्चे के लिए भी एक उतार-चढ़ाव से भरी यात्रा होती है। बच्चे को कभी-कभार यह लग सकता है कि वह अपने जीवन में पूरी तरह से माता या पिता के प्यार से वंचित रह गया है। इसके अलावा सिंगल पेरेंट चाइल्ड को कभी-कभी समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उसका आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है। अगर बच्चे के माता-पिता अलग रहते हैं तो उसे अपनी स्थिति के बारे में शर्मिंदगी महसूस हो सकती है। खासकर तब, जब दोस्त उसके परिवार के बारे में सवाल पूछते हैं। सिंगल पेरेंटिंग में परिवार की भूमिका अगर परिवार के सदस्य सिंगल पेरेंट की मदद करते हैं तो ये उसके लिए आसान हो जाता है। अगर पेरेंट वर्किंग है तो परिवार के लोग बच्चे की देखभाल में सहयोग कर सकते हैं। जैसे बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करना, उसका होमवर्क कराना और उसके साथ खेलना। इसके अलावा सिंगल पेरेंट को कभी-कभी आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ता है। इस स्थिति में फैमिली मेंबर्स उनकी मदद कर सकते हैं। सिंगल पेरेंटिंग में समाज की भूमिका समाज का एक तबका आज भी सिंगल पेरेंट और चाइल्ड को अच्छी निगाह से नहीं देखता है। खासकर तब, जब महिलाएं अपने पति से अलग होने का फैसला लेती हैं। शायद यही वजह है कि आज भी बहुत सी महिलाएं टॉक्सिक रिलेशन में होने के बावजूद रिश्ते से अलग नहीं हो पातीं। जो महिलाएं ये फैसला ले भी लेती हैं, समाज में उन्हें उनके कैरेक्टर को लेकर जज किया जाता है। इसका सिंगल पेरेंट की मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव असर पड़ता है। समाज के लोगों को सिंगल पेरेंट और बच्चे को सपोर्ट करना चाहिए। उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। इससे उन्हें अपनी परिस्थितियों से लड़ने की ताकत मिलती है। सिंगल पेरेंटिंग का बच्चों पर प्रभाव सिंगल पेरेंटिंग बच्चे को पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह से प्रभावित करता है। जहां उनका अपने पेरेंट के साथ रिश्ता मजबूत होता है। वहीं उन्हें अक्सर अकेलेपन का भी सामना करना पड़ता है। नीचे ग्राफिक से इसे समझिए- सिंगल पेरेंटिंग को ऐसे बनाएं आसान सिंगल पेरेंटिंग चुनौतीपूर्ण है, लेकिन कुछ बातों काे ध्यान में रखकर इसे आसान बनाया जा सकता है। नीचे दिए ग्राफिक से इसे समझिए- सिंगल पेरेंटिंग में न करें ये गलतियां सिंगल पेरेंटिंग में थोड़ी सी लापरवाही भी बच्चे को बिगाड़ सकती है। इसलिए इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए-

Jan 26, 2025 - 09:34
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रिलेशनशिप- सिंगल पेरेंटिंग को आसान बनाने के 9 टिप्स:समाज-परिवार की भूमिका अहम, न करें ये गलतियां, साइकोलॉजिस्ट के सुझाव
सिंगल पेरेंटिंग, जैसा कि शब्द से ही इसका अर्थ जाहिर है, इसमें बच्चे की परवरिश का जिम्मा किसी एक व्य

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Kharchaa Pani

लेखिका: निधि शर्मा, नेहा वर्मा, टीम नेटानागरी

परिचय

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में सिंगल पेरेंटिंग एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। जहां एक ओर माता-पिता को अपने बच्चों को सही दिशा में बढ़ाने की जिम्मेदारी होती है, वहीं दूसरी ओर समाज और परिवार की भूमिका भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होती है। इस लेख में हम आपको 9 उपयोगी टिप्स देंगे जो सिंगल पेरेंटिंग को आसान बनाने में मदद करेंगे।

1. परिवार का सहयोग लें

परिवार के सदस्य आपके लिए महत्वपूर्ण सहारा हो सकते हैं। बच्चों की देखभाल में उनके सहयोग से आप थोड़ी राहत पा सकते हैं। सुनिश्चित करें कि परिवार के सदस्य आपकी चुनौतियों को समझें और आपको आवश्यक समर्थन दें।

2. समय प्रबंधन का ध्यान रखें

सही समय प्रबंधन केवल बच्चों ही नहीं, बल्कि आपकी व्यक्तिगत जरूरतों को भी संतुलित रखता है। एक दिनचर्या बनाएं और उसमें सभी कामों को शामिल करें। इससे आपके बच्चों को भी संरचना मिलेगी और आपको मानसिक शांति मिलेगी।

3. अकेलापन महसूस करने से बचें

सिंगल पेरेंट होने पर अक्सर अकेलापन महसूस होता है। इसके लिए अपने दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं। ऐसे सामाजिक नेटवर्क बनाएं जो आपकी भावनाओं को समझते हों।

4. बच्चों को गाइड करें

बच्चों को सही दिशा में बढ़ने के लिए मार्गदर्शन जरूरी है। उन्हें उनके हितों और कौशलों के अनुसार चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करें।

5. मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें

एक सिंगल पेरेंट के रूप में मानसिक स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से मेडिटेशन और व्यायाम करें। आवश्यकता पड़ने पर एक साइकोलॉजिस्ट से मिलें जिससे आपकी मानसिक स्थिति में सुधार हो सके।

6. फ़ाइनेंशियल प्लानिंग का ध्यान रखें

आर्थिक स्थिति सिंगल पेरेंटिंग में एक प्रमुख चिंता का विषय होती है। अपने खर्चों का ध्यान रखें और एक बजट बनाएं। इसके अलावा, आवश्यक इंश्योरेंस भी लें।

7. समाज में अपनी भूमिका समझें

समाज में आपकी भूमिका भी महत्वपूर्ण है। अपने बच्चों को सीखाएं कि वे अपनी जिम्मेदारियों का महत्व समझें और समाज के प्रति सजग रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करें।

8. बच्चों के साथ संवाद करें

बच्चों के साथ खुलकर बात करें, उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें अपनी बात कहने का मौका दें। इस प्रकार बच्चे अधिक आत्मविश्वासी और समझदार बनते हैं।

9. गलतियों से सीखें

सभी माता-पिता गलतियां करते हैं। लेकिन सिंगल पेरेंट होने पर हमें खुद को धैर्य में रखना चाहिए। अपनी गलतियों से सीखें और अपने अनुभव साझा करें, इससे अन्य सिंगल पेरेंट्स को मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

सिंगल पेरेंटिंग एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन सही रणनीतियों और समर्थन से इसे सफलतापूर्वक निभाया जा सकता है। परिवार और समाज से मिले सहयोग का सही इस्तेमाल करें और अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। साथ ही, बच्चों को अच्छे ढंग से बढ़ाना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

अधिक अपडेट के लिए, विजिट करें kharchaapani.com।

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