केंद्र बोला-दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना संसद का अधिकार:सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश किया; याचिका में ऐसे सांसद-विधायकों पर बैन लगाने की मांग
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दोषी विधायकों-सांसदों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका का विरोध किया है। केंद्र ने जवाब दाखिल करते हुए कहा- इस तरह की अयोग्यता लागू करना पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र में है। केंद्र ने कहा, 'याचिका की मांग कानून को दोबारा लिखने या संसद को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के जैसी है। ये पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के विपरीत है।' एड. अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका में मांग की है कि देश में सांसदों-विधायकों के खिलाफ क्रिमिनल केसों को जल्द खत्म करने के अलावा दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। केंद्र ने कहा... आजीवन अयोग्यता वह अधिकतम पैनल्टी है जो प्रावधानों के तहत लगाई जा सकती है। ऐसा अधिकार संसद के पास है। यह कहना अलग है कि एक शक्ति मौजूद है और यह कहना दूसरी बात है कि इसका हर मामले में अनिवार्य रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का जवाब... विवादित कानून संवैधानिक रूप से सही केंद्र ने कहा कि विवादित कानून संवैधानिक रूप से सही है। और संसद की शक्तियों के भीतर होने के अलावा अतिरिक्त प्रतिनिधिमंडल के दोष से ग्रस्त नहीं हैं। कोई भी पैनल्टी लगाते समय संसद रेश्यो और लॉजिक के सिद्धांतों पर विचार करती है। उदाहरण के लिए- भारतीय न्याय संहिता 2023 या दंड कानून की संपूर्णता कुछ सीमाओं तक जेल या जुर्माने का प्रावधान करती है। और इसके पीछे तर्क यह है कि दंडात्मक उपाय अपराध की गंभीरता के साथ सह-संबंधित होंगे। याचिका अयोग्यता के आधार-प्रभाव में अंतर करने विफल केंद्र ने कहा कि ऐसे कई दंडात्मक कानून हैं जो अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करते हैं। जो ज्यादातर मामलों में टाइम-स्पेशल होते हैं। याचिका अयोग्यता के आधार और अयोग्यता के प्रभावों के बीच महत्वपूर्ण अंतर करने में विफल रही है। यह सच है कि अयोग्यता का आधार किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि है। और यह आधार तब तक अपरिवर्तित रहता है जब तक दोषसिद्धि कायम रहती है। ऐसी दोषसिद्धि का प्रभाव एक निश्चित अवधि तक रहता है। केंद्र ने कहा... याचिकाकर्ता का संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 पर भरोसा पूरी तरह से गलत था। संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 संसद के किसी भी सदन, विधान सभा या विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता से संबंधित हैं। अनुच्छेद 102 और 191 में कानून बनाने की शक्ति अनुच्छेद 102 और 191 के खंड (ई) संसद को अयोग्यता को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं। और इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 1951 का अधिनियम बनाया गया था। संविधान ने संसद को अयोग्यता को नियंत्रित करने वाले ऐसे अन्य कानून बनाने का क्षेत्र खुला छोड़ दिया है, जैसा वह उचित समझे। संसद के पास अयोग्यता के आधार और अयोग्यता की अवधि दोनों निर्धारित करने की शक्ति है। अनुच्छेदों में अयोग्यता के आधारों में लाभ का पद धारण करना, मानसिक रूप से अस्वस्थ होना, दिवालियापन और भारत का नागरिक न होना शामिल है। ये स्थायी अयोग्यताएं नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। ..................................... सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी जरूर पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- गवाही की कोई उम्र सीमा नहीं होती: 7 साल की बच्ची ने बयान दिया, मां के हत्यारे पिता को उम्रकैद की सजा दिलाई सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गवाह की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। अगर कोई बच्चा गवाह देने में सक्षम है तो उसकी गवाही उतनी ही मान्य होगी, जितनी किसी और गवाह की। दरअसल, कोर्ट ने 7 साल की बच्ची के गवाह के आधार पर हत्यारे पति को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बच्ची ने अपने पिता को मां की हत्या करते देखा था। पूरी खबर पढ़ें...

केंद्र बोला-दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना संसद का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश किया; याचिका में ऐसे सांसद-विधायकों पर बैन लगाने की मांग
Kharchaa Pani
यह लेख टीम नेटानागरी द्वारा लिखा गया है।
परिचय
हाल ही में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश करते हुए बताया है कि संसद को दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का पूर्ण अधिकार है। यह मामला उस याचिका के संदर्भ में सामने आया है जिसमें सांसदों और विधायकों के लिए बैन लगाने की मांग की गई थी। न्यायालय में पेश किए गए इस उत्तर ने एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है, जिसमें राजनेताओं की जिम्मेदारी और सांसदों के आचरण पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार की दलीलें
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने जवाब में बताया कि संविधान के अनुसार, संसद को इस अधिकार का प्रयोग करने का पूरा हक है। सरकार का यह भी कहना है कि यदि कोई राजनेता दंडित होता है, तो उसे संसद की सदस्यता से वंचित किया जा सकता है। यह जवाब उन तथ्यों पर आधारित है जहां विधायिका को अपने मौलिक अधिकारों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
याचिका की पृष्ठभूमि
यह याचिका उस समय दायर की गई जब कई राजनेताओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के मामले चल रहे थे। इससे यह सवाल उठता है कि क्या ऐसे व्यक्ति जो गंभीर अपराधों में संलिप्त हैं, उन्हें संसद में रहने का अधिकार होना चाहिए? याचिकाकर्ता का मानना है कि इन राजनेताओं को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और इससे लोकतंत्र को खतरा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले पर विचार कर रहा है और यह देख रहा है कि क्या संसद को यह अधिकार दिया जाना चाहिए या नहीं। अदालत के इस निर्णय का असर आने वाले समय में राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। कोर्ट द्वारा इस मुद्दे पर उचित निर्देश दिए जाने की अपेक्षा है, जिससे राजनीति में शुद्धता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिले।
क्या होगा आगे?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है। यदि अदालत ने संसद के अधिकार को मान्यता दी, तो यह एक नया आदर्श स्थापित कर सकता है जिससे अपेक्षित जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी। इसके साथ ही, इससे अन्य राजनेताओं को भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होगा।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार का यह दावा कि संसद को दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का अधिकार है, एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस पर सहमति बताता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। यह जरूरी है कि जो लोग जनता के प्रतिनिधि हैं, उन्हें अपने कृत्यों के प्रति जवाबदेह ठहराया जाए। इस प्रकार के फैसले से हम एक मजबूत और जिम्मेदार लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
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