इंपैक्ट फीचर:ग्रामीण समुदायों को सशक्त बना रही हैं महिला उद्यमी, देश के आर्थिक बदलाव की सच्ची कहानियां
भारत में महिला उद्यमियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जनवरी 2024 तक, देश में महिलाओं के नेतृत्व वाले छोटे और मझोले उद्योग (एमएसएमई) की संख्या 47 लाख से ज्यादा थी। यह मार्च 2023 से 68.17% की वृद्धि है। वृद्धि का ये आंकड़ा सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा मायने रखता है; यह सामाजिक मानदंडों और आर्थिक सशक्तिकरण में गहन बदलाव का प्रमाण है। देश की महिला उद्यमी न केवल खुद अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं बल्कि वे दूसरों को रोजगार भी दे रही हैं। 2030 तक इन महिला उद्यमी द्वारा 1.5 से 1.7 करोड़ लोगों को नौकरियां देने की उम्मीद है।देश की जीडीपी वृद्धि दर संभावित रूप से 8% तक करने में इन महिला उद्यमियों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। महिला उद्यमिता के क्षेत्र में आ रही इस क्रांति की सूत्रधार रेनहोम्ज की फाउंडर, रेनुका मिश्रा और नेचुरली पहाड़ी की फाउंडर, प्रीति भंडारी जैसी आंत्रप्रेन्योर महिलाएं हैं। ये महिलाएं अपने छोटे और मझोले उद्योग संचालित करती हैं जो भारत के उद्योग जगत में एक नया बदलाव ला रहे हैं। ये उद्योग और महिला उद्यमी अपने अभिनव दृष्टिकोण के जरिये ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने का काम भी कर रहे हैं। उनकी कहानियां इस बात का उदाहरण हैं कि जब कोई महिला किसी उद्यम की शुरूआत करती है, तो वह सिर्फ अपना करियर नहीं बनाती; वह प्रभावों की ऐसी श्रंखला तैयार करती है जिससे पूरे समुदाय को आगे बढ़ने में मदद मिलती है। रेणुका मिश्रा: महिला कारीगरों के भविष्य निर्माण में जुटीं रेणुका मिश्रा की उद्यमी बनने की कहानी थोड़ी अनूठी है। उनका एक डेंटिस्ट से आंत्रप्रेन्योर बनने का सफर दिल्ली से शुरू हुआ। अपने नई दिल्ली स्थित क्लिनिक में मरीजों का इलाज करते-करते उनके भीतर भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रति अपने प्यार से जुड़ी एक गहरी प्रेरणा जागृत हुई। देश के पारंपरिक शिल्प कौशल के संरक्षण और उन्हें दुनिया के सामने लाने के जुनून के चलते उन्होंने 2020 के अंत में रेनहोमज़ की स्थापना की। रेणुका मिश्रा की ये कंपनी पूरे भारत के कारीगरों के साथ काम करती है। साथ मिलकर, वे अनूठे, हस्तनिर्मित उत्पाद बनाते हैं जो देश की समृद्ध कलात्मक विरासत को प्रदर्शित करते हैं। रेणुका मिश्रा कहती हैं, "इनमें से कई कारीगरों के पास अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा और मार्केट एक्सपोजर नहीं है। रेनहोम्ज में, हम इस अंतर को पाटने की कोशिश में जुटे हैं। हम उन्हें अपना कौशल दिखाने और विशाल जनसंख्या तक पहुंचने के लिए प्लेटफॉर्म प्रदान कर रहे हैं।" कला और कारीगरों के प्रति मिश्रा की ये प्रतिबद्धता महज व्यापारिक लेनदेन नहीं है। वे सांस्कृतिक इतिहास में गहराई से उतरती हैं और ये सुनिश्चित करती हैं कि रेनहोम्ज का हर एक उत्पाद प्रामाणिक रूप से भारत की विविध कारीगर परंपराओं को प्रदर्शित करता हो। पिछले पांच वर्षों में, रेनहोम्ज ने 150 से अधिक महिला कारीगरों को लाभान्वित किया है। ये कुशल कारीगर अब अपनी उपलब्धता और बनाए गए उत्पादों के आधार पर प्रति माह ₹8,000 से ₹15,000 तक कमाती हैं। इस स्थिर आय से न केवल उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है बल्कि उनके पारंपरिक कौशल को भी आधुनिक बाजार में पहचान और मान्यता मिल रही है। प्रीति भंडारी: कृषि के क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण उत्तराखंड में, प्रीति भंडारी अपने ब्रांड नेचुरली पहाड़ी के साथ एक अलग तरह की क्रांति की अगुआई कर रही हैं। उनका यह ब्रांड सितंबर 2022 में स्थापित किया गया था। डेवलपमेंट सेक्टर में एक डिजाइन कंसल्टेंट के रूप में अपने अनुभव और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के साथ उनके काम ने उन्हें एक आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए प्रेरित किया। प्रीति भंडारी का विजन केवल एक प्रोडक्ट लाइन तैयार करना नहीं बल्कि एक ऐसा आंदोलन खड़ा करना है जो स्थानीय किसानों को सशक्त बनाता है और सस्टेनेबल कृषि को बढ़ावा देता है। भंडारी का कहना है, ''नेचुरली पहाड़ी महज एक ब्रांड नहीं है, यह हजारों किसानों के प्रति मेरी प्रतिबद्धता है।" बाजरा जैसी कम उपयोग वाली फसलों पर फोकस करके और स्थानीय किसानों से सीधे सोर्सिंग पर जोर देकर, भंडारी यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके उत्पाद न केवल पारंपरिक खेती के तरीकों को संरक्षित करते हैं बल्कि इन महिलाओं को एक स्थिर और बढ़ी हुई आय भी प्रदान करते हैं। झंगोरे की खीर और बार्नयार्ड मिलेट डोसा मिक्स जैसे उत्पादों में स्थानीय व्यंजनों का उपयोग करके, वह फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाओं में महिलाओं को सशक्त बना रही हैं। इसके अलावा, उनकी यह पहल बर्बादी को कम करने और किसानों का मुनाफा बढ़ाने में मदद करती है। नेचुरली पहाड़ी ब्रांड के साथ 150 से ज्यादा महिला कारीगर और किसान सीधे जुड़े हुए हैं। इसका वित्तीय प्रभाव उल्लेखनीय है: सुगंधित पौधों के साथ काम करने वाली महिलाएं साल में ₹80,000 तक कमा सकती हैं, जबकि मिलेट और अन्य उपज की खेती में शामिल महिलाएं सालाना करीब ₹50,000 कमाती हैं। ये आंकड़े ग्रामीण घरेलू आमदनी में पर्याप्त वृद्धि दर्शाते हैं, जिससे महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति मिलती है। पारंपरिक शिल्प कौशल और आधुनिक बिजनेस प्रैक्टिस के बीच अंतर को पाटकर, ये महिला उद्यमी न केवल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण कर रही हैं बल्कि वे स्थायी आजीविका प्रदान करके ग्रामीण समुदायों को मजबूत बनाने का काम कर रही हैं। ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के दूरगामी प्रभाव हैं। इसकी वजह से पूरे परिवार के स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होता है और सामुदायिक निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है वहीं ग्रामीण इलाकों में लिंग के आधार पर भेदभाव में कमी आती है। वॉलमार्ट वृद्धि के जरिए विकास की गति में आ रही तेजी इन दूरदर्शी महिला उद्यमियों की यात्रा में चुनौतियों की कमी नहीं रही। रेणुका मिश्रा को अपने शुरुआती दिनों में प्रोडक्ट की टूट-फूट और उनकी कीमत तय करने में कई समस

इंपैक्ट फीचर: ग्रामीण समुदायों को सशक्त बना रही हैं महिला उद्यमी, देश के आर्थिक बदलाव की सच्ची कहानियां
Kharchaa Pani
लेखिका: सुमन सिंह, भावना रावत
टीम: नेशनलागरी
परिचय
भारत में महिला उद्यमी तेजी से अपने क्षेत्र में सशक्त होते जा रही हैं। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्रामीण समुदायों के आर्थिक विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इस लेख में हम इस पर चर्चा करेंगे कि कैसे महिलाएँ अपने समुदायों में सकारात्मक बदलाव लाने में लगी हैं और यह देश के आर्थिक बदलाव की सच्ची कहानियाँ हैं।
महिला उद्यमिता का महत्व
महिलाओं की उद्यमिता केवल आर्थिक योगदान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव का माध्यम भी है। जब महिलाएँ काम करती हैं, तो उनके परिवार और समुदाय को भी लाभ होता है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां विकास की रफ्तार धीमी है, वहाँ महिला उद्यमियों की भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
सशक्तिकरण की प्रेरक कहानियाँ
राजस्थान की बंसुधा देवी एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने अपने छोटे से गांव में हाथ से बने कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया। उनकी इस पहल ने न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार दी, बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया। अब उनके साथ मिलकर गांव की और भी महिलाएँ इस व्यवसाय में शामिल हो गई हैं।
दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश की राधिका ने एक फसल उत्पादक समूह बनाया जो मिलकर काम करता है। उनके समूह ने सरकार की योजनाओं से लाभ उठाते हुए उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करने में सफलता पाई है। यह न केवल उनके परिवार के लिए अच्छा है बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक मॉडल बन चुका है।
तकनीकी का योगदान
हाल के वर्षों में, तकनीकी अवसंरचना में सुधार ने महिला उद्यमियों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं। कई महिलाएँ आज ऑनलाइन प्लेटफार्मों का उपयोग कर अपने उत्पादों को बेच रही हैं, जिससे उनकी पहुंच देश-विदेश में बढ़ रही है। डिजिटल मार्केटिंग, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स के माध्यम से महिलाएँ अपने उत्पादों को वैश्विक बाजार में पेश कर रही हैं।
वित्तीय सहायता और सरकारी योजनाएँ
सरकार द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता और योजनाएँ भी महिला उद्यमियों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। विभिन्न योजनाएं जैसे मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया ने महिलाओं को अपने व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ती ऋण उपलब्ध कराए हैं। इससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिली है और वे अपने सपनों को पूरा कर रही हैं।
निष्कर्ष
महिला उद्यमिता ग्रामीण समुदायों में न केवल आर्थिक बदलाव लाने का माध्यम है बल्कि यह सामाजिक स्थिरता का भी प्रतीक है। यह देखा गया है कि जब महिलाएँ उद्यमिता में भागीदार बनती हैं, तो परिवारों और समाज में सकारात्मक बदलाव आते हैं। हमें ऐसे प्रयासों का समर्थन करना चाहिए ताकि महिलाएँ आगे बढ़ सकें और अपने समुदायों को सशक्त बना सकें।
आने वाले दिनों में, महिला उद्यमियों की इस लहर को और बढ़ाना आवश्यक है। Kharchaa Pani में हम ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार अपडेट देते रहेंगे। अधिक अपडेट के लिए, kharchaapani.com पर जाएं.
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