रेवाड़ी में महिला कंडक्टर से कॉमनवेल्थ तक सफर:दिव्यांगता को मात दे चुकी 2 बच्चों की मां शर्मिला, अब पैरालंपिक 2028 लक्ष्य
हरियाणा के रेवाड़ी की शर्मिला धनखड़ ने रोडवेज की पहली महिला कंडक्टर से 2022 पैरा कॉमनवेल्थ खेलों तक का सफर तय किया है। एक पैर से 40 प्रतिशत दिव्यांग होते हुए भी हिम्मत नहीं हारी और 2022 पैरा कॉमनवेल्थ गेम में शॉट पुट में चौथा हासिल किया है। अब शर्मिला लॉस एंजिल्स 2028 पैरालिंपिक की तैयारी में जुटी हुई हैं। रेवाड़ी के सनसिटी की रहने वाली शर्मिला को साल 2018 हड़ताल के दौरान हरियाणा रोडवेज में कंडक्टर की नौकरी मिली थी। लेकिन हड़ताल खत्म हाेने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। 10 दिन तक लगातार बधाई का दौर चला लेकिन अचानक से नौकरी चली गई। जिसके बाद शर्मिला ने ठाना कि अब वह कुछ ऐसा करेगी, जो कोई उससे छीन न सके। शर्मिला के पति अजित ने कहा कि वे क्यों न खेल की तैयारी करे, जिससे उसे आसानी से नौकरी मिल जाए। उसके बाद उसने खेल शुरू किया। अब सरकारी नौकरी के ऑफर मिल रहे हैं, लेकिन उसका सपना बदल चुका है। पैरा कॉमनवेल्थ 2022 में चौथा स्थान इंग्लैंड के बर्मिंघम में आयोजित पैरा 2022 कॉमनवेल्थ खेलों में शर्मिला धनखड़ ने शॉट पुट में हिस्सा लिया तो वहां पर उन्हें चौथा स्थान मिला था। वहीं अब वे सितंबर 2025 के दौरान दिल्ली में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए तैयारी कर रही हैं। जिसमें उन्हें गोल्ड की पूरी उम्मीद है। जिससे उन्हें पैरालंपिक का कोटा भी मिलेगा। उन्होंने जो सपना देखा है, उसकी राह भी खुलेगी। चार से पांच घंटे बहा रही जिम में पसीना सितंबर 2025 के दौरान दिल्ली में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप और लॉस एंजिल्स 2028 पैरालिंपिक की तैयारी के लिए शर्मिला धनखड़ जिम में भी हर रोज 4 से 5 घंटे पसीना बहा रही हैं। शर्मिला हर रोज इतने ही समय थ्रो की प्रैक्टिस कर रही हैं। कोच विरेंद्र धनखड़ के साथ-साथ उन्हें पति अजित का भी इसमें पूरा सहयोग मिल रहा है। प्रैक्टिस पर पूरा फोकस करने के लिए वे सोनीपत शिफ्ट हो गई हैं। बेटियां भी स्टेट लेवल खिलाड़ी शर्मिला की दोनों बेटियां भी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए खेल में ही कॅरियर बनाना चाह रही हैं। बड़ी बेटी अनुज (16) जेवलिन थ्रो और छोटी बेटी लक्ष्मी (12) लॉन्ग जंप खेल का अभ्यास कर रही हैं। दोनों ही स्टेट लेवल की खिलाड़ी हैं।

रेवाड़ी में महिला कंडक्टर से कॉमनवेल्थ तक सफर: दिव्यांगता को मात दे चुकी 2 बच्चों की मां शर्मिला, अब पैरालंपिक 2028 लक्ष्य
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कीर्तिस्वरूपा में ब्रॉन्ज मेडल जीतने के सपने के साथ, शर्मिला एक प्रेरणा बनकर उभरी हैं। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें संघर्ष, आत्मविश्वास और मेहनत की गहराई है।
शुरुआत की कठिनाईयाँ
रेवाड़ी की रहने वाली शर्मिला, जो एक महिला कंडक्टर हैं, ने अपनी जिंदगी की कठिनाईयों का सामना किया है। उनके दो बच्चे हैं और समाज की कई अड़चनों के बावजूद, उन्होंने अपने लक्ष्यों को हासिल करने की ठानी। उनका जीवन दिव्यांगता की चुनौतियों को पार करते हुए कामयाबी की ओर अग्रसर हो रहा है।
कॉमनवेल्थ खेलों की यात्रा
शर्मिला ने हाल ही में कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लिया और अपने अदम्य साहस और संघर्ष के बल पर ब्रॉन्ज मेडल जीता। लेकिन यह सफर केवल एक मेडल तक सीमित नहीं बल्कि यह एक दस्तावेज है कि कैसे किसी भी महिला को अपनी ख्वाहिशों से दूर नहीं होना चाहिए। उन्होंने साबित किया है कि मजबूत इच्छाशक्ति से कठिनाइयों पर काबू पाया जा सकता है।
पालंपिक 2028 की ओर
अब शर्मिला के सामने अगला लक्ष्य है पैरालंपिक 2028। वह न केवल अपने बच्चों के लिए एक उदाहण बनना चाहती हैं, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए भी जिनका जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है। उन्होंने कहा, "मैं अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं और मैं अपने बच्चों के लिए एक उदाहरण बनना चाहती हूं।"
समाज में बदलाव की जरूरत
शर्मिला की कहानी केवल एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते हुए सम्मान और उनकी क्षमता को उजागर करती है। हमें चाहिए कि हम उनके संघर्षों को समझें और उन्हें सभी क्षेत्रों में समान अवसर दें।
निष्कर्ष
शर्मिला की कहानी यह दर्शाती है कि किसी भी परिस्थिति में सकारात्मकता बनाए रखने और लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने से हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। उनकी उपलब्धियाँ हमें यह सिखाती हैं कि कठिनाइयों में हमें संकल्पशक्ति नहीं खोनी चाहिए। यह उनकी प्रेरणादायक यात्रा कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण है।
अपने सपनों को साकार करने के लिए, मेहनत करते रहिए और सोचिए, क्या आप भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हैं?
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