इंदौर में कपड़े बेच रहे अर्जुन अवॉर्डी पहलवान के पिता:बोले- बेटी दिव्या काकरान को अंतर्राष्ट्रीय रेसलर बनाने सब कुछ दांव पर लगा दिया
इंदौर में अखिल भारतीय महापौर केसरी प्रतियोगिता चल रही है। यहां देशभर से आए महिला और पुरुष पहलवानों के मुकाबले जारी हैं। 2 फरवरी तक प्रतियोगिताएं होंगी। इस बीच, छोटा नेहरू स्टेडियम के बाहर रेसलिंग कपड़ों की दुकान लगाकर बैठे एक शख्स सूरजमल काकरान लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। ये कोई और नहीं देश के लिए 68 किलो वर्ग में खेलने वाली अर्जुन अवाॅर्डी पहलवान दिव्या काकरान के पिता हैं। दिव्या जहां भी रेसलिंग के लिए जाती हैं, उनके पिता साथ रहते हैं। बेटी अंदर पहलवानी करती है, पिता बाहर रेसलिंग के कपड़े बेचते हैं। दैनिक भास्कर ने सूरजमल काकरान से कपड़ों की दुकान लगाने की वजह पूछी। उन्होंने बताया कि मैं एक तरह से कुश्ती की सेवा कर रहा हूं। रेसलिंग सामग्री बेचकर बहुत खुश हूं। मैं बेटी के साथ जहां जाता हूं वहां कपड़ों का स्टॉल लगाता हूं। जब वह कहीं नहीं जाती तो गाजियाबाद में ही दुकान लगाता हूं। पत्नी पहलवानों के लिए लंगोट बनाती है। मैं बाजार से स्पोर्ट्स के कपड़े खरीदता हूं। ये सब मामूली प्रॉफिट पर बेचता हूं। हमारी आय का यही मुख्य जरिया है। दिव्या में ज्यादा संभावनाएं थी, इसलिए उसे बढ़ाया सूरजमल ने बताया- दिव्या के अलावा मेरे दो बेटे हैं। तीनों भाई-बहन पहलवानी करते थे। दिव्या में ज्यादा संभावनाएं थीं, इसलिए उसे आगे बढ़ाया। एक साथ तीनों को मैदान में उतार पाना संभव नहीं है। दोनों बेटों को पढ़ाई और दिव्या को पहलवानी में आगे किया। आज एक सामान्य दर्जे के पहलवान को बादाम, दूध, घी, प्रोटीन और अन्य खुराक पर एक से डेढ़ हजार रुपए का खर्च आता है। यदि कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की तैयारी करे तो ये खर्च लाखों में होता है। सूरजमल ने कहा- बेटी को आगे बढ़ाने के लिए मैंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। जिस तरह मेरे परिवार ने साथ दिया, वैसा ही देश की हर बेटी को आगे बढ़ने में साथ मिलना चाहिए। अपनी बेटियों को रेसलिंग में भेजेंगे तो वे अपना ही नहीं भारत का भी नाम रोशन करेंगी। केजरीवाल ने न तो पुरस्कार दिया न ही कोई मदद की सूरजमल ने बताया कि बेटी दिव्या जब कॉमनवेल्थ जीतकर आई तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सम्मान करने आए थे। तब दिव्या ने कहा कि मदद की जरूरत थी, तब क्यों नहीं की। यह सुनकर केजरीवाल ने दिव्या को न तो पुरस्कार दिया और ना ही किसी तरह की मदद की। इसके बाद हम उत्तरप्रदेश शिफ्ट हो गए। वहां योगी सरकार ने दिव्या को फरवरी 2024 में नायब तहसीलदार की नौकरी दी है और नौकरी पर जाने की पूरी तरह से छूट भी। वहां कई तरह की अतिरिक्त सुविधाएं भी सरकार दिव्या को दे रही है। सरकार ने उन्हें नौकरी पर आने से छुट्टी दी है, ताकि वे पूरा समय पहलवानी कर सकें। डोप टेस्ट में भी आ चुका है दिव्या काकरान का नाम दिव्या काकरान को राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) की ओर से लिए गए उनके सैंपल में प्रतिबंधित स्टेरॉयड मिथाइल टेस्टोस्टोरॉन और उसके मेटाबोलाइट्स पाए गए। नाडा ने दिव्या का आउट ऑफ कंपटीशन सैंपल उनके आवास से लिया था, जिसकी टेस्टिंग वाडा से मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय डोप टेस्ट लैबोरेटरी (एनडीटीएल) में की गई थी। इसी लैब की टेस्टिंग में एनाबॉलिक एंड्रोजेनिक स्टेरॉयड पाया गया है। तब दिव्या ने कहा था कि उनके करियर को बर्बाद करने के लिए कुछ लोग साजिश रच रहे हैं। मैंने 30 से अधिक बार विदेश दौरे किए, लेकिन कभी गलत चीजों का इस्तेमाल नहीं किया। मैं पूरी तरह बेगुनाह हूं। यह खबर भी पढ़ें... मेयर केसरी कुश्ती प्रतियोगिता में 51 लाख का इनाम इंदौर के छोटा नेहरू स्टेडियम में 31 जनवरी से अखिल भारतीय महापौर केसरी, मध्य प्रदेश महापौर केसरी और इंदौर महापौर केसरी महिला और पुरुष वर्ग की कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। महिला और पुरुष वर्ग में विजेताओं को 51 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। पूरी खबर यहां पढ़ें...

इंदौर में कपड़े बेच रहे अर्जुन अवॉर्डी पहलवान के पिता: बोले- बेटी दिव्या काकरान को अंतर्राष्ट्रीय रेसलर बनाने सब कुछ दांव पर लगा दिया
Kharchaa Pani
लेखिका: सिमरन यादव, टीम नेतानागरी
परिचय
इंदौर शहर में कपड़े बेचने वाले अर्जुन अवॉर्डी पहलवान के पिता की कहानी सच में प्रेरणादायक है। उनका नाम है बालकृष्ण काकरान, जिन्होंने अपनी बेटी दिव्या काकरान को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहलवान बनाने के लिए अपनी ज़िंदगी की मजदूरी पर कड़ी मेहनत की है। यह कहानी न केवल मेहनत बल्कि परिवार के संघर्ष की भी है।
पिता का समर्पण
बालकृष्ण काकरान, जिनकी पहचान उनके बेटे के नाम से कम, बल्कि उन्होंने जिस तरह से अपनी बेटी को आगे बढ़ाने में मदद की है, उसकी वजह से ज्यादा हो गई है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने सभी संसाधनों को अपने परिवार और विशेष रूप से अपनी बेटी के सपनों के लिए जोखिम में डाल दिया। पिता ने कहा, "मैंने सब कुछ दांव पर लगाया है ताकि मेरी बेटी को वह सभी समर्थन मिल सके, जिसकी उसे जरूरत है।"
दिव्या काकरान के सपने
दिव्या काकरान, जो एक उभरती हुई अंतरराष्ट्रीय पहलवान हैं, ने अपने पिता के बलिदान को ध्यान में रखते हुए अपने सपनों को पूरा करने का ठान लिया है। उन्होंने अपने हालिया प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त की है और अब उनका लक्ष्य ओलंपिक में भाग लेना है। दिव्या ने बताया, "मेरे पिता ने हमेशा मुझे प्रेरित किया है कि मैं खुद पर विश्वास रखूं। उनकी मेहनत और हिम्मत से ही मैं आज इस मुकाम पर पहुंची हूं।"
समुदाय का समर्थन
बालकृष्ण काकरान की कहानी केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा नहीं है, बल्कि यह उन सभी परिवारों के लिए एक प्रेरणा है जो अपने बच्चों को सफल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। स्थानीय समुदाय ने भी काकरान परिवार का समर्थन किया है और अब दिव्या को उनके आगामी प्रतियोगिताओं में सहायता करने का प्रयास कर रहा है।
निष्कर्ष
दिव्या काकरान और उनके पिता की कहानी एक उज्जवल उदाहरण है कि कैसे संघर्ष और समर्पण से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस यात्रा में उन्होंने जो सबक सीखा है, वह न केवल उनके लिए बल्कि समाज के प्रत्येक हिस्से के लिए प्रेरणाश्रोत है। यदि हम सभी अपने परिवार के सदस्यों के सपनों को मानते हुए उन्हें समर्थन दें, तो हम सभी मिलकर एक मजबूत और सफल पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं।
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