एसजीआरआरयू में गढ़वाली संस्कृति को नया आयाम: अपणि भाषा, अपणि शान

अपणि भाषा, अपणि शान एसजीआरआरयू में गढ़वाली संस्कृति को मिला नया आयाम   देहरादून। श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के अंतर्गत गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति…

Sep 2, 2025 - 18:34
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एसजीआरआरयू में गढ़वाली संस्कृति को नया आयाम: अपणि भाषा, अपणि शान
अपणि भाषा, अपणि शान एसजीआरआरयू में गढ़वाली संस्कृति को मिला नया आयाम   देहरादून। श्री गुरु राम राय

एसजीआरआरयू में गढ़वाली संस्कृति को नया आयाम: अपणि भाषा, अपणि शान

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कम शब्दों में कहें तो, गढ़वाली भाषा और संस्कृति को लेकर श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय (एसजीआरआरयू) ने एक नई पहल की है। यह पहल न सिर्फ गढ़वाली संस्कृति के संरक्षण में सहायक होगी, बल्कि इसे एक नया आयाम भी देगी।

गढ़वाली संस्कृति की महत्ता

गढ़वाली संस्कृति, जो उत्तराखंड के इस हिस्से की पहचान है, सदियों से यहां के लोगों का जीने का तरीका रही है। गढ़वाली भाषा न केवल एक संचार का माध्यम है, बल्कि यह यहाँ की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का भी एक अभिन्न हिस्सा है। आज के विश्व में जहां हर चीज तेजी से बदल रही है, वहीं अपनी मातृभाषा और स्थानीय संस्कृति को बचाने की जरूरत भी महसूस की जा रही है।

विश्वविद्यालय की नई पहल

श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय ने मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के तहत गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति के अध्ययन को एक नई दिशा देने का निर्णय लिया है। इस पहल के माध्यम से छात्रों को गढ़वाली भाषा सीखने के साथ-साथ गढ़वाली संस्कृति और परंपराओं के बारे में गहन जानकारी प्राप्त होगी।

सांस्कृतिक कार्यक्रम

विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में गढ़वाली संस्कृति की विशेषता को शामिल किया जाएगा। इसके तहत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें गढ़वाली गीत, नृत्य, और अन्य पारंपरिक कला को समर्पित कार्यक्रम शामिल होंगे। यह छात्रों के लिए न केवल एक मनोरंजक अनुभव होगा, बल्कि उनकी संस्कृति से जुड़ने का भी एक माध्यम बनेगा।

स्थानीय समुदाय का समर्थन

इस पहल के सफल संचालन के लिए स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। विश्वविद्यालय ने स्थानीय विद्वानों और कलाकारों को भी इस पहल में शामिल करने की योजना बनाई है, ताकि छात्रों को गढ़वाली संस्कृति की विविधता और गहराई को समझने का अवसर मिल सके।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

गढ़वाली संस्कृति को एक नया आयाम देने की इस पहल से न केवल छात्रों में स्थानीय संस्कृति का ज्ञान बढ़ेगा, बल्कि एक सकारात्मक सामाजिक बदलाव भी देखने को मिलेगा। यह कदम निश्चित रूप से उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में सहायक होगा।

इस नई पहल से उम्मीद की जा रही है कि न केवल गढ़वाली भाषा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे अन्य स्थानीय भाषाओं और संस्कृतियों को भी संरक्षण का बल मिलेगा।

ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर गढ़वाली संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए, और अन्य समाचारों के लिए, कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएं: Kharchaa Pani

आपकी प्रतिक्रियाएँ और सुझाव हमें प्रेरित करते हैं।

Team Kharchaa Pani - सुमन चौधरी

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