सोशल मीडिया पर बच्चों के बैन की याचिका खारिज:सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मामला हमारे दायरे से बाहर, संसद से कानून बनाने को कहें
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर काननी प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा- यह नीतिगत मामला है। आप संसद से कानून बनाने के लिए कहें। यह हमारे दायरे से बाहर है। हालांकि कोर्ट ने अन्य अथॉरिटी के सामने अपील करने की छूट दी है। पीठ ने कहा कि आठ सप्ताह के भीतर कानून के अनुसार अपील की जा सकती है। बायोमेट्रिक वैरिफिकेशन सिस्टम बनाने की मांग जेप फाउंडेशन की याचिका में केंद्र सरकार और अन्य अथॉरिटी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक बच्चों की पहुंच को रेगुलेट करने के लिए बायोमेट्रिक वैरिफिकेशन जैसा एज वैरिफिकेशन सिस्टम शुरू करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। इसके अलावा बाल संरक्षण नियमों का पालन करने में असफल रहने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सख्त कानूनी कार्रवाई की भी मांग की गई थी। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के नियमों का ड्राफ्ट तैयार अब 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सोशल मीडिया पर अकाउंट खोलने के लिए अपने पेरेंट्स की सहमति लेना जरूरी होगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP), 2023 के तहत नियमों का ड्राफ्ट तैयार किया है। इस ड्राफ्ट को लोगों के लिए 3 जनवरी को जारी किया गया था। मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने नोटिफिकेशन में कहा कि लोग Mygov.in पर जाकर इस ड्राफ्ट को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं और सुझाव भी दे सकते हैं। लोगों की आपत्तियों और सुझावों पर 18 फरवरी से विचार किया जा रहा है। नाबालिग के सोशल मीडिया अकाउंट खोलने पर पैरेंट्स के मोबाइल-ईमेल पर आएगा OTP सोशल मीडिया पर नाबालिगों के अकाउंट खोलने के लिए पैरेंट की सहमति के प्रावधान का एक मॉर्डल सामने आया है। आईटी मिनिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चों के पैरेंट्स के मोबाइल फोन और ईमेल पर ओटीपी (OTP) आएगा। ये ओटीपी डिजिटल स्पेस में पहले से मौजूद बच्चों और पैरेंट्स की डिजिटल आईडी कार्ड के आधार पर जनरेट होगा। इसके जरिए बच्चों या माता पिता का डेटा पब्लिक नहीं होगा। उम्र और कंफर्म की परमिशन भी पैरेंट से ली जा सकेगी। दैनिक भास्कर के सूत्रों के मुताबिक पैरेंट की परमिशन हमेशा के लिए नहीं होगी। उन्हें जब लगेगा कि उनकी परमिशन का गलत यूज हो रहा है या ये परमिशन धोखे से ली गई है, परमिशन के बारे उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में वे इसे परमिशन को वापस भी ले सकेंगे। दरअसल, केंद्र सरकार ने 3 जनवरी को डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP), 2023 के तहत नियमों का ड्राफ्ट तैयार किया है। इसके तहत अब 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सोशल मीडिया पर अकाउंट खोलने के लिए अपने पेरेंट्स की सहमति लेना जरूरी होगा।

सोशल मीडिया पर बच्चों के बैन की याचिका खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मामला हमारे दायरे से बाहर, संसद से कानून बनाने को कहें
Kharchaa Pani
रिपोर्टर: साक्षी शर्मा, टीम नेतानागरी
परिचय
भारत के सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में सोशल मीडिया पर बच्चों के बैन की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि यह मुद्दा उनके न्यायिक दायरे से बाहर है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों के लिए उचित कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद की है। यह निर्णय न केवल बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखता है, बल्कि यह उन कानूनों के जरूरत को भी उजागर करता है, जो बच्चों को सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण प्रदान कर सकें।
मामले का पृष्ठभूमि
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए कई संगठन और व्यक्तिगत लोग सक्रिय रहे हैं। इनमें से कुछ ने आरोप लगाया है कि बच्चे इन प्लेटफार्मों पर अशोभनीय सामग्री का सामना कर रहे हैं, जो उनकी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। इसके तहत याचिका दाखिल की गई थी जिसमें सरकार से अनुरोध किया गया था कि बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगाया जाए। याचिका में यह भी कहा गया था कि बच्चों की सुरक्षा के लिए आसान और समुचित तरीके से नियमों का निर्माण होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला उनके न्यायिक सीमा में नहीं आता। अदालत ने कहा, "हमारा काम कानून बनाने का नहीं, बल्कि कानूनों की व्याख्या करने का है। ऐसे मामलों में कानून बनाना संसद का कार्य है।" इसके साथ ही, अदालत ने संसद से अपील की कि वे इस विषय पर विचार करें और आवश्यक कदम उठाएं।
सामाजिक और कानूनी निहितार्थ
यह निर्णय कई सवालों को उठाता है जैसे कि क्या बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकार और संबंधित एजेंसियों को और अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए? क्या वर्तमान में चल रहे नियम और कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं? इस निर्णय का मुख्य निहितार्थ यह है कि अब वक्त आ गया है कि संसद इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान दे और उचित कानून बनाए।
निष्कर्ष
सर्वोच्च अदालत का यह निर्णय हमें याद दिलाता है कि बच्चों को सामर्थ्य और सुरक्षा देकर समाज को एक जिम्मेदार भूमिका निभाने की आवश्यकता है। संसद को इस मुद्दे पर विचार करके एक ठोस कानून बनाना चाहिए, ताकि बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ ऑनलाइन माहौल मिल सके। अगर हम चाहता हैं कि हमारे बच्चे सुरक्षित रहें, तो हमें विधायक स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
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