अनिल विज, जिन्होंने अपनी BJP सरकार मुश्किल में फंसाई:धरने के लिए दरी लेकर चलते थे; अपने एरिया में सैनी का दरबार बंद करा चुके
हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने 5 दिन से अपनी ही पार्टी, BJP की सरकार को मुश्किल में डाल रखा है। उनके टारगेट पर एक तरफ CM नायब सैनी हैं तो दूसरी तरफ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली हैं। CM को वह उड़नखटोले से उतरकर मंत्रियों–विधायकों से बात करने की नसीहत दे रहे हैं। सोमवार को उन्होंने सीधे CM के समर्थकों को गद्दार बताते हुए 17 फोटो जारी कर दिए। वहीं बड़ौली को गैंगरेप का आरोपी होने की वजह से इस्तीफे के लिए कह चुके हैं। नायब सैनी और अनिल विज के बीच पहले भी विवाद हो चुका है। तब विज ने मंत्री रहते हुए सैनी के बतौर राज्यमंत्री अंबाला कैंट के रेस्ट हाउस में लगाए जा रहे जनता दरबार को बंद करा दिया था। सैनी के अंबाला जिला भाजपा का अध्यक्ष रहने के दौरान भी विज की उनसे ठनी रही। विज ने कॉलेज लाइफ में पॉलिटिक्स शुरू की थी। बैंक में नौकरी के वक्त भी वह पार्टी में सक्रिय रहे। वह भाजपा के उस वक्त के नेता हैं, जब प्रदेश में पार्टी के 2-4 नेता ही होते थे। विज तब कार में दरी लेकर चलते थे और जिसे बिछाकर कहीं भी धरना शुरू कर देते थे। एक IAS अधिकारी के पक्ष में वह राजभवन के बाहर दरी बिछाकर बैठ गए थे। जब कोरोना वैक्सीन आई तो सब लगाने से डर रहे थे, विज ने सबसे पहले जाकर वैक्सीन लगवाई। विज ने 3 महीने पहले कहा था कि चुनाव में उनकी हत्या की साजिश हुई। प्रशासन ने खूनखराबे की साजिश रची। इसके बावजूद सरकार ने 100 दिन में अंबाला DC नहीं बदला तो विज फिर से नाराज हैं...। सिलसिलेवार ढंग से पढ़िए अनिल विज की पूरी कहानी…. कॉलेज टाइम से RSS से जुड़े, कई अहम पद मिले अनिल विज का जन्म अंबाला कैंट में हुआ। यहीं के SD कॉलेज से पढ़ाई की। इसी दौरान वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए। फिर वे RSS के स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ गए। उनकी पॉलिटिक्स देख 1970 में उन्हें ABVP का महासचिव बनाया गया। इस दौरान RSS से जुड़े विश्व हिंदू परिषद (VHP), भारत विकास परिषद जैसे कई संगठनों में उन्होंने काम किया। बैंक में नौकरी करने लगे, नौकरी छोड़ उपचुनाव लड़ा कॉलेज से B.Sc की पढ़ाई पूरी करने के बाद विज 1974 में SBI में नौकरी करने लगे। हालांकि इस दौरान भी वह BJP से जुड़े रहे। 1990 में जब अंबाला कैंट से विधायक बनीं सुषमा स्वराज को राज्यसभा सांसद बना दिया गया तब विज को उपचुनाव लड़ने को कहा गया। विज बैंक की नौकरी से इस्तीफा देकर 1990 में पहली बार में ही विधानसभा का उपचुनाव जीत गए। 1991 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) का प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया गया। 2 बार निर्दलीय लड़कर भी चुनाव जीते 1996 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विज का टिकट काट दिया। जिसके बाद वह अंबाला कैंट से ही 1996 और 2000 में निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत गए। हालांकि इसके बाद 2005 में हुए चुनाव में विज को हार का सामना करना पड़ा। साल 2007 में अंबाला सीट का परिसीमन हो गया। पहले अंबाला सीट पूरी तरह शहरी थी, जिसमें विज का दबदबा था। मगर, परिसीमन में इसमें कुछ गांव भी जुड़ गए। इससे विज के लिए फाइट टफ हो गई थी। जिस वजह से वह वापस भाजपा में चले गए। लाल कृष्ण आडवाणी ने तब अंबाला आकर विज को पार्टी में शामिल किया था। जिसके बाद से वह चुनाव जीतते चले आ रहे हैं। अंबाला कैंट से 7वीं बार MLA चुने गए अनिल विज ने 2024 में 7वीं बार अंबाला कैंट सीट से चुनाव जीता है। विज सबसे पहले 1990 में उपचुनाव जीते थे। इसके बाद 2 बार 1996 और 2000 में निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते। 2005 में अनिल विज चुनाव हार गए। इसके बाद 2009 में वह फिर भाजपा में आए। तब उन्होंने BJP की टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2014, 2019 और 2024 में वह चुनाव जीते। सैनी के प्रधान-राज्य मंत्री रहते टकराव रहा नायब सैनी जब अंबाला में BJP के अध्यक्ष थे तो भी विज की उनसे ठनी रही। विज को इस बात पर एतराज था कि उनकी सहमति के बगैर उनके क्षेत्र में मीटिंग की जा रही है। इसके अलावा जब सैनी नारायणगढ़ से MLA बनकर 2014 की सरकार में राज्यमंत्री थे तो उन्होंने अंबाला कैंट के रेस्ट हाउस में जनता दरबार लगाना शुरू कर दिया। तब अपने इलाके में उनके जनता दरबार से विज नाराज हो गए। इसके बाद विज ने रेस्ट हाउस में सैनी का जनता दरबार ही बंद करा दिया। चुनाव में बहुमत आया तो CM नहीं बनाया गया अनिल विज छात्र जीवन से ही प्रदेश में भाजपा के लिए काम करते रहे। हालांकि तब क्षेत्रीय दलों के आगे भाजपा कोई चमत्कार नहीं कर पाई। 2014 में भाजपा को प्रदेश विधानसभा की 90 में से 47 सीटें मिलीं। पूर्ण बहुमत आने पर रामबिलास शर्मा के अलावा अनिल विज का नाम CM के लिए सबसे आगे था। तभी अचानक भाजपा ने पहली बार के MLA मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया। 2024 में भी जब मनोहर लाल को लोकसभा चुनाव लड़वाने के लिए BJP ने इस्तीफा दिलवाया तो नायब सैनी को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसको लेकर विज का दर्द 2024 के चुनाव के दौरान छलका था। जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं सीनियॉरिटी के दम पर सीएम पद पर दावा करूंगा। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि कुछ लोग यह भ्रम फैला रहे थे कि विज तो मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहता, इस वजह से उन्होंने यह बात कही थी। वह सीएम पद के लिए कोई लॉबिंग नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री से विज का टकराव पहले भी रहा अभी विज का CM नायब सैनी से टकराव हो रहा है लेकिन वह पहले मनोहर लाल खट्टर के सीएम रहते उनसे भी टकराते रहे हैं। 1. CID की रिपोर्टिंग से नाराज हुए, मनोहर ने अलग कर दिया 2019 में जब BJP दोबारा सत्ता में आई तो अनिल विज को गृह मंत्री बनाया गया। उन्हें पुलिस दी गई लेकिन CID उनके अधीन होते हुए भी CM मनोहर लाल को रिपोर्ट कर रही थी। इससे विज नाराज हो गए। जब बात बिगड़ने लगी तो मनोहर लाल ने CID को गृह विभाग से अलग कर अपने पास रख लिया। 2. IPS के तबादलों की लिस्ट लौटा दी थी गृहमंत्री रहते हुए अनिल विज के पास CMO से IPS के तबादलों की लिस्ट भेजी गई थी। अनिल विज ने यह लिस्ट वापस लौटा दी। विज ने

अनिल विज, जिन्होंने अपनी BJP सरकार मुश्किल में फंसाई: धरने के लिए दरी लेकर चलते थे; अपने एरिया में सैनी का दरबार बंद करा चुके
Kharchaa Pani
लेखक: सुषमा शर्मा, तान्या मिश्रा, टीम नेटानागरी
परिचय
हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में अनिल विज का नाम विशेष महत्व रखता है। उनके अंदाज और बेबाक बयानों के लिए जाने जाने वाले विज ने पिछले कुछ समय से अपनी ही BJP सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। आज हम देखेंगे कि कैसे उनकी धरने की आदतें और सैनी समुदाय के खिलाफ उनकी कार्रवाई चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
धरने के प्रति अनिल विज का जुनून
अनिल विज आम तौर पर धरने के लिए दरी लेकर चलते थे। यह उनकी स्ट्रेटजी थी जिससे वे अपनी बात ज्यादा प्रभावशाली ढंग से रख सके। उन्होंने हमेशा किसानों, मजदूरों और विभिन्न संकटों से जूझ रहे समुदायों के मुद्दों को उठाया है। विज का मानना है कि धरना लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके माध्यम से जनता की समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है।
सैनी समुदाय पर कार्रवाई
हाल के दिनों में, अनिल विज ने अपने क्षेत्र में सैनी समुदाय के दरबार को बंद कराने का निर्णय लिया। यह कदम आम जनता में विवादास्पद रहा है। कुछ लोग इसे समुदाय के खिलाफ भेदभाव मानते हैं, जबकि अन्य इसे उचित ठहराते हैं। विज का कहना है कि उन्होंने यह कदम कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए उठाया है।
बिहार की सरकार पर नकेल कसने के प्रयास
भले ही अनिल विज का प्रभाव हरियाणा में मजबूत हो, लेकिन उनका ये कदम उनकी पार्टी के लिए चुनौती भी बन गया। बिहार की भाजपा सरकार के सामने बहुत सी समस्याएं हैं और विज का यह कदम उन समस्याओं को और बढ़ा रहा है। उनकी मजबूत सहनशीलता के बावजूद, उनके निर्णय कई बार पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।
निष्कर्ष
अनिल विज की कहानी हरियाणा के राजनीतिक मंच पर एक महत्वपूर्ण अध्याय है। बिना किसी संकोच के अपने विचारों को व्यक्त करने और मुद्दों को उठाने की उनकी क्षमता ने उन्हें एक मजबूत नेता बना दिया है। हालांकि, उन्हें अपनी कठोर स्थिति को संतुलित करना होगा ताकि उनकी पार्टी को कोई नुकसान न हो। इस अनिश्चितता में, केवल समय ही बताएगा कि अनिल विज और भाजपा का भविष्य क्या होता है।
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