दिल्ली भगदड़- अस्पताल से पूरी रात की आंखों देखी:पहचान के लिए परिजन को लाशें नहीं, फोटो दिखाए; पीड़ित बोला- पुलिस ने रोने-चिल्लाने से रोका

तारीख: 15 फरवरी 2025 जगह: दिल्ली का LNJP अस्पताल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने के करीब 2 घंटे बाद रात करीब साढ़े 11 बजे दैनिक भास्कर की टीम लोक नायक जय प्रकाश अस्पताल (LNJP) पहुंची। अस्पताल के गेट नंबर-4 से सायरन बजाते हुए केवल एम्बुलेंस की ही एंट्री हो रही थी। सामने की ओर चारों तरफ बैरिकेड्स लगाकर दिल्ली पुलिस की तैनाती थी। यहां से मीडिया की एंट्री पूरी तरह बैन कर रखा था, न सिर्फ मीडिया बल्कि इस गेट से मरीजों की भी एंट्री बंद थी। LNJP में भर्ती मरीज को देखने के लिए आने वाले तीमारदार को भी एंट्री नहीं थी। थोड़ी देर बाद ही वहां पैरा मिलिट्री फोर्स भी तैनात हो गई। काफी संख्या में पैरा मिलिट्री फोर्स को अस्पताल के अंदर भी तैनात किया गया। पूरा अस्पताल के चप्पे-चप्पे पर पुलिस और फोर्स तैनात हो गई। इसी बीच रात के करीब 1 बज चुके थे। अस्पताल के गेट नंबर-4 से थोड़ी दूर परेशान हालत में एक युवक दिखे। उन्होंने अपना नाम मोहम्मद उमैर बताया। हमने पूछा क्या हुआ। उमैर ने बताया... उमैर से बात करने के बाद हम आगे निकले। अस्पताल में जाने के लिए रास्ता खोज रहे थे। गेट नंबर-2 के पास एक छोटी सी जगह दिखी। वहां से हम किसी तरह अंदर दाखिल हुए। अस्पताल का बैक साइड... रात 12-3 बजे तक एम्बुलेंस से लाशें निकालीं गईं, हर लाश के साथ एक पुलिसवाले की तैनाती उमैर से करीब 20 मिनट तक बात करने के बाद हम इमरजेंसी वॉर्ड की तरफ बढ़े। तुरंत एक गार्ड ने रोक लिया। हाथ में दो फोन लिए हुए देखा। उसे शक हुआ कि हम कहीं मीडिया वाले तो नहीं। वीडियो तो नहीं बना रहे। तुरंत फोन चेक करने लगा। उस फोन में कोई वीडियो नहीं था। फिर मुझसे बोला कि तुरंत यहां से निकल जाइए। वहां से आगे निकलकर लॉबी में लगी लिफ्ट के पास रुक गए। थोड़ी देर बाद स्ट्रैचर पर एक डेडबॉडी लेकर कुछ लोग तेजी से बाहर निकल रहे थे। साथ में एक पुलिसकर्मी भी था। लेकिन मरने वाले का कोई परिजन नहीं दिखा। उसी के पीछे-पीछे हम अस्पताल के पिछले हिस्से में पहुंचे। वहां देखा कि दो से तीन एम्बुलेंस खड़ीं हैं। दो में पहले से सील डेडबॉडी रखीं थीं। जैसे ही स्ट्रैचर पर ये डेडबॉडी पहुंची तो वहां मौजूद एक पुलिसवाले ने देखा। अपने हाथ में लिए कागज से उसका मिलान कराया। किसी को फोन किया। बोला कि आप सीधे मोर्चुरी में पहुंचे। हम वहीं ला रहे हैं। इसके कुछ देर बाद ही 3-4 और एम्बुलेंस वहां आ पहुंची। अस्पताल कर्मचारी बोल रहे थे कि अब प्राइवेट एम्बुलेंस भी आ गईं हैं। इसके बाद पहले से खड़ी तीनों एम्बुलेंस तुरंत निकल गईं। थोड़ी देर बाद महज 25 मिनट के भीतर ही 6 डेडबॉडी आईं। हर डेडबॉडी के साथ एक पुलिसवाले की तैनाती होती थी। यहां मौजूद कुछ लोगों से बात हुई तब पता चला कि 12 बजे के बाद यहां से लाशें निकालनी शुरू हुईं। पुलिस कंट्रोल रूम जैसा बना इमरजेंसी वार्ड रात के करीब 2 बज चुके थे। गेट नंबर-2 के अंदर से इमरजेंसी वॉर्ड की तरफ पहुंचे। रास्ते में चारों तरफ पुलिसकर्मी और सिक्योरिटी गार्ड तैनात थे। जैसे ही इमरजेंसी वॉर्ड के पास पहुंचा। वहां देखा दो से तीन स्ट्रेचर तैयार थे। सिक्योरिटी गार्ड बोल रहे थे कि यहां से कोई नहीं आएगा। आसपास जो खड़े थे उन्हें पहली मंजिल पर बने ब्लड बैंक की तरफ जाने का इशारा किया जा रहा था। यहां पर हमें 23 साल के एक युवक मिले। नाम अर्श। उनकी पूरा परिचय नहीं लिख रहे। क्योंकि वो काफी डरे भी हुए थे। उन्होंने हमें बताया... मेरी मां LNJP अस्पताल में दो दिन से भर्ती हैं। रात के साढ़े 8 बजे थे। तभी अचानक इमरजेंसी में चहलकदमी बढ़ गई। शोर-शराबा होने लगा। एंबुलेंस के सायरन की आवाजें आने लगीं। अस्पताल में लोग भर्ती होने लगे। हम वहीं पर खड़े थे। हमलोग को हटाया जाने लगा। 9 बजते-बजते पूरा अस्पताल ही इमरजेंसी वॉर्ड में तब्दील हो गया। और इमरजेंसी वॉर्ड तो पुलिस कंट्रोल रूम के जैसा। हमलोगों को इमरजेंसी के आसपास भी आने-जाने से रोक दिया गया। युवक ने कहा- पुलिस और सिक्योरिटी गार्ड वहां मौजूद एक-एक लोग से पूछताछ करने लगे। तब तक नहीं पता था कि क्या हुआ है। हमसे भी पूछा गया। तुम रेलवे स्टेशन से आए हो। हमने कहा नहीं। तब मुझे वहां से तुरंत हटा दिया गया। हम इमरजेंसी वॉर्ड के पास पहली मंजिल पर ब्लड बैंक जाने वाली सीढ़ी के पास खड़े हो गए। वहां से देखा कि एम्बुलेंस से घायल आ रहे हैं। अस्पताल में उन्हें ले जाया जा रहा है। चीख पुकार और स्ट्रेचर पर देख समझ आ गया कि कई लोगों की मौत हुई है। लाशें नहीं दिखाईं, उनकी तस्वीरें फोन में लेकर परिजनों से पहचान कराई गई जहां कई एम्बुलेंस खड़ी थीं वहीं पर एक युवक मिला। उम्र करीब 28 साल। अपनी भाभी को दिखाने अस्पताल आए थे। वो काफी देर तक इमरजेंसी वॉर्ड में रहे। उन्होंने हमें बताया कि पुलिसवालों के फोन में मरने वालों की तस्वीरें थीं। हमने पूछा कि कितनी फोटो थीं। इस पर वो बोले कि फोटो की तो गिनती ही नहीं थीं। लाशें कहीं दूसरी जगह रखी हुईं थीं। वो हम नहीं देख पाए थे। लेकिन पुलिस वालों के फोन में 20 से 25 लोगों की फोटो थी। पुलिसवाले फोन में लीं तस्वीरें दिखाकर पीड़ित परिवारों से लाश की पहचान करा रहे थे। पूछ रहे थे कि ये आपके साथ के हैं या नहीं युवक ने कहा कि यहां से दो से तीन अस्पतालों में डेडबॉडी ले जाई गईं हैं। अब रात के साढ़े 3 बज रहे हैं। शुरू में डेडबॉडी नहीं निकाल रहे थे। मामला मीडिया में थोड़ा ठंडा पड़ा तब बॉडी निकालने लगे। पत्नी की रेलिंग में दबकर मौत हुई, पुलिसवाले बोले- ज्यादा रोना-चीखना नहीं अब रात के करीब साढ़े 3 बजने वाले थे। स्ट्रैचर पर एक के बाद एक कुल 3 लाशें आईं। हम वहीं पर मौजूद थे। तभी देखा कि सील डेडबॉडी आने के कुछ देर बाद ही तीन लोग आ रहे थे। 45 साल के आसपास एक शख्स और दो उनसे थोड़े अधिक उम्र के। एक के हाथ में पानी की बोतल थी। आंखों में आंसू। पर बिल्कुल शांत थे। कोई चीख पुकार नहीं। उनके पास में हम बैठ गए। तभी दिल्ली पुलिस के अधिकारी भी पहुंचे। उनके हाथ में कागजात थे। पूछने लगे कि आप लोग म

Feb 16, 2025 - 18:34
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दिल्ली भगदड़- अस्पताल से पूरी रात की आंखों देखी:पहचान के लिए परिजन को लाशें नहीं, फोटो दिखाए; पीड़ित बोला- पुलिस ने रोने-चिल्लाने से रोका

दिल्ली भगदड़- अस्पताल से पूरी रात की आंखों देखी: पहचान के लिए परिजन को लाशें नहीं, फोटो दिखाए; पीड़ित बोला- पुलिस ने रोने-चिल्लाने से रोका

Kharchaa Pani द्वारा, लेखकों की टीम - नेटानगरी

दिल्ली में हाल ही में हुई एक दर्दनाक घटना ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया है। भगदड़ के चलते अनेक लोगों की जानें गईं, और अस्पतालों में भयावह दृश्य सामने आए। यहाँ जानने लायक कुछ अहम बातें हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि इस घटना के समय क्या हुआ और किस प्रकार से इसका प्रभाव लोगों पर पड़ा है।

घटना का संक्षिप्त विवरण

यह घटना दिल्ली के एक प्रमुख धार्मिक स्थल पर हुई जब भक्तों की भारी भीड़ एकत्रित हुई। अचानक भगदड़ मच गई, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए और कई लोग अपनी जान गवा बैठे। इस भगदड़ ने कई परिवारों को तबाह कर दिया और अस्पतालों में आने वाले लोगों का तांता लग गया।

अस्पताल में रात बिताने वाले परिजनों की बातें

घटनास्थल पर मौजूद लोगों और अस्पताल में इलाज के लिए लाए गए घायलों के परिजनों ने अपनी तिल-तिल कर बिताई रात के बारे में बताते हुए कहा कि पुलिस ने उन्हें अपने प्रियजनों की पहचान करने के लिए लाशें नहीं बल्कि केवल फोटो दिखाई। यह सुनकर लोगों में आक्रोश था। अस्पताल में रात बिताने वाले एक पीड़ित ने बताया, "जब हम रोने-चिल्लाने लगे तो पुलिस ने हमें रोक दिया। यहाँ एक अद्भुत संवेदनहीनता का माहौल था।"

पुलिस की भूमिका पर सवाल

इस घटना के बाद पुलिस की भूमिका पर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या ऐसी परिस्थितियों में पुलिस को सक्रियता से मदद करनी चाहिए थी? क्या उन्हें लोगों की भावनाओं को समझते हुए अधिक संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए था? इन सवालों का उत्तर अभी भी अनुत्तरित है।

समाज में प्रगति की आवश्यकता

इस प्रकार की घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारी समाज में वास्तव में संवेदनशीलता है? क्या हम एक-दूसरे के दर्द को समझते हैं? समाज में इस प्रकार के मामलों में सुधार लाने के लिए हमें एकजुट होकर विचार करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: एक नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी

इस घटना ने केवल पीड़ितों और उनके परिवारों को नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को जागरूक किया है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐसी घटनाएँ फिर से न हों। हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रहे। यदि हम अपने समाज को सहानुभूति और समझदारी के साथ भरने में सफल होते हैं, तो हम एक सुरक्षित और संवेदनशील समाज की स्थापना कर सकते हैं।

दयालुता और मानवता का यह संदेश हमें हमेशा याद रखना चाहिए। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए संगठित रहना आवश्यक है। अधिक अपडेट के लिए, kharchaapani.com पर जाएं।

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