उत्तराखंडी बोली-भाषा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में ऐतिहासिक उपलब्धि

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Dec 28, 2025 - 00:34
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उत्तराखंडी बोली-भाषा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में ऐतिहासिक उपलब्धि

उत्तराखंडी बोली-भाषा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में ऐतिहासिक उपलब्धि

 

जब किसी भाषा को संरक्षित करने की बात आती है, तो यह केवल शब्दों का संग्रह नहीं होता—यह एक सभ्यता की आत्मा को बचाने का संकल्प होता है। 25 दिसंबर 2025 को एडमॉन्टन, अल्बर्टा में Northern Alberta Uttarakhand Association द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम ने इसी संकल्प को साकार रूप दिया। यह महज एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उत्तराखंड की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनर्स्थापित करने का एक ऐतिहासिक क्षण था।

सुखद संयोग: दो महाद्वीपों पर एक साथ गूंजी देवभूमि की आवाज़

यह एक अद्भुत संयोग है—एक तरफ यूरोप की धरती पर ** पद्मश्री प्रीतम भरतवाण अपनी जागर और ढोल की थाप से उत्तराखंड की लोक संस्कृति का डंका बजा रहे हैं, और दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिका में हमारी बोली-भाषा के लिए यह ऐतिहासिक लॉन्चिंग संपन्न हुई। दो महाद्वीपों पर एक साथ उत्तराखंडी संस्कृति का यह उत्सव न केवल गौरव का विषय है, बल्कि यह प्रमाण है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं।
विश्व के किसी भी कोने में हों, प्रवासी उत्तराखंडी अपनी माटी की सुगंध को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इस तरह के आयोजनों का एक साथ होना अपने आप में एक सकारात्मक और प्रेरक संदेश है। सभी प्रवासी उत्तराखंडी साधुवाद के पात्र हैं, जो अपनी लोक विधा और बोली-भाषा को न केवल बचाए रखने, बल्कि उसे विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए ऐसी महत्वपूर्ण पहलों में आगे आ रहे हैं।

मुख्य उपलब्धियां और घोषणाएं

इस ऐतिहासिक अवसर पर Bhasha AI Uttarakhand की ओर से कई युगांतकारी घोषणाएं की गईं, जिनका उद्देश्य गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को आधुनिक तकनीक, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, से जोड़ना है।

1. ओपन-सोर्स भाषा डेटासेट का विमोचन: डिजिटल युग में भाषा संरक्षण की नई इबारत

उत्तराखंडी बोली-भाषाओं के लिए तैयार किया गया समृद्ध भाषा डेटा सेट ओपन-सोर्स रूप में जारी किया गया। यह डेटासेट गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं के व्याकरण, शब्दकोश और वाक्य संरचना का व्यापक संग्रह है। अब विश्वभर के AI मॉडल इन भाषाओं पर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे, जिससे Google Translate से लेकर ChatGPT जैसे प्लेटफॉर्म पर हमारी भाषाएं जीवंत हो उठेंगी।
यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी भाषा से जुड़े रहने का एक सशक्त माध्यम है।
2. ** योगदानकर्ताओं का सम्मान: उन अनाम नायकों को प्रणाम जिन्होंने भाषा को बचाया **
Bhasha AI पोर्टल पर भाषा डेटा और शब्द संग्रह में सक्रिय योगदान देने वाले शीर्ष पांच योगदानकर्ताओं को Northern Alberta Uttarakhand Association द्वारा सम्मानित किया गया। ये वे महानुभाव हैं जिन्होंने गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी शब्दकोश और भाषा संसाधनों को डिजिटल रूप में संरक्षित करने में अमूल्य योगदान दिया है:

1. डॉ. बीना बेंजवाल – गढ़वाली शब्दकोश के लिए
2. ⁠हेम पंत – कुमाऊंनी भाषा सहायता के लिए
3. ⁠नंद लाल भारती – जौनसारी भाषा सहायता के लिए
4. ⁠केशर पंवार – AI थीम सॉन्ग के लिए
5. ⁠मुकेश बहुगुणा – गढ़वाली भाषा शब्द संग्रह के लिए

इन योगदानकर्ताओं की मेहनत और समर्पण ने इस पूरी पहल को सफल बनाया। ये वे अनाम नायक हैं जिनके बिना यह सपना अधूरा रहता।

3.  Bhasha AI थीम सॉन्ग का विमोचन: संस्कृति और तकनीक का संगम **
Bhasha AI का आधिकारिक थीम सॉन्ग, जिसे प्रसिद्ध लोक गायक केशर पंवार जी ने अपने मधुर स्वर से सजाया है, का औपचारिक विमोचन इसी कार्यक्रम में किया गया। यह गीत उत्तराखंडी भाषाओं के संरक्षण, गौरव और पुनर्जागरण का प्रतीक है। जब केशर पंवार जी का स्वर गूंजा, तो उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की आंखों में अपनी माटी के प्रति गर्व और प्रेम झलक उठा।
भविष्य की दिशा: विदेशों में खुलेंगे भाषा शिक्षण केंद्र

Bhasha AI Uttarakhand के प्रतिनिधि और AI आर्किटेक्ट **सचिदानंद सेमवाल ** ने कहा, “यह प्रयास केवल तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि उत्तराखंडी भाषाओं की पहचान, संरक्षण और आने वाली पीढ़ियों तक उनके संस्कार पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है।”
उन्होंने आगे अपने विचार रखते हुए कहा, “गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं को विदेशों में पढ़ाया जाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए यूरोप, अमेरिका और कनाडा में भाषा शिक्षण केंद्र स्थापित किए जाएं जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। आज हमारी देवभूमि उत्तराखंड की एक बड़ी आबादी विदेशों में अपने परिवारों के साथ बसी हुई है। वहां जन्म लेने वाली आने वाली पीढ़ी के लिए अपनी मातृभाषा से जुड़े रहना न केवल आवश्यक है, बल्कि उनकी पहचान का आधार है। यदि हम आज यह कदम नहीं उठाएंगे, तो कल हमारी भाषाएं इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएंगी। हमारी यह पहल इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।”
कोर टीम की मौजूदगी: संकल्प का सामूहिक स्वर

इस कार्यक्रम में Bhasha AI के कोर टीम के सदस्य भी उपस्थित रहे। ** टोरंटो से मुरारीलाल थपलियाल जी और कैलगरी से कैलाश रतूड़ी जी ** ने कार्यक्रम में शिरकत की। चूंकि ये सभी महानुभाव Bhasha AI के कोर टीम मेंबर भी हैं, इसलिए उन्होंने इस पहल को आगे बढ़ाने और इसे और व्यापक बनाने के लिए अपना पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया। उनकी उपस्थिति और प्रतिबद्धता ने पूरे कार्यक्रम को और भी सार्थक बना दिया। सनातन बोर्ड के एडमेंटन के प्रिसिडेंट रवि प्रकाश जी ने कहा की अपनी विरासत को आगे बड़ाने में हमारा पूरा सहयोग रहेगा ।

प्रवासी समुदाय का सांस्कृतिक उत्तरदायित्व

Northern Alberta Uttarakhand Association के अध्यक्ष विवेक डबराल ने अपने उद्बोधन में कहा, “जब हम विदेशों में बसते हैं, तो हमारी सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि हम अपनी संस्कृति, भाषा और संस्कारों को कैसे जीवित रखें। प्रवासी उत्तराखंडी समुदाय को अपनी बोली-भाषा और संस्कृति से जोड़े रखने के इसी उद्देश्य से हम ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं। देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक गूंज विश्वभर में बनी रहे, यही हमारा संकल्प है।”
उन्होंने आगे कहा, “आज की यह लॉन्चिंग केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एक मजबूत और स्थायी माध्यम है।”

कार्यक्रम की मुख्य झलकियां

कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक ढोल की थाप और मंगल गीत के साथ हुआ। जब ढोल की गूंज कार्यक्रम स्थल पर फैली, तो ऐसा लगा मानो देवभूमि की हवाएं एडमॉन्टन में बह रही हों। इसके बाद ओपन-सोर्स डेटासेट और थीम सॉन्ग का विमोचन किया गया। योगदानकर्ताओं को सम्मानित करने के पश्चात, सचिदानंद सेमवाल ने भविष्य की योजनाओं और रोडमैप पर विस्तृत प्रकाश डाला।
यह कार्यक्रम एडमॉन्टन और अल्बर्टा में रह रहे सभी प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए एकजुट होने और अपनी सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाने का एक यादगार और भावुक अवसर रहा।

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