रुपया रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर:डॉलर के मुकाबले 38 पैसे गिरकर 87.33 पर आया, विदेशी वस्तुएं महंगी होंगी
रुपया आज यानी 10 मार्च को अपने रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर आ गया है। इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 38 पैसे की गिरावट है और यह 87.33 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया है। ये मार्च महीने में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 17 पैसे मजबूत होकर 86.95 पर बंद हुआ था। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रुपए में इस गिरावट की वजह हाल ही में भारतीय शेयर मार्केट में विदेशी निवेशकों के जरिए की जा रही बिकवाली है। इसके अलावा जिओ पॉलिटिकल टेंशन्स कारण भी रुपए पर नेगेटिव असर पड़ा है। इंपोर्ट करना होगा महंगा रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 86.31 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी। करेंसी की कीमत कैसे तय होती है? डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।

रुपया रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर: डॉलर के मुकाबले 38 पैसे गिरकर 87.33 पर आया, विदेशी वस्तुएं महंगी होंगी
लेखिका: सुषमा वर्मा, टीम नेतानागरी
Kharchaa Pani
रुपये की गिरावट का अर्थ
हाल ही में, भारतीय रुपया एक नए निम्न स्तर पर पहुंच गया है। डॉलर के मुकाबले 38 पैसे गिरकर यह 87.33 की दर पर आ गया है। इस गिरावट का मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ, निर्यात-आयात का असंतुलन और विदेशी निवेश में कमी है। ऐसे में भारतीय बाजार में विदेशी वस्तुओं की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
वैश्विक आर्थिक प्रभाव
जब रुपया गिरता है, तो यह केवल भारतीय उपभोक्ता को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ता है। डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी से आयात महंगा होगा, जिससे विदेशों से आने वाली वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी। इससे घरेलू बाजार में महंगाई का खतरा भी बढ़ जाता है, विशेषकर उस समय जब वैश्विक महंगाई के प्रतिकूल संकेत पहले से ही मौजूद हैं।
उपभोक्ताओं पर प्रभाव
जब रुपये की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ताओं को इसका सीधा असर महसूस होता है। विशेषकर, यदि आप इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल या अन्य विदेशी वस्तुओं की खरीदारी करने जा रहे हैं, तो आपको अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसके अलावा, खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक सामान भी महंगे हो सकते हैं। इस स्थिति में, उपभोक्ताओं को अपने बजट को पुनः देखना होगा और खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है।
सरकार की भूमिका
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए यह एक गंभीर चुनौती है। उन्हें ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता होगी जिससे रुपये की गिरावट को रोका जा सके और उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत मिले। इसके लिए रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार और नीति दरों में बदलाव के जरिए स्थिरता लाने पर विचार कर सकता है।
निष्कर्ष
रुपये की गिरावट एक कठिन समय का संकेत है, जो न केवल आर्थिक स्थिति में सुधार की आवश्यकता को दर्शाती है बल्कि उपभोक्ताओं के लिए देखने वाले खतरों के बारे में भी चेतावनी देती है। अब समय है कि हम अपने वित्तीय व्यवहार को स्मार्ट बनाएं और इससे जुड़ी चुनौतियों का समाना करें।
जारी रखें और विस्तृत जानकारी के लिए हमारे अन्य समाचार लेख पढ़ें जैसे कि हमारे साइट पर। अधिक अपडेट के लिए, kharchaapani.com पर जाएं।
Keywords
rupee fall, dollar exchange rate, foreign goods prices, inflation impact, economic conditions, Indian economy, consumer purchasing power, RBI interventions, global market trendsWhat's Your Reaction?






