एमपी पहला राज्य जहां धर्मांतरण पर फांसी की तैयारी:पहले से लव-जिहाद पर 10 साल तक सजा, लेकिन आसान नहीं होगी नए कानून की राह
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश में धर्मांतरण पर फांसी की सजा देने की बात की है। यादव ने 8 मार्च को भोपाल में महिला दिवस के एक कार्यक्रम में कहा कि मप्र में लागू धार्मिक स्वतंत्रता कानून में सरकार फांसी का प्रावधान कर रही है। यदि ऐसा हुआ तो मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होगा जो धर्मांतरण पर फांसी की सजा का प्रावधान करेगा। अभी इस कानून के तहत अधिकतम दस साल की सजा का प्रावधान है। सीएम के इस बयान पर कानून के जानकारों की राय अलग-अलग है। कुछ का मानना है कि सरकार के लिए ये फैसला लेना आसान नहीं होगा। जबकि किसी का कहना है कि सरकार कानून में संशोधन कर फांसी की सजा का प्रावधान कर सकती है। मध्यप्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 में लागू हुआ था। आखिर मुख्यमंत्री के इस बयान के क्या मायने हैं? क्या दूसरे राज्यों में ऐसा कोई प्रावधान है? क्या कानून में संशोधन करना ही पर्याप्त होगा? इन तमाम पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं। यूपी में धर्मांतरण पर उम्रकैद का प्रावधान वर्तमान में, भारत में कोई भी राज्य धर्मांतरण के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान नहीं रखता है। भारत के 11 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद है। ये राज्य हैं- ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश। राजस्थान सरकार ने हाल ही में हुए विधानसभा के बजट सत्र में पुराने कानून में संशोधन करते हुए धर्मांतरण विधेयक को पेश किया है। यदि ये कानून की शक्ल लेता है तो राजस्थान धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाने वाला 12वां राज्य बन जाएगा। नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 लेकर आई। अगले साल 2021 में इसे विधानसभा में पारित किया गया और यह धर्मांतरण विरोधी कानून बन गया। कानून अस्तित्व में आने के बाद साल 2020 से 2024 के बीच उत्तर प्रदेश में 800 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे और 1600 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। 124 लोग ऐसे थे जिन्हें जांच के बाद कोई भूमिका नहीं पाए जाने के कारण छोड़ दिया गया था। अब जानिए मुख्यमंत्री के बयान के क्या मायने हैं? मप्र में लागू इस कानून के तहत बीते 4 साल में 200 से ज्यादा केस दर्ज होने की जानकारी है। मुख्यमंत्री ने महिला सुरक्षा पर बात करते हुए ये बात कही है, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से ये नहीं कहा कि वे इसे कैसे लागू करेंगे? कानून के जानकारों की अलग-अलग राय मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के एडवोकेट और क्रिमिनल लॉ में पीएचडी डॉ. विनय हसवानी कहते हैं कि सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में इस बात का उल्लेख है कि केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने के अधिकार हैं। दूसरे राज्यों ने भी उम्रकैद जैसे कई सख्त प्रावधान किए हैं। मप्र सरकार कानून में संशोधन कर सकती है। मध्यप्रदेश के सीनियर एडवोकेट सचिन वर्मा भी कहते हैं कि जबरन धर्मांतरण पर फांसी की सजा का प्रावधान किया जा सकता है। वहीं कांग्रेस सांसद और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विवेक तन्खा कहते हैं कि संवैधानिक और कानूनी तौर पर ये संभव ही नहीं है। सीएम डॉ. यादव ने पार्टी नेताओं को खुश करने के लिए ये बयान दिया है। धर्मांतरण पर फांसी की सजा संभव है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट चारू माथुर कहती हैं कि इसके लिए मप्र सरकार को धर्म स्वतंत्रता कानून में संशोधन करना पड़ेगा। संशोधित बिल विधानसभा में पेश होगा। विधानसभा इसे पारित करेगी और फिर इसे मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। वह कहती हैं- धर्मांतरण पर फांसी की सजा का प्रावधान विधानसभा से पारित हो भी गया तो भी इस पर ढेरों आपत्तियां लग जाएंगी। फांसी बहुत ही जघन्य अपराधों में होती है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा कहते हैं कि ऐसा करने के लिए भारतीय न्याय संहिता में संशोधन की जरूरत होगी। बीएनएस पूरे देश का कानून है। इसमें अटॉर्नी जनरल की राय ली जाएगी। फांसी की सजा रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी में होती है। धर्मांतरण तो पहले से ही अपराध है। फिर इसमें फांसी की सजा कैसे संभव है? संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन ये भी साफ है कि यदि इस विषय पर केंद्र का कानून है तो राज्य का कानून लागू नहीं होगा। ये खबर भी पढ़ें - लाड़ली बहनों के खातों में 1552.73 करोड़ रुपए की राशि ट्रांसफर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महिला दिवस के मौके पर मध्यप्रदेश की 1.27 करोड़ महिलाओं के खाते में लाड़ली बहना योजना के 1250 रुपए ट्रांसफर किए। सिंगल क्लिक में मार्च 2025 की लगभग 1552.73 करोड़ रुपए की राशि ट्रांसफर की गई है। वहीं उज्ज्वला योजना की गैस कनेक्शन धारक महिलाओं के खाते में डीबीटी के जरिए भी राशि ट्रांसफर की गई। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एमपी पहला राज्य जहां धर्मांतरण पर फांसी की तैयारी: पहले से लव-जिहाद पर 10 साल तक सजा, लेकिन आसान नहीं होगी नए कानून की राह
Kharchaa Pani
लेखिका: प्रिया शर्मा, टीम नेतानागरी
परिचय
मध्यप्रदेश में हाल ही में बने नए कानून को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं, जिसमें धर्मांतरण को लेकर गंभीर सजा का प्रावधान किया गया है। यह देश का पहला राज्य है जहां धर्मांतरण पर फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। हालाँकि, इस नए कानून की राह आसान नहीं होगी। इस लेख में हम इस कानून के पीछे की वजहों और इसके संभावित परिणामों पर चर्चा करेंगे।
नया कानून: क्या है इसके पीछे की कहानी?
मध्यप्रदेश सरकार ने धर्मांतरण को रोकने के लिए एक कड़ा कानून लाने का निर्णय लिया है। इस कानून के तहत, यदि कोई व्यक्ति जागरूकता या दबाव डालने के माध्यम से धर्मांतरण कराता है तो उसे फांसी की सजा का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, लव-जिहाद के मामलों में भी 10 साल की सजा का प्रावधान पहले से ही था, जो कि इस नए कानून के तहत अपग्रेड किया गया है।
सामाजिक और राजनीतिक contexto
इस नए कानून से समाज में मतभेद और विरोधाभास सबसे अधिक देखने को मिल रहा है। एक ओर जहां कुछ लोग इसे सुरक्षा का कदम मानते हैं, वहीं दूसरी ओर इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कमी आने की आशंका भी जताई जा रही है। राजनीतिक दल इस मुद्दे पर अपने-अपने तरीके से विचार रख रहे हैं।
कानून का कार्यान्वयन: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
नए कानून के कार्यान्वयन के लिए न्यायपालिका, पुलिस और प्रशासन को एक ठोस योजना की आवश्यकता होगी। सामाजिक जागरूकता अभियानों का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान होगा। हालांकि, ये सब कुछ आसान नहीं होने वाला है क्योंकि इस कानून के खिलाफ कई सामाजिक संगठन विरोध कर रहे हैं।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश का यह नया कानून निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन इसके प्रभाव और कार्यान्वयन की दिशा में कई चुनौतियाँ हैं। अगर समय रहते इन चुनौतियों का समाधान नहीं किया गया, तो यह कानून केवल कागज़ों तक ही सीमित रह सकता है। भारत में कानून और समाज का ताना-बाना बहुत ही संवेदनशील है, और इस तरह के फैसले से संतुलन को बनाकर रखना आवश्यक है।
अंत में, यह ध्यान देने योग्य है कि कानूनों से पहले सही सामाजिक जागरूकता बेहद जरूरी है। समाज की भलाई के लिए इसे लागू करने में सुचारुता और स्पष्टता आवश्यक है।
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