इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की:पार्टियों का फंड जब्त करने की मांग की गई थी, BJP को सबसे ज्यादा चंदा मिला था

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी बॉन्ड) से जुड़ी याचिका खारिज कर दी। याचिका में कोर्ट से उसके पुराने फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी। पुराने फैसले में कोर्ट ने राजनीतिक दलों को मिले 16,518 करोड़ रुपए जब्त करने की मांग खारिज की थी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने 2 अगस्त, 2024 के शीर्ष अदालत के फैसले के ख़िलाफ खेम सिंह भाटी द्वारा दायर समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी, 2024 को चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, भारतीय स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग के साथ फंडिंग में मिले रुपयों का डेटा साझा किया था। भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी - चुनाव आयोग ने 14 मार्च, 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी किया था। इसमें भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी थी। 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक पार्टी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले थे। लिस्ट में दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस (1,609 करोड़) और तीसरे पर कांग्रेस पार्टी (1,421 करोड़) थी। जानिए क्या है चुनावी बॉण्ड योजना - चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 को उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया था। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है, और राजनीतिक पार्टियों फंड दे सकती थी। राजनीतिक फंडिंग को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाने और के लिये साल 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना शुरू की गई थी। सरकार ने इस योजना को ‘कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था’ की ओर आगे बढ़ने में एक अहम ‘चुनावी सुधार’ बताया था। विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम - 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। इससे ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। याचिका दाखिल करने वाली संस्था ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने दावा किया था कि इस प्रकार की चुनावी फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी। कुछ कंपनियां उन पार्टियों में अज्ञात तरीकों से फंडिंग करेंगी, जिन पार्टियों की सरकार से उन्हें फायदा होता है। 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीदे जा सकते थे - कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डिटेल में देनी होती थी। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते थे। इसलिए 15 दिन के अंदर इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता था। ------------------ ये खबर भी पढ़ें... वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे ओवैसी:कांग्रेस सांसद ने भी याचिका लगाई; मोदी बोले- यह बिल ट्रांसपेरेंसी बढ़ाएगा वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिका लगाई गई। बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने यह याचिका लगाई है। पूरी खबर पढ़ें...

Apr 4, 2025 - 17:34
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इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की:पार्टियों का फंड जब्त करने की मांग की गई थी, BJP को सबसे ज्यादा चंदा मिला था
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी बॉन्ड) से जुड़ी याचिका खारिज कर दी। याचिका मे

इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की: पार्टियों का फंड जब्त करने की मांग की गई थी, BJP को सबसे ज्यादा चंदा मिला था

Kharchaa Pani

लेखिका: साक्षी शर्मा, टीम नेतानागारी

संक्षिप्त परिचय

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉंड से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पार्टियों के फंड को जब्त करने की मांग की गई थी। यह मामला उन आरोपों से जुड़ा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सबसे अधिक चंदा प्राप्त हुआ है।

क्या है इलेक्टोरल बॉंड?

इलेक्टोरल बॉंड एक प्रकार का वित्तीय उपकरण है जिसे भारतीय सरकार ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए पेश किया था। इसका प्रमुख उद्देश भारतीय राजनीति में चंदे की पारदर्शिता को बढ़ाना है। हालांकि, इस प्रणाली पर विवाद भी है, क्योंकि इसके माध्यम से चंदा देने वालों की पहचान गुप्त रहती है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई की जिसमें मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त इलेक्टोरल बॉंड से मिले चंदे को जब्त किया जाए। याचिकाकर्ताओं का मानना था कि इस सिस्टम से एकतरफा चंदा प्राप्त करने में बीजेपी को लाभ हुआ है। हालांकि, कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि इस मामले में अभी तत्संबंधी साक्ष्य नहीं हैं।

राजनीतिक दलों को चंदा कब और कैसे मिलता है?

भारतीय राजनीतिक दलों को चंदा प्राप्त करने की प्रक्रिया सरल है, लेकिन इसमें कई तकनीकी पहलू भी शामिल हैं। इलेक्टोरल बॉंड के माध्यम से चंदा देने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम गुप्त रहता है, जिससे इससे जुड़ी पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। यह प्रणाली छोटे पार्टियों को भी चंदा प्राप्त करने का अवसर देती है, लेकिन बड़े दलों को अधिक चंदा मिलने की संभावना रहती है।

भविष्य की संभावनाएँ

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने राजनीतिक दलों की फंडिंग प्रक्रिया पर एक बार फिर से सवाल उठाए हैं। क्या इलेक्टोरल बॉंड प्रणाली वास्तव में राजनीतिक पारदर्शिता को बढ़ा रही है या यह एक साशनिक खेल बन चुका है? आने वाले समय में इस पर और भी विमर्श होने की संभावना है।

समापन

इलेक्टोरल बॉंड से जुड़ी याचिका का खारिज होना यह दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस वित्तीय प्रणाली पर अभी पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया है। पुलिस, न्यायपालिका और राजनीतिक दलों के बीच सामान्य संवाद एवं विमर्श का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। यह भारतीय राजनीति की एक महत्त्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा है जो भविष्य में भी जारी रहेगी।

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