होलिका दहन से जुड़ी परंपराएं:फाल्गुन पूर्णिमा पर पूजा-पाठ के साथ ही बालगोपाल, श्रीनाथ जी के लिए सजाएं हिंडोला, भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ें-सुनें
फाल्गुन पूर्णिमा यानी होलिका दहन गुरुवार,13 मार्च को है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बोल गोपाल, श्रीनाथ, भगवान विष्णु-महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक करना चाहिए। पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़नी-सुननी चाहिए। फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है। शिवलिंग का रुद्राभिषेक भी किया जाता है। इस दिन नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। फाल्गुन पूर्णिमा पर हिंडोला दर्शन की परंपरा उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शास्त्रों में फाल्गुन पूर्णिमा पर हिंडोला दर्शन का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से हिंडोला दर्शन करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं भगवान पूरी करते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में लिखा है कि- फाल्गुनस्य तु राकायां मण्डयेद्दोलमण्डपम्। पश्चातसिंहासनं पुष्पैर्नूतनैर्वस्त्रचित्रकै:।। अर्थ - फाल्गुन पूर्णिमा की रात, सुंदर फूलों से सजे झूले में भगवान को विराजित किया जाता है और विधिवत पूजा-अर्चना के साथ उत्सव मनाया जाता है। ऐसे बना सकते हैं हिंडोला फाल्गुन पूर्णिमा पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और धूप-ध्यान करने की परंपरा भी है। माना जाता है कि इस तिथि पर किए गए इन कर्मों से पितर देवता अत्यंत प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पौराणिक कथा है कि नारद जी के कहने पर युधिष्ठिर ने फाल्गुन पूर्णिमा पर कई बंदियों को अभयदान दिया था। बंदियों को मुक्त करने के बाद होलिका दहन का आयोजन किया गया और कंडे जलाकर होली मनाई गई। होलिका दहन की पवित्र अग्नि में नकारात्मक ऊर्जा का नाश कर, हिंडोला दर्शन से जीवन में आनंद और समृद्धि आती है।

होलिका दहन से जुड़ी परंपराएं: फाल्गुन पूर्णिमा पर पूजा-पाठ के साथ ही बालगोपाल, श्रीनाथ जी के लिए सजाएं हिंडोला, भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ें-सुनें
लेखिका: सुषमा शर्मा, टीम नेटानागरी
Kharchaa Pani
परिचय
होलिका दहन का त्योहार भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे विशेषकर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि इसमें कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं भी शामिल हैं। इस लेख में हम होलिका दहन से जुड़ी इन परंपराओं और उनसे जुड़ी कहानियों के बारे में जानेंगे।
होलिका दहन की परंपरा
होलिका दहन का पर्व राक्षसी होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ा हुआ है। इस दिन होलिका के प्रतीक के रूप में अग्नि में लकड़ियों और उपलों का ढेर लगाकर उसे जलाया जाता है। इस अग्नि में सभी बुराइयों का अंत करने का संकल्प लिया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि इसमें कई पारिवारिक रिवाज भी समाहित हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा पर पूजा-पाठ
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ते और सुनते हैं। इसके साथ ही, घरों में सजावट भी की जाती है। बालगोपाल और श्रीनाथ जी के लिए विशेष हिंडोला सजाए जाते हैं। यह सजावट केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि परिवार के प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है।
बालगोपाल और श्रीनाथ जी की सजावट
होलिका दहन के साथ-साथ बालगोपाल और श्रीनाथ जी की सजावट करना एक महत्त्वपूर्ण परंपरा है। भक्त माता-पिता अपने छोटे-बड़े लड़कों के लिए खास हिंडोला सजाते हैं। इस हिंडोले में फूलों, रंग-बिरंगे कपड़ों और आरती की थालियां सजाई जाती हैं। यह हिंडोला नारियल, मिठाई और फल-फूलों के साथ समर्पित किया जाता है।
भगवान सत्यनारायण की कथा
भगवान सत्यनारायण की कथा सुनना इस दिन का एक अनिवार्य हिस्सा है। इस कथा में भगवान की महिमा का वर्णन किया गया है और यह सिखाया गया है कि सत्य की राह पर चलना सदैव आवश्यक है। कथा सुनने के बाद श्रद्धालु भोग अर्पित करते हैं और प्रसाद बांटा जाता है।
निष्कर्ष
होलिका दहन का पर्व मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में मूल्य और नैतिक संजीवनी का संचार करता है। इस दिन की गई पूजा-पाठ और परंपराएं हमें बुराई के खिलाफ खड़े होने का साहस देती हैं। आशा है कि आप इस फाल्गुन पूर्णिमा को अपने परिवार के साथ मिलकर ढेर सारी खुशियाँ मनाएं। सही समय पर इन परंपराओं का पालन करते रहें और इस पवित्र अवसर का आनंद लें।
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