अटल अखाड़े में मगरमच्छ-सांपों के बीच हठयोग:कड़कड़ाती ठंड में 108 मटकों के पानी से नहाते हैं नागा, कोई न कोई हठयोग जरूरी

कुंभ क्षेत्र में नागाओं का हठयोग देखने की सबसे मुफीद जगह है श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा। यहां के नागा और साधु सुबह 4 बजे मटकों के पानी से नहाते हैं, तो भरी गर्मी में आग जलाकर उसके बीच घंटों बैठे रहते हैं। वे दावा करते हैं कि उन्हें जानवरों की बोली भी समझ आती है। हठयोग के दौरान घास भी खा लेते हैं। मुझे दो दिन पहले पता चला कि यहां के नागा साधु प्रमोदगिरी कड़ाके की सर्दी में जलधारा हठयोग कर रहे हैं। कुंभ में उनके इस जलधारा हठयोग का 9वां साल है। उनका ठंडे पानी से नहाने का हठयोग देखने मैं अटल अखाड़े में पहुंच गई। दैनिक भास्कर की अखाड़ों की कहानी सीरीज की दूसरी किस्त में पढ़िए श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़े की पूरी कहानी… कुंभ क्षेत्र के सेक्टर- 20 के काली मार्ग पर शैव सम्प्रदाय के श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा का शिविर है। नागा साधु इसे अपनी छावनी कहते हैं। घना कोहरा छाया हुआ है, पारा भी 5-6 डिग्री के आसपास ही होगा। अटल अखाड़े के गेट पर चटख गुलाबी रंग की लड़ियां जगमगा रही हैं। अखाड़े के बाहर नागा साधु प्रमोदगिरी महाराज का धूणा यानी धूनी है। वह धूणे के सामने ऊंचे से मखमली आसन पर बैठे हैं। प्रमोदगिरी राजस्थान के गंगापुर से आए हैं। अपने जलधारा हठयोग के चलते वे सुबह 4 बजे मटकों के पानी से स्नान करते हैं। भीषण गर्मी में अपने चारों तरफ उपलों की आग में सात दिन, तीन से पांच घंटे बैठ तपस्या करते हैं। जलधारा हठयोग में रात में ही मटकों में पानी भरकर रखा जाता है। ब्रह्ममुहूर्त में यानी सुबह 4 बजे इसे अपने सिर के ऊपर डलवाया जाता है। सिर के ऊपर मटकों का पानी डालने के लिए एक खास तरह की ऊंची जगह बनाई गई है। उसे फूलों से सजाया गया है। थोड़ी ऊंचाई पर तीन चार युवा संत खड़े हैं। पानी डालने का क्रम न टूटे इसके लिए मटके उठाकर देने के लिए एक दर्जन से ज्यादा लोग वहां मौजूद हैं। चार बजने में कुछ ही सेकेंड बचे थे। तभी सवा मीटर की नागफनी यानी लंगोट पहने प्रमोदगिरी उस आसन पर आकर बैठ गए, जिस पर उन्हें इन मटकों में भरे गंगाजल से स्नान करना है। नागा बाबा के लंगोट को नागफनी कहते हैं और वह सवा मीटर की होती है। घड़ी की सेकेंड वाली सुई जैसे ही 12 पर पहुंची, एक के बाद एक प्रमोदगिरी के ऊपर मटके का ठंडा पानी डाला जाने लगा। हर-हर महादेव, हर-हर गंगे के जयघोष लगने लगे। करीब 45 मिनट में उनके ऊपर 108 मटकों का पानी डाल दिया गया। एक कपड़े से बदन सुखाने के बाद वह कंबल लपेट अपने आसन पर आकर बैठ गए। उनके लिए चाय लाई गई। बाबा के शरीर का पानी तो कपड़े से पोंछकर सुखा दिया गया, लेकिन ऐसी सर्दी में जटाएं कैसे सूखेंगी। मैं यही सोच रही थी कि इतनी देर में उन्होंने चाय पी ली। बाबा का हाल जानने के लिए अखाड़े के कई संत आए। इसके बाद उन्होंने अपने पूरे शरीर पर भस्म मली। वह मुझसे कहने लगे कि धूणे की भस्म लगा ली है अब सब ठीक हो जाएगा। नागा बाबा प्रमोदगिरी के शिष्यों में शामिल राजस्थान के बड़े-बड़े अधिकारी, कारोबारी और नेता उनका आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं। प्रमोदगिरी के गुरु श्री श्री 1008 नागा बाबा नंगेश्वरी महाराज की प्रसिद्धि आज तक इलाके में है। नंगेश्वरी बाबा पटना के राज परिवार से थे। संन्यासी बनने के बाद यहां आकर रहने लगे थे। वह मिट्‌टी के बर्तनों में ही खाना बनाते और खाते थे। उनके चमत्कार आज भी याद किए जाते हैं। मैंने उनसे अटल अखाड़े से जुड़ने की वजह पूछी… प्रमोदगिरी कहते हैं, दादा-परदादा भी अटल अखाड़े से जुड़े थे। परिवार की परंपरा होने के चलते उन्होंने भी अखाड़े के गुरु दिगंबर दिलीप गिरी से दीक्षा ली। लोग पूछते हैं कि कहां के हो तो गर्व से कहता हूं अटल अखाड़े से। यहां हर कोई नहीं रह सकता, कठोर तपस्या करनी होती है। प्रमोदगिरी कहते हैं कि 9 साल से वे ठंड में ही ये हठयोग कर रहे हैं। वैसे तो ये 41 दिन का होता है। यहां कुछ परेशानियां हैं इसलिए इस बार 21 दिन का है। 51 घड़ों से शुरू किया था। हर दिन घड़े बढ़ते गए। आखिरी दिन 108 हो गए। अटल अखाड़े में हठयोगी बहुत हैं। इनमें से एक बाबा नवीन गिरी साढ़े सात साल तक खड़े रहे। ऐसा वे कई बार कर चुके हैं। इन्हें अब खड़ेश्वरी बाबा कहा जाता है। वह बताते हैं कि बस में, ट्रेन में सभी जगहों पर वह खड़े ही रहते थे। कठोर नियम की वजह से कम हो रहे इस अखाड़े में नागा कड़े अनुशासन और कठोर नियमों की वजह से इस अखाड़े में नागा धीरे-धीरे कम हो रहे हैं। फिलहाल अखाड़े में करीब 1500 साधु हैं, वहीं दूसरे अखाड़ों में इनकी संख्या 50 हजार से 1.5 लाख तक है। अटल अखाड़े के इष्ट देव आदि गणपति हैं। आदि गणपति, गणपति बप्पा से अलग हैं। अखाड़े के संत कहते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती की शादी में आदि गणपति ही मौजूद थे। पहले अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मण शामिल हो सकते थे, लेकिन अब सभी जातियों के लोग अखाड़े में शामिल हो सकते हैं। मगरमच्छ-सांपों के बीच हठयोग हठयोगी खड़ेश्वरी बाबा नवीन गिरी कहते हैं पानी में मगरमच्छ, जंगल में जानवर और सांपों के बीच हठयोग करते हैं। उनका आश्रम मध्यप्रदेश के शिवपुरी (बाणगंगा) में है। जिसे मढ़ियां वाले सिद्ध बाबा भी कहते हैं। यह घने जंगल के बीच है। जहां उनके आसपास हजारों बंदर और दूसरे खतरनाक जानवर भी हैं। अपने हठयोग में वह जानवरों की भाषा समझने लगे थे। यही नहीं उन्होंने बारह साल तक कॉफी पी और सिर्फ घास पीसकर खाई है। नवीन गिरी कहते हैं कि सांसारिक लोग मोह-लोभ के लिए व्रत या संकल्प लेते हैं। हम लोग समाज कल्याण के लिए तप करते हैं। ऐसा करने से हमारे पास शक्तियां आती हैं। तभी हम आशीर्वाद देते हैं। तप पूरा होते ही कन्या पूजन करना होता है। इसके बाद भंडारा होता है। अटल अखाड़े को मिला था बादशाहत का टाइटल श्रीमहंत पुरुषोत्तम गिरी महाराज बहुत बुजुर्ग हैं। बहुत मुश्किल से वे बात करने तैयार हुए। वो बताते हैं, ‘सदियों पहले हमारे अखाड़े को अटल सरकार और अटल बादशाही कहा जाता था। ये एक अकेला ऐसा अखाड़ा है जिसे बादशाहत का टाइटल मिला था।’ अटल सरकार अखाड़ा तो ठीक है, लेकिन अटल बादशाही

Jan 24, 2025 - 19:17
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अटल अखाड़े में मगरमच्छ-सांपों के बीच हठयोग:कड़कड़ाती ठंड में 108 मटकों के पानी से नहाते हैं नागा, कोई न कोई हठयोग जरूरी
कुंभ क्षेत्र में नागाओं का हठयोग देखने की सबसे मुफीद जगह है श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा। यहां के

अटल अखाड़े में मगरमच्छ-सांपों के बीच हठयोग: कड़कड़ाती ठंड में 108 मटकों के पानी से नहाते हैं नागा, कोई न कोई हठयोग जरूरी

Kharchaa Pani

लेखिका: प्रिया शर्मा, मीनाक्षी रावत - टीम नेटानागरी

परिचय

हर साल की तरह इस साल भी उत्तर भारत के कई हिस्सों में कड़कड़ाती ठंड ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में उत्तराखंड के हरिद्वार में लगे अटल अखाड़े में महायोगी महामंडलेश्वर और नागा साधुओं का हठयोग विशेष रूप से चर्चा का विषय बन गया है। यहाँ आम नागा साधू 108 मटकों के पानी से स्नान करते हैं। क्या है इस खास हठयोग की महत्ता? आइए जानें।

हठयोग का महत्व

हठयोग एक प्राचीन योग पद्धति है जो शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन जब बात नागा साधुओं की आती है, तो इसमें एक अलग ही जुनून देखने को मिलता है। ठंड के मौसम में 108 मटकों में रखा पानी, जो कि बर्फ के समान ठंडा होता है, से स्नान करना केवल एक शारीरिक चुनौती नहीं है, बल्कि यह साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे आत्मिक क्षमता और समर्पण का प्रतीक मानते हैं।

सांप और मगरमच्छों के बीच साधना

अटल अखाड़े में साधकों का एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। यहाँ साधक साधना के दौरान सांपों और मगरमच्छों के बीच बैठते हैं। यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है, जो अन्य साधकों में साहस और धैर्य का संचार करती है। इनसे जुड़े साधक मानते हैं कि ऐसे खतरनाक जीवों के बीच बैठकर हठयोग करने से आत्मा की शक्ति का विकास होता है।

ऐसी ठंड में स्नान का अनुभव

कड़ी ठंड में 108 मटकों के पानी से स्नान करते समय नागा साधू केवल अपने शरीर को नहीं, बल्कि अपने मन को भी तपाते हैं। इस रश्मि में संलग्न होने से साधकों का ध्यान गहराई में जाता है। ठंडे पानी से स्नान के बाद उन पर एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है। इस अनुभव ने ना केवल उनके भौतिक शरीर को मजबूत बनाया है, बल्कि उनकी आंतरिक चेतना को भी प्रबल किया है।

उपरान्त

कड़कड़ाती ठंड में नागा साधुओं का हठयोग सिर्फ एक क्रिया नहीं, बल्कि यह एक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इन साधकों का जीवन एक मिशन की तरह है, जो उन्हें ना केवल अपनी साधना में संलग्न करता है, बल्कि उन्हें समाज में एक नई प्रेरणा देने का काम भी करता है। इस प्रकार का हठयोग सभी के लिए एक सन्देश है कि जीवन में धैर्य और साहस की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है।

किसी भी धर्म या परंपरा में खुद को समर्पित करना शायद जीवन का सबसे बड़ा उपहार है। ठंड में भी जल का उद्देश्य सिर्फ स्नान नहीं, बल्कि आत्मा को राह दिखाना भी है।

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