PM मोदी आज दो दिन की मॉरिशस यात्रा पर:राष्ट्रीय समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे; 10 साल में दूसरी मॉरीशस विजिट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी मंगलवार को हिंद महासागर में मौजूद देश मॉरीशस की दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर रवाना हुए। यहां वो 12 मार्च को मॉरीशस के 57वें राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे। इस विजिट में पीएम मोदी दोनों देशों के आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे। 2015 के बाद भारतीय पीएम की यह दूसरी मॉरीशस यात्रा है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारतीय आर्मी की एक टुकड़ी, नौसेना का एक वॉरशिप और एयरफोर्स की आकाश गंगा स्काई डाइविंग टीम भी मॉरीशस के राष्ट्रीय समारोह में भाग लेगी। मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने कहा- हमारे देश के लिए ऐसे सम्मानित व्यक्तित्व की मेजबानी करना सौभाग्य की बात है, जो अपने बिजी कार्यक्रम के बावजूद हमारे यहां मुख्य अतिथि के तौर पर आने के लिए राजी हुए हैं। पीएम मोदी की यात्रा दोनों देशों के मजबूत रिश्तों का सबूत है। पीएम मोदी की इस यात्रा में ग्लोबल ट्रेड और अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव समेत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात हो सकती है। इसके साथ ही डिफेंस, ट्रेड, कैपेसिटी बिल्डिंग और समुद्री सुरक्षा में सहयोग करने पर चर्चा होगी। हिंद महासागर में आपसी साझेदारी बढ़ाने पर होगी चर्चा विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि भारत और मॉरीशस के बीच साझेदारी का मुख्य उद्देश्य समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना है। दोनों देश हिंद महासागर के रणनीतिक महत्व को पहचानते हैं। पीएम मोदी की यात्रा में भारत और मॉरीशस के बीच व्हाइट-शिपिंग जानकारी साझा करने को लेकर MoU साइन हो सकता है। बता दें कि व्हाइट शिपिंग के अंतर्गत कॉमर्शियल, गैर-सैन्य जहाजों की पहचान और आवाजाही के बारे में सूचना का आदान-प्रदान किया जाता है। इससे समुद्री सुरक्षा मजबूत करने में मदद मिलती है। भारत ने फिर से चागोस द्वीप पर मॉरीशस के दावे का समर्थन किया पीएम मोदी की यात्रा से पहले भारत ने एक बार फिर चागोस द्वीप पर मॉरीशस के दावे का समर्थन किया है। भारतीय विदेश सचिव ने कहा- भारत चागोस द्वीप के लिए मॉरीशस के दावों का समर्थन करता है, क्योंकि यह विउपनिवेशीकरण की लंबी परंपरा का हिस्सा है जो भारत की विदेश नीति का हिस्सा है। चागोस द्वीप को लेकर ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच लगभग 50 सालों से विवाद चल रहा था। भारत दोनों के बीच लंबे समय से इस समझौते की कोशिश कर रहा था। 5 महीने पहले भारत की मदद से दोनों पक्षों में समझौता हो गया। समझौते के मुताबिक 60 द्वीपों से मिलकर बना चागोस द्वीप मॉरीशस को दिया गया। चागोस द्वीप पर डिएगो गार्सिया आइलैंड भी है। यहां पर अमेरिका और ब्रिटेन ने जॉइंट मिलिट्री बेस बना रखा है। समझौते के मुताबिक 99 साल तक के लिए अमेरिका-ब्रिटेन का बेस यहां पर बना रहेगा। भारत के लिए क्यों है खास है मॉरीशस भारत को घेरने और हिंद महासागर में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा से लेकर अफ्रीकी देशों में कई पोर्ट प्रोजेक्ट में पैसा लगाया है। इसके जवाब में भारत सरकार ने 2015 में हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन (सागर प्रोजेक्ट) शुरू किया था। इसके तहत भारत ने मुंबई से 3,729 किमी दूर मॉरिशस के उत्तरी अगालेगा द्वीप पर मिलिट्री बेस के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया है, इसमें रनवे, जेट्टी, विमान के लिए हैंगर शामिल है। यहां से भारत-मॉरिशस मिलकर पश्चिमी हिंद महासागर में चीन के सैन्य जहाजों और पनडुब्बियों पर नजर रख सकते हैं। मॉरीशस में भारतीय मूल के लोग बहुसंख्यक भारत से करीब 190 साल पहले एटलस नाम का जहाज 2 नवंबर 1834 को भारतीय मजदूरों को लेकर मॉरीशस पहुंचा था। इसकी याद में वहां 2 नवंबर अप्रवासी दिवस मनाया जाता है। एटलस से जो मजदूर मॉरीशस पहुंचे थे, उनमें 80 प्रतिशत तक बिहार से थे। इन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था यानी समझौते के आधार पर लाए गए मजदूर। इन्हें लाने का मकसद मॉरीशस को एक कृषि प्रधान देश के रूप में विकसित करना। अंग्रेज 1834 से 1924 के बीच भारत के कई मजदूरों को मॉरीशस ले गए। मॉरीशस जाने वालों में सिर्फ मजदूर नहीं थे। ब्रिटिश कब्जे के बाद मॉरीशस में भारतीय हिंदू और मुस्लिम दोनों व्यापारियों का छोटा लेकिन समृद्ध समुदाय भी था। यहां आने वाले अधिकांश व्यापारी गुजराती थे। 19वीं शताब्दी में कई ऐसे घटनाक्रम हुए, जिससे मजदूरों के वंशज जमीन खरीद सके। उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। मॉरीशस की कुल आबादी में करीब 52% हिंदू हैं। यह देश अफ्रीका में सबसे अधिक प्रतिव्यक्ति आय वाले देशों में से एक है। मॉरीशस पर 1715 में फ्रांस ने कब्जा किया था। तब इसकी अर्थव्यवस्था विकसित हुई, जो चीनी के उत्पादन पर आधारित थी। 1803 से 1815 के दौरान हुए युद्धों में ब्रिटिश इस द्वीप पर कब्जा पाने में कामयाब हुए। भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम की अगुआई में ही मॉरीशस को 1968 में आजादी मिली थी। राष्ट्रमंडल के तहत 1992 में यह गणतंत्र बना।

PM मोदी आज दो दिन की मॉरिशस यात्रा पर: राष्ट्रीय समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे; 10 साल में दूसरी मॉरीशस विजिट
खर्चा पानी
लेखक: निधि शर्मा, टीम नीतानागरी
परिचय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दो दिवसीय मॉरिशस यात्रा पर रवाना हो रहे हैं। यह उनकी पिछले 10 वर्षों में इस द्वीप राष्ट्र की दूसरी यात्रा है। इस बार, वे विशेष राष्ट्रीय समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे, जिसका आयोजन देश के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना का स्मरण करने के लिए किया गया है।
उद्देश्य और महत्व
मॉरिशस और भारत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। पीएम मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच के संबंधों को और मजबूत बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। मौलिक उद्देश्य यह है कि दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया जाए। इस यात्रा से भारतीय समुदाय एवं मॉरिशियन लोगों के बीच भी रिश्तों को और गहरा करने की उम्मीद है।
मुख्य कार्यक्रम
प्रधानमंत्री मोदी इस यात्रा के दौरान कई कार्यक्रमों में भाग लेंगे, जिसमें प्रमुख रूप से राष्ट्रीय समारोह में शामिल होना और स्थानीय प्रशासन के साथ बैठकों का आयोजन करना शामिल है। इसके अलावा, वे विभिन्न सामाजिक विकास परियोजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे, जिससे दोनों देशों के संबंधों को और मजबूती मिलेगी।
मॉरिशस की सांस्कृतिक विशेषताएं
मॉरिशस एक अद्भुत द्वीप है जिसमें मिश्रित संस्कृति, खूबसूरत समुद्र तट, और अद्भुत जैव विविधता देखने को मिलती है। यह स्थान भारतीय प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जो वहां की संस्कृति में गहराई से समाहित हो चुके हैं। पीएम मोदी की यात्रा से क्षेत्रीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की संभावनाएँ हैं।
भविष्य की अपेक्षाएँ
इस यात्रा के बाद भारत और मॉरिशस के बीच सहयोग की नई संभावनाएँ खुल सकती हैं। व्यापारिक सौदों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, और सुरक्षा मुद्दों पर बातचीत से दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी की यह मॉरिशस यात्रा न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को बेहतर बनाएगी, बल्कि भारतीय नागरिकों और मॉरिशियन समुदाय के बीच पैठ भी मजबूत करेगी। इस प्रकार की यात्राएँ, जो न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक भी होती हैं, समय के साथ हमारे वैश्विक समुदाय को और समृद्ध करती हैं।
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