गुजरात हाईकोर्ट ने आसाराम को दी 3 महीने की जमानत:सुप्रीम कोर्ट से मिली थी 31 मार्च तक की जमानत, आजीवन कारावास की मिली है सजा
दुष्कर्म के दोषी आसाराम को गुजरात हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मेडिकल रिपोर्ट्स के आधार पर गुजरात हाई कोर्ट ने तीन महीने की जमानत दी है। आसाराम ने 6 महीनों की जमानत के लिए याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस इलेश वोरा की राय का जस्टिस एएस सुपेहिया ने समर्थन किया और आसाराम की तीन महीने की जमानत मंजूर हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने दी है 31 मार्च तक जमानत आसाराम बापू को 2013 के बलात्कार मामले में 2023 में सत्र अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और वह आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। उन्होंने छह महीने की अस्थायी जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उनके वकील ने तर्क दिया कि डॉक्टरों की राय के अनुसार उन्हें 90 दिनों के पंचकर्म चिकित्सा सत्र की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जनवरी में उन्हें 31 मार्च तक चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि इसे बढ़ाने के लिए संबंधित हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की जा सकती है, इसलिए आसाराम ने हाईकोर्ट से 6 महीने के लिए और जमानत मांगी थी। आसाराम को 2023 में सुनाई गई थी सजा 31 जनवरी 2023 को एक सेशन कोर्ट ने आसाराम बापू को अपने अहमदाबाद स्थित आश्रम में अपनी महिला शिष्या के साथ कई बार बलात्कार करने का दोषी पाया था। उन्हें दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। उन्हें आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक अपराध), धारा 342 (गलत तरीके से कारावास), 506 (आपराधिक धमकी) और 357 (किसी व्यक्ति को गलत तरीके से कैद करने के प्रयास में हमला या आपराधिक बल) और 354 (महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल) के तहत दोषी ठहराया गया था। आसाराम का बेटा भी जेल में पीड़िता की बहन ने ही आसाराम के बेटे नारायण साईं के खिलाफ भी रेप केस दर्ज कराया था। साल 2019 में नारायण साईं को भी दोषी पाते हुए कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा दी थी। यह मामला भी साल 2013 का है। नारायण साईं सूरत की लाजपोर जेल में बंद है।

गुजरात हाईकोर्ट ने आसाराम को दी 3 महीने की जमानत: सुप्रीम कोर्ट से मिली थी 31 मार्च तक की जमानत, आजीवन कारावास की मिली है सजा
Kharchaa Pani
लेखिका: राधिका सिंह, टीम نेतानागरी
परिचय
गुजरात हाईकोर्ट ने आसाराम बापू को तीन महीने की जमानत देने का फैसला सुनाया है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत के बाद आया है, जिसमें आसाराम को 31 मार्च तक जमानत पर बाहर रहने का मौका दिया गया था। हालाँकि, आसाराम की सजा आजीवन कारावास के रूप में सुनाई गई है। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है और इसने भारतीय न्यायिक प्रणाली के प्रति लोगों के विश्वास को भी प्रभावित किया है।
आसाराम का Background
आसाराम बापू का नाम विभिन्न विवादों में रहा है। उन्हें यौन शोषण के मामले में आरोपी पाया गया था, जिसके बाद उन्हें 2018 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। आसाराम का आश्रम भारत के कई राज्यों में फैला हुआ है और उनके भक्तों की संख्या भी काफी है। आलोचकों का कहना है कि आसाराम के अनुयायी उनके समर्थन में खड़े रहते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया पर दबाव पड़ता है।
जमानत के हालात
गुजरात हाईकोर्ट के जमानत आदेश में कुछ शर्तों के अधीन आसाराम को जमानत दी गई है। उन्हें कोर्ट में नियमित रूप से हाजिर होना होगा और जमानत भुगतान करने की शर्ते भी लागू हैं। इसके साथ ही, उन्हें कोई भी ऐसा काम नहीं करना होगा जो उनके मामले में प्रभाव डाल सकता हो। हाईकोर्ट ने आसाराम की जमानत को ध्यान में रखते हुए उनके खिलाफ चल रहे अन्य मामलों पर भी नजर रखने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आसाराम को अंतरिम जमानत देने का फैसला किया था। इस फैसले पर कई समीक्षाएँ आ रही हैं, और समाज के विभिन्न तबकों से जुड़ी प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है, जबकि अन्य इसे एक स्वतंत्र न्यायालय का संकेत मानते हैं जो कि सभी आरोपियों को समानता का अधिकार प्रदान करता है।
निष्कर्ष
आसाराम को दी गई जमानत ने एक बार फिर से भारतीय न्याय व्यवस्था की चर्चा को हवा दी है। अदालतों के फैसले और उनके पीछे के राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों को समझना महत्वपूर्ण है। क्या यह निर्णय भविष्य में और अधिक विवाद पैदा करेगा, या यह एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है, यह तो समय ही बताएगा। इन घटनाक्रमों पर नजर रखने के लिए अधिक अपडेट के लिए visit kharchaapani.com पर जाएँ।
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