NCERT ने किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर हिंदी नाम रखे:केरल शिक्षा मंत्री बोले- भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करेगा, वापस लेने की मांग की
देश भर में न्यू एजुकेशन पाॅलिसी (NEP-2020) पर छिड़े भाषा विवाद के बीच राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कई किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर हिंदी नाम रख दिए है। NCERT के इस कदम के बाद नई बहस छिड़ गई है। भाषा विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिश है। तमिलनाडु जैसे राज्य इसका पहले ही विरोध कर चुके हैं। केरल के सामान्य शिक्षा मंत्री वी शिवकुट्टी ने NCERT के इंग्लिश मीडियम की किताबों के लिए हिंदी नाम रखने के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा- यह गंभीर तर्कहीनता है और भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करने वाला कदम है। मंत्री ने कहा - ‘केरल, अन्य गैर-हिंदी भाषी राज्यों की तरह, भाषाई विविधता की रक्षा करने और क्षेत्रीय सांस्कृतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है। NCERT का यह निर्णय संघीय सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। पाठ्यपुस्तकों में शीर्षक केवल नाम नहीं हैं, वे बच्चों की धारणा और कल्पना को आकार देते हैं।’ शिवकुट्टी ने NCERT से इस फैसले की समीक्षा करने और इसे वापस लेने की मांग की है। उन्होंने सभी राज्यों से इसके खिलाफ एकजुट होने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा- शिक्षा को थोपने का साधन नहीं बल्कि सशक्तिकरण और आम सहमति का साधन होना चाहिए। NCERT ने इंग्लिश किताब मैरीगोल्ड का नाम मृदंग किया हाल ही में, NCERT ने विभिन्न कक्षाओं के लिए किताबों के नए नाम जारी किए। कक्षा 1 और कक्षा 2 की इंग्लिश किताबों का नाम मैरीगोल्ड (MARIGOLD) से बदलकर 'मृदंग (MRIDANG)' और कक्षा 3 की पुस्तक का नाम 'संतूर (SANTOOR)' रखा गया है। कक्षा 6 की की इंग्लिश किताब का नाम 'हनीसकल (HONEYSUCKLE)' से बदलकर 'पूर्वी (POORVI)' कर दिया गया है। मैथ्स की किताबों के लिए भी यही पैटर्न अपनाया गया है। कक्षा 6 की गणित की किताब, जो पहले इंग्लिश में मैथमेटिक्स और हिंदी में गणित थी, अब दोनों भाषाओं में यह गणित नाम से आएगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पहले भी " हिंदी थोपने" के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की थी, उनका दावा था कि केंद्र सरकार ने NEP में तीन भाषा फार्मूले को लागू करने से इनकार करने के कारण राज्य के स्कूलों को फाइनेंस देने से इनकार कर दिया था। केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने शिक्षा का राजनीतिकरण न करने की अपील की थी ट्राई लैंग्वेज विवाद पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को लेटर लिखा था। उन्होंने राज्य में हो रहे नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के विरोध की आलोचना की थी। उन्होंने लिखा था, 'किसी भी भाषा को थोपने का सवाल नहीं है। लेकिन विदेशी भाषाओं पर अत्यधिक निर्भरता खुद की भाषा को सीमित करती है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) इसे ही ठीक करने का प्रयास कर रही है। NEP भाषाई स्वतंत्रता को कायम रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि स्टूडेंट अपनी पसंद की भाषा सीखना जारी रखें।' धर्मेंद्र प्रधान ने अपने लेटर में मई 2022 में चेन्नई में पीएम मोदी के 'तमिल भाषा शाश्वत है' के बायन का जिक्र करते हुए लिखा- मोदी सरकार तमिल संस्कृति और भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। मैं अपील करता हूं कि शिक्षा का राजनीतिकरण न करें। जानिए क्यों शुरू हुआ ये विवाद NEP 2020 के तहत, स्टूडेंट्स को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की आजादी है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं। किसी भी भाषा की अनिवार्यता का प्रावधान नहीं है। प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है। वहीं, मिडिल क्लासेस (क्लास 6 से 10 तक) में तीन भाषाओं की पढ़ाई करना अनिवार्य है। गैर-हिंदी भाषी राज्य में अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। सेकेंडरी सेक्शन यानी 11वीं और 12वीं में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे। कई नेता NEP 2020 से असहमत थे। संसद के बजट सत्र के पहले दिन से DMK सांसदों ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया था। प्रदर्शन करते हुए सांसद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के करीब पहुंच गए थे और जमकर नारेबाजी की थी। ------------------------- ये खबर भी पढ़ें... सोनिया ने लिखा- शिक्षा नीति में 3C एजेंडा:इससे केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण और सांप्रदायिकता बढ़ेगी; केंद्र सरकार शिक्षा के प्रति उदासीन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की आलोचना की है। अंग्रेजी अखबार द हिंदू के एक आर्टिकल में सोनिया गांधी ने लिखा, ‘केंद्र सरकार शिक्षा नीति के माध्यम से अपने 3 सी एजेंडे (केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण और सांप्रदायिकता) को आगे बढ़ा रही है। पूरी खबर पढ़ें...

NCERT ने किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर हिंदी नाम रखे: केरल शिक्षा मंत्री बोले- भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करेगा, वापस लेने की मांग की
लेखक: साक्षी शर्मा, टीम नेटानागरी
जब से NCERT ने अपनी पाठ्यपुस्तकों के अंग्रेजी नामों को हिंदी नामों में बदलने की घोषणा की है, इस विषय पर विभिन्न राज्य सरकारों और शिक्षा विशेषज्ञों द्वारा मिश्रित प्रतिक्रियाएँ आई हैं। केरल के शिक्षा मंत्री ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना की है और इसे भारत की भाषाई विविधता के लिए खतरा माना है।
क्या है निर्णय का मुख्य उद्देश्य?
NCERT का यह कदम भारतीय शिक्षा प्रणाली में हिंदी को बढ़ावा देने का एक प्रयास है, लेकिन इसके निहितार्थ अधिक गहरे हैं। इसके पक्षधर मानते हैं कि इसकी मदद से शैक्षिक सामग्री को स्थानीय स्तर पर सुलभता बढ़ेगी और हिंदी भाषी छात्रों को कामन सेंस में भी लाभ होगा।
केरल शिक्षा मंत्री की प्रतिक्रिया
केरल के शिक्षा मंत्री, वी. शिवनकुट्टी, ने इस निर्णय पर तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा, "भारत एक बहुभाषी देश है और इस तरह के निर्णय से हमारी भाषाई विविधता कमजोर होगी। हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए।" उन्होंने सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है।
भाषाई विविधता का महत्व
भारत की भाषाई विविधता विश्व में अद्वितीय है। यहाँ 22 मान्यता प्राप्त भाषाएँ और हजारों बोलियाँ हैं। भाषाएँ न केवल संवाद का एक माध्यम हैं, बल्कि वे संस्कृति और पहचान का भी हिस्सा होती हैं। इस संदर्भ में, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा में एक भाषा के हावी होने से अन्य भाषाएं कमजोर पड़ सकती हैं।
आगे क्या होगा?
NCERT ने इस विषय पर सभी राज्यों से प्रतिक्रिया मांगी है। यह देखना होगा कि क्या सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार करती है या नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह के बदलावों का दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिल सकता है, जिससे आगामी पीढ़ियों की भाषा और संस्कृति पर प्रभाव पड़ेगा।
सारांश
इस मुद्दे पर चर्चा के बाद यह स्पष्ट है कि NCERT के निर्णय के पीछे अच्छा इरादा हो सकता है, लेकिन इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव भी गहरा हो सकता है। शिक्षा मंत्री की मांग और विभिन्न प्रतिक्रियाएँ इस बात का संकेत देती हैं कि हमें हमारी भाषाई विविधता को बनाए रखने के लिए सचेत रहना चाहिए।
कुल मिलाकर, यह विचारणीय है कि एक ऐसा निर्णय हमारे बहुभाषी देश में किस तरह की असमानता या विविधता को जन्म दे सकता है।
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